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गोपालगंज: आजादी के 72 साल बाद भी, 13 पंचायतों के लोग चचरी पुल से गुजरने को मजबूर - स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों

जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर विजयीपुर प्रखंड के 13 पंचायत के लोगों का आज भी चचरी पुल से आवागमन होता है. 13 पंचायत के करीब डेढ़ लाख लोग इसी पुल के सहारे हैं.

चचरी का पुल
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Published : Oct 28, 2019, 9:02 PM IST

गोपालगंज: एक ओर जहां देश में डिजिटल इंडिया की बात की जाती है. वहीं, आजादी के 72 साल गुजर जाने के बाद भी विजयीपुर प्रखंड के 13 पंचायत के लोगों को एक पुल तक नसीब नहीं है. लोग खुद के बनाए चचरी के पुल से आवागमन करते हैं. सबसे अधिक परेशानी स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों को होती है. जिसे पुल पार कराने के लिए उनके अभिभावक को साथ जाना पड़ता है.

ग्रामीणों ने बनाया चचरी का पुल
यहां के बच्चे रोज अपनी जान हथेली पर रखकर चचरी के पुल पार करते हैं. बरसात के दिनों में यह पुल भी नहीं रहता है. सिर्फ नाव के सहारे लोगों की जिंदगी कटती है. कई बार नाव हादसा हुआ है. कई बार चचरी पुल से बच्चे भी गिर गए हैं. इन घटनाओं में कई लोगों की मौत भी हो गई है. बावजूद इसके जिम्मेदारों की नींद नहीं खुली है.

gopalganj
चचरी का पुल

किसी ने नहीं ली सुध
जिले के पश्चिमी छोर और यूपी-बिहार सीमा के खनुवा नदी के किनारे के लोग दशकों से इस परेशानी से जूझ रहे हैं. ग्रामीण यहां पुल बनाने की मांग जिला प्रशासन से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री तक कर चुके हैं. लेकिन किसी ने अबतक इसकी सुध लेना मुनासिब नहीं समझा.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दर्जनों पंचायत के लोग इसी पुल पर हैं निर्भर
ग्रामीणों को समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जनप्रतिनिधियों की तरफ से कई बार आश्वासन दिया गया. लेकिन किसी ने भी कोई पहल नहीं की. ग्रामीणों को रोजमर्रा के कामों से लेकर किसी के बीमार पड़ने पर भी इसी चचरी का सहारा लेना पड़ता है. इस खनुआ नदी पर पुल नहीं होने के कारण भरपुरा, बड़का कोटा, छोटका खुटाहां, बभनौली, नौका टोला, खेरवा टोला, बाबू टोला, मानकदी कवलाचक, गिरिडीह, नोनापाकर, चौमुखा, मटियारी, सुदामाचक, रतनपुरा समेत दर्जनों पंचायत के लोग इस पुल पर हीं निर्भर हैं.

गोपालगंज: एक ओर जहां देश में डिजिटल इंडिया की बात की जाती है. वहीं, आजादी के 72 साल गुजर जाने के बाद भी विजयीपुर प्रखंड के 13 पंचायत के लोगों को एक पुल तक नसीब नहीं है. लोग खुद के बनाए चचरी के पुल से आवागमन करते हैं. सबसे अधिक परेशानी स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों को होती है. जिसे पुल पार कराने के लिए उनके अभिभावक को साथ जाना पड़ता है.

ग्रामीणों ने बनाया चचरी का पुल
यहां के बच्चे रोज अपनी जान हथेली पर रखकर चचरी के पुल पार करते हैं. बरसात के दिनों में यह पुल भी नहीं रहता है. सिर्फ नाव के सहारे लोगों की जिंदगी कटती है. कई बार नाव हादसा हुआ है. कई बार चचरी पुल से बच्चे भी गिर गए हैं. इन घटनाओं में कई लोगों की मौत भी हो गई है. बावजूद इसके जिम्मेदारों की नींद नहीं खुली है.

