गया: हम चैन से सोते हैं, चैन से तीज-त्योहार मनाते है. क्योंकि हमें मालूम है कि हमारी सुरक्षा के लिए भारत मां के वीर सिपाही 24 घंटे तैनात हैं. मगर, उसी सिपाही की नींद रिटायरमेंट के बाद उड़ गई हो, तो उसका क्या? बिहार के गया में रहने वाले रिटायर्ड सीआरपीएफ जवान नरेंद्र सिंह आज अपनी लड़खड़ाती जुबान में पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं. उनकी बहादुरी के जिस इनाम के लिए उन्हें आश्वासन दिया गया था. उसके एवज में उन्होंने पीएम से अपनी मौत मांगी है.
गया के वजीरगंज प्रखंड के रहने वाले नरेंद्र सिंह ने देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी. उनकी इस बहादुरी के लिए मिलने वाले इनाम में सिर्फ घोषणाएं ही हुई, उन्हें मिला कुछ नहीं. सारे सरकारी दरवाजों पर दस्तक देने के बाद, जब किसी ने उनकी नहीं सुनी तो सेवानिवृत्त इस बहादुर जवान ने पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली.
बहादुरी की दास्तां...
नरेंद्र ने गार्ड कमांडर के रूप में 1980 को सीआरपीएफ ज्वॉइन की थी. ड्यूटी के 17 साल होने पर नरेंद्र सिंह के साथ एक भयानक घटना घटित हुई. जिसने उनके जीवन में अंधकार ला दिया. 15 अगस्त 1997 को नागालैंड में तैनात नरेंद्र सिंह की एसबीआई ब्रांच में तैनात थे. उसी समय उग्रवादियों ने उनके शिविर में ग्रेनाइट से हमला कर दिया. इस हमले में नरेंद्र सहित चार जवान घायल हो गए. बावजूद इसके वो डटे रहे.
काटना पड़ा हाथ
उग्रवादियों के इस हमले में नरेंद्र सिंह बुरी तरह से घायल हो गए. इलाज के दौरान उनका हाथ काटना पड़ा. उनके पैर में ग्रेनाइट ने कई जगह छेद कर दिए थे. उसी समय नरेंद्र सिंह से ड्रिबुगढ़ के अस्पताल में डीजीपी मिलने आए. उन्होंने उनकी इस बहादुरी पर शाबाशी दी और आश्वासन देते हुए इनाम के स्वरूप पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी देने का वादा भी किया. मगर, 22 वर्ष बीतने पर भी नरेंद्र सिंह को बहादुरी का इनाम नहीं मिला. नरेंद्र सिंह इन दिनों गरीबी की हालत में जीवन यापन कर रहे हैं.
दुखों का टूट पड़ा पहाड़
नरेन्द्र सिंह ने बताया कि उग्रवादी हमले में हाथ गंवाने के बाद उन्हें सीआरपीएफ कैम्प मोकामा भेज दिया गया था. इस दौरान उनकी पत्नी की मौत हो गई. वहीं, दूसरी तरफ उनपर मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ. मेडिकल बोर्ड में नरेंद्र सिंह को अनफिट पाया गया. इसके बाद उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त कर दिया गया. नरेंद्र सिंह का दुख यहां भी खत्म नहीं हुआ. तीन वर्ष बाद उनको ब्रेन हेमरेज हो गया. इस हेमरेज का इलाज करवाने में लगभग 15 लाख रुपये खर्च हो गए. उनकी जमा पूंजी सारी खत्म हो गई. नरेंद्र सिंह अपने निजी आवास पर अकेले रहते हैं उनके दोनो बच्चे बिहार से बाहर रहते हैं.
बहादुरी के किस्से के साथ वादाखिलाफी की अवाज
ब्रेन हेमरेज होने से नरेंद्र सिंह की आवाज खराब हो गई है. वो 90 प्रतिशत दिव्यांगता की श्रेणी में हैं. अपनी लड़खड़ाती आवाज में नरेंद्र सिंह अपनी बहादुरी की गाथा सुनाते हैं और इसके साथ ही वो वादाखिलाफी की बात भी करते हैं. उनका कहना है कि मुझे न तो पेट्रोल पंप मिला और न ही गैस एजेंसी मिली. अभी जीवन पेंशन पर चल रहा है और पेंशन भी पुराने नियमानुसार मिल रही है.
भगा देते हैं मुझे, अब मौत चाहिए-नरेंद्र
नए नियमों में छठे वेतन और सातवें वेतन आयोग में मेरी पेंशन को शामिल नहीं किया गया है. सीआरपीएफ मोकामा कार्यालय को दिए गए आवेदन के बाद भी ये लाभ नहीं मिल रहा रहा है. जब कभी हौंसला बांधकर मोकामा जाता हूं, तो वहां के लोग भगा देते हैं. बीमारी और बच्चों को पढ़ाने में सारा जमा पूंजी खत्म हो गयी है. दवा महंगी हैं, तंगी के कारण खरीद नहीं पाते हैं. इतना संघर्षमय जीवन जीने से अच्छा है मर जाऊं. इसलिए पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा हूं.