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CRPF के रिटायर जवान को नहीं मिला उसका इनाम, अब PM मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग

रिटायर्ड सीआरपीएफ जवान को उसकी बहादुरी का कोई इनाम नहीं मिला. इसके एवज में जवान अपनी लड़खड़ाती जुबान में पीएम से बस एक ही गुहार लगा रहा है- इतना संघर्षमय जीवन जीने से अच्छा है मर जाऊं. इसलिए पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा हूं.

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Published : Jul 20, 2019, 11:28 PM IST

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गया: हम चैन से सोते हैं, चैन से तीज-त्योहार मनाते है. क्योंकि हमें मालूम है कि हमारी सुरक्षा के लिए भारत मां के वीर सिपाही 24 घंटे तैनात हैं. मगर, उसी सिपाही की नींद रिटायरमेंट के बाद उड़ गई हो, तो उसका क्या? बिहार के गया में रहने वाले रिटायर्ड सीआरपीएफ जवान नरेंद्र सिंह आज अपनी लड़खड़ाती जुबान में पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं. उनकी बहादुरी के जिस इनाम के लिए उन्हें आश्वासन दिया गया था. उसके एवज में उन्होंने पीएम से अपनी मौत मांगी है.

गया के वजीरगंज प्रखंड के रहने वाले नरेंद्र सिंह ने देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी. उनकी इस बहादुरी के लिए मिलने वाले इनाम में सिर्फ घोषणाएं ही हुई, उन्हें मिला कुछ नहीं. सारे सरकारी दरवाजों पर दस्तक देने के बाद, जब किसी ने उनकी नहीं सुनी तो सेवानिवृत्त इस बहादुर जवान ने पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली.

Retired CRPF jawan demands euthanasia
नरेंद्र सिंह, रिटायर्ड सीआरपीएफ जवान

बहादुरी की दास्तां...
नरेंद्र ने गार्ड कमांडर के रूप में 1980 को सीआरपीएफ ज्वॉइन की थी. ड्यूटी के 17 साल होने पर नरेंद्र सिंह के साथ एक भयानक घटना घटित हुई. जिसने उनके जीवन में अंधकार ला दिया. 15 अगस्त 1997 को नागालैंड में तैनात नरेंद्र सिंह की एसबीआई ब्रांच में तैनात थे. उसी समय उग्रवादियों ने उनके शिविर में ग्रेनाइट से हमला कर दिया. इस हमले में नरेंद्र सहित चार जवान घायल हो गए. बावजूद इसके वो डटे रहे.

Retired CRPF jawan demands euthanasia
जवान का आईकार्ड

काटना पड़ा हाथ
उग्रवादियों के इस हमले में नरेंद्र सिंह बुरी तरह से घायल हो गए. इलाज के दौरान उनका हाथ काटना पड़ा. उनके पैर में ग्रेनाइट ने कई जगह छेद कर दिए थे. उसी समय नरेंद्र सिंह से ड्रिबुगढ़ के अस्पताल में डीजीपी मिलने आए. उन्होंने उनकी इस बहादुरी पर शाबाशी दी और आश्वासन देते हुए इनाम के स्वरूप पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी देने का वादा भी किया. मगर, 22 वर्ष बीतने पर भी नरेंद्र सिंह को बहादुरी का इनाम नहीं मिला. नरेंद्र सिंह इन दिनों गरीबी की हालत में जीवन यापन कर रहे हैं.

जरा सुनिए जवान की दास्तां

दुखों का टूट पड़ा पहाड़
नरेन्द्र सिंह ने बताया कि उग्रवादी हमले में हाथ गंवाने के बाद उन्हें सीआरपीएफ कैम्प मोकामा भेज दिया गया था. इस दौरान उनकी पत्नी की मौत हो गई. वहीं, दूसरी तरफ उनपर मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ. मेडिकल बोर्ड में नरेंद्र सिंह को अनफिट पाया गया. इसके बाद उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त कर दिया गया. नरेंद्र सिंह का दुख यहां भी खत्म नहीं हुआ. तीन वर्ष बाद उनको ब्रेन हेमरेज हो गया. इस हेमरेज का इलाज करवाने में लगभग 15 लाख रुपये खर्च हो गए. उनकी जमा पूंजी सारी खत्म हो गई. नरेंद्र सिंह अपने निजी आवास पर अकेले रहते हैं उनके दोनो बच्चे बिहार से बाहर रहते हैं.

