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शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही, नामांकित हैं 24 बच्चे, 5 ही आते हैं स्कूल

गोपालगंज में एक ऐसा भी स्कूल है जिसका शानदार भवन है. शिक्षक भी हैं लेकिन मात्र 5 बच्चे ही स्कूल आते हैं. लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए निजी स्कूलों में भेज रहे हैं. इस ओर प्रशासन का ध्यान नहीं है. पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Sep 19, 2021, 9:25 AM IST

गोपालगंज: बिहार सरकार (Bihar government) शिक्षा के क्षेत्र में विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है. नये भवन बन रहे, शिक्षकों की नियुक्ति (teachers appointment) हो रही है लेकिन स्कूलों में छात्रों की संख्या में इजाफा नहीं हो रहा है. दिनोंदिन इसमें गिरावट ही आ रही है. इसी प्रकार का एक स्कूल गोपालगंज में है. यहां 24 बच्चों का नामांकन तो है लेकिन सिर्फ पांच बच्चे ही नियमित स्कूल आते हैं.

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गोपालगंज (Gopalganj) में सिधवलिया प्रखण्ड के बखरौर बथान टोला गांव स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही देखने को मिल रही है. यहां पढ़ाने वाले शिक्षक तो हैं लेकिन पढ़ने वाले बच्चे गायब हैं. ये सिलसिला वर्षों से चल रहा है. आज तक विभाग की नजर इस तरफ नहीं पड़ी.

दरअसल, इस विद्यालय की स्थापना सन 1957 में हुई थी. तब क्षेत्र में महज यही एक विद्यालय हुआ करता था. इसमें पढ़कर कई लोग सरकारी विभाग व प्राचार्य के पद पर आसीन हुए. तब इस विद्यालय में बच्चों की संख्या काफी ज्यादा हुआ करती थी. स्कूल का दो मंजिला भवन भी काफी खूबसूरत बना था. बच्चों के पढ़ने के लिए अलग-अलग कमरे, किचन शेड के साथ शौचालय और प्राचार्य के कक्ष बनाए गए थे.

ये भी पढ़ें: गोपालगंज: वायरल फीवर के बढ़ रहे मरीज, स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों में है शून्य

इतना ही नहीं, इस विद्यालय को हाई स्कूल बनाने की कवायद भी शुरू हुई लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि वह विद्यालय अब वीरान है. देखते ही देखते बच्चों की संख्या कम होती गयी. अब सिर्फ टीचर ही इस विद्यालय में बच गए हैं. कुछ साल पहले तक इस विद्यालय में पांच शिक्षक थे लेकिन बच्चों के नहीं आने पर दो शिक्षकों ने अपना ट्रांसफर करा लिया. एक और शिक्षक का कहीं और ट्रान्सफर हो गया. वर्तमान में एक शिक्षिका व प्रभारी प्राचार्य हैं.

देखें रिपोर्ट

इस स्कूल की दीवारों पर मोटे-मोटे अक्षरों में 'गइया बकरियां चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए', 'पढ़ी लिखी बहना, घर की है गहना' जैसे स्लोगन लिखे हुए हैं लेकिन दुर्भाग्यवश न इसमें मुनिया बेटी पढ़ती है और न ही बहना शिक्षा ग्रहण कर रही है. स्कूल के चारों ओर घास उग गए हैं. क्लास रूम के दरवाजों पर लगे तालों पर धूल और जंग के साथ मकड़ी ने डेरा जमा लिया है. इसे देखकर पता चलता है कि ये सालों से बंद हैं.

बस्ती से दूर एकांत में स्थित स्कूल की शिक्षिका रेणु ने ऑफ कैमरा बताया कि अभिभावकों के मना करने की वजह से बच्चे यहां पढ़ने नहीं आते हैं. शिक्षक नियमित तौर पर आते हैं. बिना पढ़ाए शिक्षा विभाग इन शिक्षकों को नियमित वेतन भी दे रहा है. स्कूल में 1 साल पहले तक 35 बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज थे. इसके बाद महज 24 बच्चों का नामांकन हुआ. अब 5 ही बच्चे यहां शिक्षा ले रहे है. सरकार स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने का प्रयास कर रही है. इसके बावजूद विभाग की अनदेखी के कारण शिक्षा व्यवस्था का यह हाल है.

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इस संदर्भ में प्राचार्या नीतू देवी ने बताया कि बच्चों को संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन स्थानीय लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही भेजते हैं. वहीं, पहले यही एक विद्यालय हुआ करता था लेकिन अब कई विद्यालय खुल गए हैं. वहीं, स्थानीय लोगों ने बताया कि इस विद्यालय में शिक्षक पढ़ाने नहीं आते हैं. यहां पढ़ाई नहीं होती. ऐसे में हम लोग क्यों अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद करें. इसलिए बच्चों को प्राईवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं. जब जिला शिक्षा पदाधिकारी राजकुमार शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि अभी तक ये मामला जानकारी में नहीं था. आप लोगो के माध्यम से जानकारी मिली है. इसकी जांच कराई जाएगी.

