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विश्व मृदा दिवस: पौधारोपण कर किसानों ने हानिकारक केमिकल का प्रयोग नहीं करने की ली शपथ

जमुई में विश्व मृदा दिवस पर पौधारोपण कर किसानों ने खेती में मिट्टी में हानिकारक कृषि रसायनों का प्रयोग नहीं करने की शपथ ली. मिट्टी के उर्वरता बरकरार रखने वाले 50 पौधों को लगाया. पढ़िए पूरी खबर..

विश्व मृदा दिवस पर पौधारोपण
विश्व मृदा दिवस पर पौधारोपण
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Published : Dec 5, 2021, 6:49 PM IST

जमुई: बिहार के जमुई जिले में विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) के अवसर पर साइकिल यात्रा निकाली गई. मिट्टी को बचाने के लिए लोगों ने शपथ लिया (People Took Oath to Save Soil in Jamui). सगदाहा ग्राम के लोगों ने सामूहिक रूप से अपनी खेती को टिकाऊ और मुनाफे वाली बनाने के लिए मिट्टी में हानिकारक कृषि रसायनों का प्रयोग नहीं करने की शपथ ली. मिट्टी की उर्वरता बरकरार रखने वाले 50 पौधा करेच, नीम, शरीफा, आंवला, कटहल सहित कई पौधों का रोपण किया.

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दरअसल, सगदाहा ग्राम के लोगों ने सामूहिक रूप से अपनी खेती को टिकाऊ और मुनाफे वाली बनाने के लिए अपनी मिट्टी में ऐसे कृषि रसायनों का प्रयोग नहीं करने की शपथ ली जो मिट्टी और उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक हो. इसके पूर्व साइकिल यात्रियों का एक दर्जन समूह जमुई से चलकर सगदाहा ग्राम पहुंचा और मिट्टी की उर्वरता बरकरार रखने वाले 50 पौधा करेच, नीम, शरीफा, आंवला, कटहल सहित कई पौधों का रोपण किया.

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इस अवसर पर खेती में महिलाओं की भागीदारी करने के लिए संगोष्ठि भी आयोजित की गई. उपस्तिथ जीविका के जिला जीवोकपार्जन प्रबंधक कौटिल्य कुमार ने बताया कि एक अध्य्यन से जानकारी प्राप्त हुआ है कि भारत में लगभग 70 लाख हेक्टर जमीन मिट्टी खराब होने के कारण खेती योग्य नहीं है. यह सालाना 10 प्रतिशत की गति से बढ़ रही है और यदि अभी इस पर रोक नहीं लगाई गई तो 2050 तक भारत की आधी जमीन खेती करने योग्य नहीं रह जाएगी.

दूसरी तरफ यह माना जा रहा है कि भारत की आबादी 2030 तक 143 करोड़ और 2050 तक 180 करोड़ तक पहुंच जाएगी. इस जनसंख्या का पेट भरने के लिए क्रमशः 31 और 34 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी. ऐसे में यदि हमारी 50% जमीन खेती लायक नहीं रही तो देश खाद्यान्न के भयानक संकट से जूझने को मजबूर हो जाएगा.

मौके पर उपस्तिथ ग्रामीणों को मंच के सदस्य विवेक कुमार ने बताया कि मिट्टी हैं तो हमारा जीवन है. पानी के साथ-साथ मृदा भी हमारा जीवन है. यह मिट्टी प्रकृति की देन है. इसे हमें स्वास्थ्य बनाए रखना है. इसके लिए हमें अपने खेतों में हानिकारक किटनाशक पदार्थो के जगह केचुआ निर्मित खाद का उपयोग करना चाहिए. जिससे ना केवल यह उपजे. अनाज स्वास्थवर्धक होगा बल्कि खेतों की आयु बनी रहेगी.

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सदस्यों ने बताया कि पूरी दुनिया में हानिकारक रासायनिक खेती और त्रुटिपूर्ण खेती की विधियों के कारण मिट्टी में नमक की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है. मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होने से मिट्टी की उत्पादन क्षमता तेजी से घटने लगती है. अगर समय रहते इसका उपचार नहीं किया जाए तो मिट्टी की ऊपरी सतह पर नमक की परत जम जाती है और मिट्टी बिलकुल बंजर हो जाती है. इससे बचाये रखने के लिए पहल सभी ग्रामीण मिलकर करें.

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दरअसल, सगदाहा ग्राम के लोगों ने सामूहिक रूप से अपनी खेती को टिकाऊ और मुनाफे वाली बनाने के लिए अपनी मिट्टी में ऐसे कृषि रसायनों का प्रयोग नहीं करने की शपथ ली जो मिट्टी और उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक हो. इसके पूर्व साइकिल यात्रियों का एक दर्जन समूह जमुई से चलकर सगदाहा ग्राम पहुंचा और मिट्टी की उर्वरता बरकरार रखने वाले 50 पौधा करेच, नीम, शरीफा, आंवला, कटहल सहित कई पौधों का रोपण किया.

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इस अवसर पर खेती में महिलाओं की भागीदारी करने के लिए संगोष्ठि भी आयोजित की गई. उपस्तिथ जीविका के जिला जीवोकपार्जन प्रबंधक कौटिल्य कुमार ने बताया कि एक अध्य्यन से जानकारी प्राप्त हुआ है कि भारत में लगभग 70 लाख हेक्टर जमीन मिट्टी खराब होने के कारण खेती योग्य नहीं है. यह सालाना 10 प्रतिशत की गति से बढ़ रही है और यदि अभी इस पर रोक नहीं लगाई गई तो 2050 तक भारत की आधी जमीन खेती करने योग्य नहीं रह जाएगी.

दूसरी तरफ यह माना जा रहा है कि भारत की आबादी 2030 तक 143 करोड़ और 2050 तक 180 करोड़ तक पहुंच जाएगी. इस जनसंख्या का पेट भरने के लिए क्रमशः 31 और 34 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी. ऐसे में यदि हमारी 50% जमीन खेती लायक नहीं रही तो देश खाद्यान्न के भयानक संकट से जूझने को मजबूर हो जाएगा.

मौके पर उपस्तिथ ग्रामीणों को मंच के सदस्य विवेक कुमार ने बताया कि मिट्टी हैं तो हमारा जीवन है. पानी के साथ-साथ मृदा भी हमारा जीवन है. यह मिट्टी प्रकृति की देन है. इसे हमें स्वास्थ्य बनाए रखना है. इसके लिए हमें अपने खेतों में हानिकारक किटनाशक पदार्थो के जगह केचुआ निर्मित खाद का उपयोग करना चाहिए. जिससे ना केवल यह उपजे. अनाज स्वास्थवर्धक होगा बल्कि खेतों की आयु बनी रहेगी.

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सदस्यों ने बताया कि पूरी दुनिया में हानिकारक रासायनिक खेती और त्रुटिपूर्ण खेती की विधियों के कारण मिट्टी में नमक की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है. मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होने से मिट्टी की उत्पादन क्षमता तेजी से घटने लगती है. अगर समय रहते इसका उपचार नहीं किया जाए तो मिट्टी की ऊपरी सतह पर नमक की परत जम जाती है और मिट्टी बिलकुल बंजर हो जाती है. इससे बचाये रखने के लिए पहल सभी ग्रामीण मिलकर करें.

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