बहादुरी के किस्से के साथ वादाखिलाफी की अवाज
ब्रेन हेमरेज होने से नरेंद्र सिंह की आवाज खराब हो गई है. वो 90 प्रतिशत दिव्यांगता की श्रेणी में हैं. अपनी लड़खड़ाती आवाज में नरेंद्र सिंह अपनी बहादुरी की गाथा सुनाते हैं और इसके साथ ही वो वादाखिलाफी की बात भी करते हैं. उनका कहना है कि मुझे न तो पेट्रोल पंप मिला और न ही गैस एजेंसी मिली. अभी जीवन पेंशन पर चल रहा है और पेंशन भी पुराने नियमानुसार मिल रही है.

भगा देते हैं मुझे, अब मौत चाहिए-नरेंद्र
नए नियमों में छठे वेतन और सातवें वेतन आयोग में मेरी पेंशन को शामिल नहीं किया गया है. सीआरपीएफ मोकामा कार्यालय को दिए गए आवेदन के बाद भी ये लाभ नहीं मिल रहा रहा है. जब कभी हौंसला बांधकर मोकामा जाता हूं, तो वहां के लोग भगा देते हैं. बीमारी और बच्चों को पढ़ाने में सारा जमा पूंजी खत्म हो गयी है. दवा महंगी हैं, तंगी के कारण खरीद नहीं पाते हैं. इतना संघर्षमय जीवन जीने से अच्छा है मर जाऊं. इसलिए पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा हूं.

गया: हम चैन से सोते हैं, चैन से तीज-त्योहार मनाते है. क्योंकि हमें मालूम है कि हमारी सुरक्षा के लिए भारत मां के वीर सिपाही 24 घंटे तैनात हैं. मगर, उसी सिपाही की नींद रिटायरमेंट के बाद उड़ गई हो, तो उसका क्या? बिहार के गया में रहने वाले रिटायर्ड सीआरपीएफ जवान नरेंद्र सिंह आज अपनी लड़खड़ाती जुबान में पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं. उनकी बहादुरी के जिस इनाम के लिए उन्हें आश्वासन दिया गया था. उसके एवज में उन्होंने पीएम से अपनी मौत मांगी है.

गया के वजीरगंज प्रखंड के रहने वाले नरेंद्र सिंह ने देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी. उनकी इस बहादुरी के लिए मिलने वाले इनाम में सिर्फ घोषणाएं ही हुई, उन्हें मिला कुछ नहीं. सारे सरकारी दरवाजों पर दस्तक देने के बाद, जब किसी ने उनकी नहीं सुनी तो सेवानिवृत्त इस बहादुर जवान ने पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली.

Retired CRPF jawan demands euthanasia
नरेंद्र सिंह, रिटायर्ड सीआरपीएफ जवान

बहादुरी की दास्तां...
नरेंद्र ने गार्ड कमांडर के रूप में 1980 को सीआरपीएफ ज्वॉइन की थी. ड्यूटी के 17 साल होने पर नरेंद्र सिंह के साथ एक भयानक घटना घटित हुई. जिसने उनके जीवन में अंधकार ला दिया. 15 अगस्त 1997 को नागालैंड में तैनात नरेंद्र सिंह की एसबीआई ब्रांच में तैनात थे. उसी समय उग्रवादियों ने उनके शिविर में ग्रेनाइट से हमला कर दिया. इस हमले में नरेंद्र सहित चार जवान घायल हो गए. बावजूद इसके वो डटे रहे.

Retired CRPF jawan demands euthanasia
जवान का आईकार्ड

काटना पड़ा हाथ
उग्रवादियों के इस हमले में नरेंद्र सिंह बुरी तरह से घायल हो गए. इलाज के दौरान उनका हाथ काटना पड़ा. उनके पैर में ग्रेनाइट ने कई जगह छेद कर दिए थे. उसी समय नरेंद्र सिंह से ड्रिबुगढ़ के अस्पताल में डीजीपी मिलने आए. उन्होंने उनकी इस बहादुरी पर शाबाशी दी और आश्वासन देते हुए इनाम के स्वरूप पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी देने का वादा भी किया. मगर, 22 वर्ष बीतने पर भी नरेंद्र सिंह को बहादुरी का इनाम नहीं मिला. नरेंद्र सिंह इन दिनों गरीबी की हालत में जीवन यापन कर रहे हैं.

