गयाः सनातन धर्म के पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष प्रतिपदा में देश विदेश पिंडदानी अपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए गया जी मे पिंडदान करने आते है. इस साल कोरोना वायरस के बचाव को लेकर पितृपक्ष मेला को स्थगित कर दिया गया था. पितृपक्ष मेला स्थगित होने से करोड़ों रुपये का नुकसान शहरवासियों को उठाना पड़ा. शहर के हर तबके पर आर्थिक रूप से बुरा असर पड़ा है.
इस वर्ष पितृपक्ष प्रतिपदा समाप्त हो गया. इस दौरान पितृ पक्ष प्रतिपदा में राजकीय मेला नहीं लगा, ना ही तीर्थयात्रियों को आने दिया गया. जिसके कारण आर्थिक नुकसान शहर के लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से उठाना पड़ा.
पितृ पक्ष मेला स्थगित होने से करोड़ों का नुकसान
ईटीवी भारत ने मेला समाप्ति होने पर हर लोगों से जानकारी लिया. गया के पंडा पहले नम्बर पर आते है. इनके सुफल से पिंडदान सफल होता है. पंडा तीर्थयात्रियों को अपने घर में रहने से लेकर हर व्यवस्था उपलब्ध करवाते थे. जिला प्रशासन भी इसके लिए अनुमति देती है. इस साल लॉक डाउन लागू होने के कारण पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया गया. जिसके कारण अधिकांश पंडा समुदाय भुखमरी के कगार पर है. पंडा ललन गुर्दा कहते है कि देश में एक से एक विपदा आयी. लेकिन पितृपक्ष मेला कभी बंद नहीं हुआ. इस कोरोना महामारी में पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया गया. पितृपक्ष मेला स्थगित होने से हर पंडा को भारी नुकसान हुआ, क्योंकि पिंडदान का दान ही पंडा का आय है. मेला नहीं होने इनके आय पर लॉक लग गया है.
फूल दुकानदार को हुई परेशानी
वहीं पंडा जी के बाद विष्णुपद क्षेत्र में स्थित फूलों की 21 दुकान दूसरे स्थान पर आता है. विष्णुपद परिसर में फूल माला के 21 दुकान है. इन मालाकारों पर पितृपक्ष मेला स्थगित होने से इन्हें बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा है. मालाकार बताते है कि पिछले साल पितृपक्ष में हर 21 दुकानों से 100 किलो तुलसी की बिक्री होती थी. तुलसी के साथ फूल माला के कारोबार में बड़ा नुकसान हुआ. फूल माला नहीं बिका तो पंडा को देकर विष्णुपद पर चढ़ावा चढ़ा दिया जाता था. खेतों में लगी फूल सुख गई थी. मजबूरन सबको काटना पड़ा.
पितृ पक्ष मेला स्थगित होने से ब्राह्मणों को हुई दिक्कत
पण्डित ने बताया शहर के ब्राह्मण को दिक्कतों का सामना करना पड़ा. हमलोग से ज्यादा ग्रामीण पंडितों को दिक्कत हुआ है. जो गांव से आकर 15 दिन रहकर कर्मकांड करते थे. गयाजी में पिंडदान नहीं होने से ग्रामीण ब्राह्मण का एक सपना टूटने जैसा हाल हो गया है. पिंडदान में बर्तन की बड़ी जरूरत रहती है. पीतल का बर्तन विधि विधान और दान में लाया जाता है. विष्णुपद मंदिर क्षेत्र में 200 बर्तन की दुकान है. सभी दुकानों की अभी तक पूंजी नहीं लौटी है. मजबूरन दुकानदार आपस में चेस खेल रहे है. मंदिर परिसर में फुटपाथ पर चूड़ी-सिंदूर और खिलौने वाले की हालत दयनीय है. महिला दुकानदार ने बताया कि सिर्फ सामान रखा हुआ है बिक्री कुछ नहीं हुआ. पितृ पक्ष मेला लगता तो आर्थिक स्थिति ठीक हो जाती.
हर तबके पर पड़ा असर
पिछले साल विष्णुपद मंदिर परिसर में स्थित प्रसाद के पांच दुकानों में 200 से 250 किलो पेड़ा और 100 किलो मुकदाना बिक जाता था. इस वर्ष एक किलो की भी बिक्री नहीं हुई. वहीं पिंडदान करने के बाद ब्राह्मण भोज किया जाता हैं. पिंडदानी होटल में ब्राह्मण को भोजन करवाते है. पितृ पक्ष के दौरान विष्णुपद क्षेत्र में स्थायी और अस्थायी 100 से अधिक होटल खुले रहते थे. इस वर्ष सभी होटल बन्द पड़े रहें.
भिखारियों को भी हुई परेशानी
इन सब के अलावा भिखारियों पर आर्थिक रूप से असर पड़ा है. पितृ पक्ष में अन्य जगहों से भिखारी आते थे. पिंडदान करने के बाद लोग स्वेच्छा से भिखारियों को दान करते थे. लेकिन इस साल पितृपक्ष मेला नहीं होने से स्थानीय भिखारियों के खाने के लाले पड़ गए. पितृपक्ष मेला स्थगित होने पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरे शहर वासियों को आर्थिक नुकसान हुआ है. ऑटो, बस, रिक्शा चालकों, होटल संचालक और नई गोदाम के बड़ी किराना मंडी में नुकसान देखने को मिला है.