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गोपालगंज: बिहार सरकार (Bihar government) शिक्षा के क्षेत्र में विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है. नये भवन बन रहे, शिक्षकों की नियुक्ति (teachers appointment) हो रही है लेकिन स्कूलों में छात्रों की संख्या में इजाफा नहीं हो रहा है. दिनोंदिन इसमें गिरावट ही आ रही है. इसी प्रकार का एक स्कूल गोपालगंज में है. यहां 24 बच्चों का नामांकन तो है लेकिन सिर्फ पांच बच्चे ही नियमित स्कूल आते हैं.

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गोपालगंज (Gopalganj) में सिधवलिया प्रखण्ड के बखरौर बथान टोला गांव स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही देखने को मिल रही है. यहां पढ़ाने वाले शिक्षक तो हैं लेकिन पढ़ने वाले बच्चे गायब हैं. ये सिलसिला वर्षों से चल रहा है. आज तक विभाग की नजर इस तरफ नहीं पड़ी.

दरअसल, इस विद्यालय की स्थापना सन 1957 में हुई थी. तब क्षेत्र में महज यही एक विद्यालय हुआ करता था. इसमें पढ़कर कई लोग सरकारी विभाग व प्राचार्य के पद पर आसीन हुए. तब इस विद्यालय में बच्चों की संख्या काफी ज्यादा हुआ करती थी. स्कूल का दो मंजिला भवन भी काफी खूबसूरत बना था. बच्चों के पढ़ने के लिए अलग-अलग कमरे, किचन शेड के साथ शौचालय और प्राचार्य के कक्ष बनाए गए थे.

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इतना ही नहीं, इस विद्यालय को हाई स्कूल बनाने की कवायद भी शुरू हुई लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि वह विद्यालय अब वीरान है. देखते ही देखते बच्चों की संख्या कम होती गयी. अब सिर्फ टीचर ही इस विद्यालय में बच गए हैं. कुछ साल पहले तक इस विद्यालय में पांच शिक्षक थे लेकिन बच्चों के नहीं आने पर दो शिक्षकों ने अपना ट्रांसफर करा लिया. एक और शिक्षक का कहीं और ट्रान्सफर हो गया. वर्तमान में एक शिक्षिका व प्रभारी प्राचार्य हैं.

देखें रिपोर्ट

इस स्कूल की दीवारों पर मोटे-मोटे अक्षरों में 'गइया बकरियां चरती जाए, मुनिया बेटी पढ़ती जाए', 'पढ़ी लिखी बहना, घर की है गहना' जैसे स्लोगन लिखे हुए हैं लेकिन दुर्भाग्यवश न इसमें मुनिया बेटी पढ़ती है और न ही बहना शिक्षा ग्रहण कर रही है. स्कूल के चारों ओर घास उग गए हैं. क्लास रूम के दरवाजों पर लगे तालों पर धूल और जंग के साथ मकड़ी ने डेरा जमा लिया है. इसे देखकर पता चलता है कि ये सालों से बंद हैं.

बस्ती से दूर एकांत में स्थित स्कूल की शिक्षिका रेणु ने ऑफ कैमरा बताया कि अभिभावकों के मना करने की वजह से बच्चे यहां पढ़ने नहीं आते हैं. शिक्षक नियमित तौर पर आते हैं. बिना पढ़ाए शिक्षा विभाग इन शिक्षकों को नियमित वेतन भी दे रहा है. स्कूल में 1 साल पहले तक 35 बच्चों के नाम रजिस्टर में दर्ज थे. इसके बाद महज 24 बच्चों का नामांकन हुआ. अब 5 ही बच्चे यहां शिक्षा ले रहे है. सरकार स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने का प्रयास कर रही है. इसके बावजूद विभाग की अनदेखी के कारण शिक्षा व्यवस्था का यह हाल है.

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इस संदर्भ में प्राचार्या नीतू देवी ने बताया कि बच्चों को संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन स्थानीय लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही भेजते हैं. वहीं, पहले यही एक विद्यालय हुआ करता था लेकिन अब कई विद्यालय खुल गए हैं. वहीं, स्थानीय लोगों ने बताया कि इस विद्यालय में शिक्षक पढ़ाने नहीं आते हैं. यहां पढ़ाई नहीं होती. ऐसे में हम लोग क्यों अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद करें. इसलिए बच्चों को प्राईवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं. जब जिला शिक्षा पदाधिकारी राजकुमार शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि अभी तक ये मामला जानकारी में नहीं था. आप लोगो के माध्यम से जानकारी मिली है. इसकी जांच कराई जाएगी.

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