gopalganj
चचरी का पुल

किसी ने नहीं ली सुध
जिले के पश्चिमी छोर और यूपी-बिहार सीमा के खनुवा नदी के किनारे के लोग दशकों से इस परेशानी से जूझ रहे हैं. ग्रामीण यहां पुल बनाने की मांग जिला प्रशासन से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री तक कर चुके हैं. लेकिन किसी ने अबतक इसकी सुध लेना मुनासिब नहीं समझा.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दर्जनों पंचायत के लोग इसी पुल पर हैं निर्भर
ग्रामीणों को समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जनप्रतिनिधियों की तरफ से कई बार आश्वासन दिया गया. लेकिन किसी ने भी कोई पहल नहीं की. ग्रामीणों को रोजमर्रा के कामों से लेकर किसी के बीमार पड़ने पर भी इसी चचरी का सहारा लेना पड़ता है. इस खनुआ नदी पर पुल नहीं होने के कारण भरपुरा, बड़का कोटा, छोटका खुटाहां, बभनौली, नौका टोला, खेरवा टोला, बाबू टोला, मानकदी कवलाचक, गिरिडीह, नोनापाकर, चौमुखा, मटियारी, सुदामाचक, रतनपुरा समेत दर्जनों पंचायत के लोग इस पुल पर हीं निर्भर हैं.

Intro:जिला मुख्यालय गोपालगंज से 70 किलोमीटर दूर विजयीपुर प्रखंड के 13 पंचायत के लोगों का आज भी चचरी पुल से आवागमन होता है तेरा पंचायत के करीब डेढ़ लाख की आबादी चाचा जी के पुल के जरिए आवागमन को मजबूर है








Body:एक ओर जहां पूरा देश विकासशील के दौर में है। देश में डिजिटल इंडिया की बात की जाती है। लेकिन आजादी के 72 वर्ष गुजर जाने के बाद भी यहां के लोगों को एक पुल नसीब नहीं हुआ। लोग खुद के बनाए चचरी के पुल से आवागमन करते हैं। सबसे अधिक परेशानी स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों को होती है। जिसे पुल पार कराने के लिए उनके अभिभावक को साथ जाना पड़ता है या खुद यह बच्चे अपनी जान हथेली पर रखकर चचरी के पुल पार करते हैं। बरसात के दिनों में यह चचरी के पुल भी नही रहता, सिर्फ रहती है तो नाव और उसी नाव के सहारे लोगो की जिंदगी कटती है। कई बार नाव हादसा तो कई बार चचरी के पूल से बच्चे गिर गए है यहां तक कि ग्रामीणों के सहयोग से खुद के बनाये गए बांस के चचरी पुल से गिर कर कई लोगो की मौत भी हो चुकी है। बावजूद विभागीय कार्यवाई नगण्य सबित हो रही है। बता दें कि जिले के पश्चिमी छोर तथा यूपी-बिहार सीमा पर स्थित खनुवा नदी के किनारे के लोग दशकों से इस परेशानी से जूझ रहे हैं यहां के ग्रामीण व नदी पर पुल बनाने की मांग जिला प्रशासन से लेकर सुबे के मुख्यमंत्री तक कर चुके हैं लेकिन आज तक किसी ने इसकी सुध लेने की कोशिश नहीं कि यहां के लोग जान जोखिम में डालकर बरसात के दिनों में नाव के सहारे और पानी कम होने पर चचरी पुल के सहारे नदी पार करते हैं। इनकी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा कई बार आश्वासन दिया गया लेकिन आज तक किसी ने कोई पहल नहीं की ग्रामीणों को रोजमर्रा की सामान बच्चों के पढ़ाई दवाई के लिए रोज नदी पार करके प्रखंड मुख्यालय जाना पड़ता है। इस खनुआ नदी पर पूल नही होने के कारण भरपुरा, बड़का कोटा, छोटका खुटाहां,बभनौली,नौका टोला, खेरवा टोला, बाबू टोला, मानकदी कवलाचक, गिरिडीह, नोनापाकर,चौमुखा,मटियारी, सुदामाचक, रतनपुरा समेत दर्जनो पंचायत के लोग इन पुल पर निर्भर है। वही भरपुरा पंचायत के सरपंच संजय यादव के माने तो उनका कहना है कि इस संदर्भ में कई बार अधिकारियों के आलावे सरकर को ध्यानाकर्षण कराया गया लेकिन सिर्फ आश्वासन मिला

बाइट पिला सर्ट में सरपंच संजय यादव
बाइट-ग्रामीण


Conclusion:na
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