जरा सुनिए जवान की दास्तां

दुखों का टूट पड़ा पहाड़
नरेन्द्र सिंह ने बताया कि उग्रवादी हमले में हाथ गंवाने के बाद उन्हें सीआरपीएफ कैम्प मोकामा भेज दिया गया था. इस दौरान उनकी पत्नी की मौत हो गई. वहीं, दूसरी तरफ उनपर मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ. मेडिकल बोर्ड में नरेंद्र सिंह को अनफिट पाया गया. इसके बाद उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त कर दिया गया. नरेंद्र सिंह का दुख यहां भी खत्म नहीं हुआ. तीन वर्ष बाद उनको ब्रेन हेमरेज हो गया. इस हेमरेज का इलाज करवाने में लगभग 15 लाख रुपये खर्च हो गए. उनकी जमा पूंजी सारी खत्म हो गई. नरेंद्र सिंह अपने निजी आवास पर अकेले रहते हैं उनके दोनो बच्चे बिहार से बाहर रहते हैं.

बहादुरी के किस्से के साथ वादाखिलाफी की अवाज
ब्रेन हेमरेज होने से नरेंद्र सिंह की आवाज खराब हो गई है. वो 90 प्रतिशत दिव्यांगता की श्रेणी में हैं. अपनी लड़खड़ाती आवाज में नरेंद्र सिंह अपनी बहादुरी की गाथा सुनाते हैं और इसके साथ ही वो वादाखिलाफी की बात भी करते हैं. उनका कहना है कि मुझे न तो पेट्रोल पंप मिला और न ही गैस एजेंसी मिली. अभी जीवन पेंशन पर चल रहा है और पेंशन भी पुराने नियमानुसार मिल रही है.

भगा देते हैं मुझे, अब मौत चाहिए-नरेंद्र
नए नियमों में छठे वेतन और सातवें वेतन आयोग में मेरी पेंशन को शामिल नहीं किया गया है. सीआरपीएफ मोकामा कार्यालय को दिए गए आवेदन के बाद भी ये लाभ नहीं मिल रहा रहा है. जब कभी हौंसला बांधकर मोकामा जाता हूं, तो वहां के लोग भगा देते हैं. बीमारी और बच्चों को पढ़ाने में सारा जमा पूंजी खत्म हो गयी है. दवा महंगी हैं, तंगी के कारण खरीद नहीं पाते हैं. इतना संघर्षमय जीवन जीने से अच्छा है मर जाऊं. इसलिए पीएम मोदी से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा हूं.

Intro:हर सैनिक देश के सुरक्षा और सम्मान के लिए लड़ता है। गया के वजीरगंज प्रखंड के रहनेवाले नरेंद्र सिंह ने देश के सुरक्षा और सम्मान के लिए लड़ाई बहादुरी से लड़ा था। उस लड़ाई में अपना हाथ भी गंवा दिया था। बहादुरी के इनाम में सिर्फ घोषणाएं हुआ, आज तक सैनिक को कुछ नही मिला। सभी दरवाजे पर दस्तक देने के बाद भी कोई नही सुना तो सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त हुए नरेंद्र सिंह प्रधानमंत्री से इच्छा मृत्यु मांग रहा है।


Body:नरेंद सिंह ने सीआरपीएफ के गार्ड कमांडर के रूप में 1980 में जॉइन किया था। ड्यूटी के 17 साल होने पर नरेंद्र सिंह के साथ एक भयानक घटना घटता है जो सैनिक नरेंद्र सिंह का जीवन को बदल देता हैं। 15 अगस्त 1997 को नागालैंड में गार्ड कमांडर के रूप में एसबीआई ब्रांच में तैनात थे इसी बीच उग्रवादियों ने ग्रेनाइट से हमला कर दिया, नरेंद्र सिंह के सहित चार जवान घायल हो गए थे। इस हमला में नरेंद्र सिंह बुरी तरह से घायल हो गए थे इलाज के दौरान उनका हाथ काटना पड़ा, उनके पैर में ग्रेनाइट ने कई जगह छेद कर दिया था। नरेंद्र सिंह से ड्रिबुगढ़ के अस्पताल में डीजीपी मिलने आये थे। उनके इस बहादुरी पर शाबाशी दिया था, इनाम के स्वरूप पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी देने का वादा किया था। 22 वर्ष बीतने पर भी नरेंद्र सिंह को बहादुरी का इनाम नही मिला। नरेंद्र सिंह इन दिनों गरीबी हालत में जीवन यापन कर रहे हैं।

वजीरगंज के सिन्हा कॉलोनी स्थित अपने निजी आवास में नरेंद्र सिंह अकेले रहते हैं। नरेंद्र सिंह के साथ ईश्वर उस वक़्त दुख का पहाड़ तोड़ दिया था। नरेंद्र सिंह की पत्नी का भी मौत हो गया था। तीन बच्चों को पालने का पूरा जिम्मेदारी नरेंद्र सिंह पर आ गया। नरेंद्र सिंह एक हाथ से ड्यूटी भी करते और छोटे छोटे बच्चों को पालन- पोषण करते थे। इसी बीच दुःख ने फिर आहट दिया नरेंद्र सिंह पर मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ मेडिकल बोर्ड में नरेंद्र सिंह को अनफिट पाया गया। उनके उनके मर्जी के खिलाफ उनको सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त कर दिया गया। नरेंद्र सिंह का दुख यहां भी खत्म नही हुआ तीन वर्ष पूर्व उनको ब्रेन हेमरेज हो गया, हेमरेज का इलाज करवाने में लगभग 15 लाख खर्च हो गया नरेंद्र सिंह की जमा पूंजी सारी खत्म हो गई। नरेंद्र सिंह अपने निजी आवास पर अकेले रहते हैं उनके दोनो बच्चे बिहार से बाहर रहते हैं।

ब्रेन हेमरेज होने से नरेंद्र सिंह की आवाज खराब थी लड़खड़ाते आवाज में नरेंद्र सिंह अपनी बहादुरी की गाथा सुनाते हैं और बहादुरी की कथा के साथ वह वादाखिलाफी की बात बताते हैं। कहते हैं मुझे न तो पेट्रोल पंप मिला और ना ही गैस एजेंसी मिला अभी जीवन पेंशन पर चल रहा है और पेंशन भी पुराने नियमानुसार मुझे दिया जा रहा है। नए नियम अनुसार में छठे वेतन और सातवें वेतन आयोग मेरा पेंशन को शामिल नहीं किया गया है सीआरपीएफ मोकामा कार्यालय को दिए गए आवेदन के बाद भी छठे और सातवें में वेतन आयोग का लाभ नहीं मिल रहा रहा है। जब कभी होंसला बांधकर मोकामा जाता हूँ वहां के लोग भगा देते हैं। बीमारी और बच्चों को पढ़ाने सारा जमा पूंजी खत्म हो गया, बीमारी में मंगही दवा हैं तंगी के कारण खरीद नही पाते है। इतनी सँघर्ष मय जिंदगी और तंगी जिंदगी जीने से अच्छा मर जाऊ, प्रधानमंत्री से मांग करता हूँ मुझे इच्छा मृत्यु का इजाजत दे।



Conclusion:नरेंद्र सिंह के भतीजा दारा सिंह बताते हैं चाचा 10 अक्टूबर 1980 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स योगदान देकर अपने देश की रक्षा के लिए कसम खाई थी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उन्होंने 17 वर्षों के समय देश के लिए समर्पित कर दिया। 15 अगस्त 1997 को नागालैंड में उग्रवादी हमले में यह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।उग्रवादियों के हमले से गंभीर रूप से घायल होने जाने के कारण इन्हें एयर फोर्स के विशेष हेलीकॉप्टर से नागालैंड के डिब्रूगढ़ मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उग्रवादियों के साथ बहादुरी से लड़ने पर सभी पदाधिकारियों ने इनकी प्रशंसा की थी तत्कालीन डीआईजी ने सैनिक सम्मेलन में कोहिमा नागालैंड में इनकी बहादुरी पर एक पेट्रोल पंप चलाने की घोषणा की थी। आज तक कुछ नही मिला। ब्रेन हेमरेज होने के बाद 90 प्रतिशत दिव्यांग होंगे है। इनको जो पेंशन मिल रहा है वो भी सभी रिटायर्ड सैनिकों से कम मिल रहा है। ये विभाग से अजित होकर इच्छा मृत्यु का मांग कर रहे हैं। हमलोग समझा रहे हैं, और भी तरीका है।
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