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बौद्ध मंदिर में जीविका दीदियों के हैंड मेड चप्पलों की डिमांड- विदेशी मेहमान भी पहनकर कहते हैं Very Nice

बिहार के बौद्ध गया में पूरे साल बौद्ध श्रद्धालुओं (Buddhist Devotees Like Jute Slippers in Gaya) का तांता लगा रहता है, जो कई दिनों तक यहां रहते हैं और बौद्ध मंदिर में पूजा पाठ करते हैं. इस दौरान वो नंगे पांव ही पूरे मंदिर का भ्रमण करते हैं, लेकिन जब से उन्होंने ये जूट की चप्पलें गया में देखीं, तो इसकी खरीदारी कर रह हैं. खबर में पढ़ें कैसे ये चप्पलें बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए बड़े काम की हैं.

गया में जूट की चप्पलें
गया में जूट की चप्पलें
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Published : Apr 12, 2022, 1:43 PM IST

Updated : Apr 12, 2022, 2:24 PM IST

गयाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'लोकल फॉर वोकल' (Local for Vocal) पर जोर देने की बात कही है. पीएम के इस सपने को साकार करने के लिए कई संस्थाओं और आम लोगों ने इसकी पहल भी कर दी है. बोधगया के रती बीघा गांव (Rati Bigha Village) की रहने वाली महिलाएं (Jeevika Didi Making Jute slippers In Gaya) भी कुछ ऐसा ही कर रहीं हैं, जो आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता हुआ कदम कहा जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय नगरी बोधगया में कुछ महिलाएं इन दिनों जूट की चप्पलें बनाने में लगीं हैं. जो गया ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चा का विषय बन गया है.

ये भी पढ़ेंः महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए दी जा रही आर्थिक सहायता, बिना ब्याज के लौटानी होगी राशि

हैंड मेड हैं जूट की चप्पलें : दरअसल, जूट की चप्पलें बनाने वाली ये मेहनतकश महिलाएं जीविका समूह से जुड़ी हुई हैं और लगातार कुछ नया करने को प्रयासरत रहती हैं. इनकी इसी सोच का नतीजा है कि आज बोधगया में विदेशों से आने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए जूट की चप्पलें उपलब्ध हैं. जिसे देखकर बौद्धिस्ट 'वैरी नाइस' और 'ब्यूटीफुल' कह रहे हैं. काफी बारीकी और मेहनत से जूट की ये चप्पलें तैयार की जा रही हैं. कोई फीता बंद लगा रहा है, तो कोई धागे तैयार कर रहा है, तो कोई कूट को काटकर उसकी साइज तैयार करने में जुटा है.

गर्मी में जलते थे पांव : बड़ी बात यह है कि जूट की चप्पल को पहनकर बौद्ध श्रद्धालु महाबोधि मंदिर में कहीं भी जा सकते हैं. महाबोधि मंदिर परिसर से लेकर गर्भगृह तक यह चप्पल पहन कर जाया जा सकता है. आम लोग से लेकर पर्यटक भी ऐसा कर सकते हैं. पहले चमड़े के चप्पल जूते पहने रहने के कारण मुख्य गेट के पास ही रोक दिया जाता था और चमड़े की चप्पल जूते उतरवा ली जाती थी. ऐसे में गर्मी के दिनों में श्रद्धालुओं पर्यटकों को काफी परेशानी होती थी. लेकिन अब जूट के चप्पलों का कमाल है कि श्रद्धालु या पर्यटक इसे पहनकर महाबोधि मंदिर में हर जगह आ जा सकते हैं.

पीएम नरेंद्र मोदी के संदेश से मिली प्रेरणा- प्रधानमंत्री का वह संदेश जिसमें उन्होंने महाबोधि मंदिर में चमड़े के चप्पल जूते पहनकर नहीं जाने की बात कही थी, इससे प्रेरणा लेकर उन्होंने जूट के चप्पल को बनाने का आईडिया सोचा और आज करीब सैकड़ों महिलाएं इसके निर्माण में दिन-रात जुटी हुई हैं. इन्होंने यूट्यूब से चप्पल बनाने का तरीका सीखा और फिर खुद आकर्षक जूट की चप्पलें बनाने लगीं. इस समय बौद्ध गया में जूट की चप्पलों की डिमांड काफी बढ़ गई है. बीटीएमसी द्वारा और बौद्ध श्रद्धालुओं के द्वार भी जूट की चप्पलों की खरीदारी की जा रही है. जूट प्लास्टिक की चप्पलों से ज्यादा बेहतर है. यह मिट्टी में आसानी से डिस्पोज भी हो जाता है.

2007 में बना जीविका समूहः जीविका बिहार सरकार द्वारा चलाई जाने वाली यह एक योजना है. इस योजना के चलाने का मुख्य उद्देश्य है कि बिहार से गरीबी को जड़ से खत्म किया जाए. वर्ष 2007 में विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से बिहार रूरल लाइवलिहुड प्रोजेक्ट यानी जीविका शुरू किया गया. 2010 तक प्रोजेक्ट को राज्य के 55 ब्लॉक में शुरू किया गया. इसे बाद से ये समूह लगातार बढ़ता गया. गांव से लेकर अनुमंडल तक हर लेवल पर महिलाओं को आत्मनिर्भन बनाने में जीविका समूह का बड़ा रोल है. गांव की महिलाओं को स्वरोजगार मुहैय्या कराने में जीविका समूह ने कई महत्वपूर्ण काम किए है, कुटीर उद्योग से लेकर, आर्गेनिक खेती, अस्पताल में मरीजों के खाने, बच्चों और महिलाओं के स्वस्थ और बैंक में महिलाओं के खाते खुलवाने, रोजगार के लिए महिलाओं को लोन तक दिलाने में ये अपनी अहम भूमिका निभा रहीं हैं. सीएम नीतीश की ये योजना बिहार में महिलाओं को सशक्त बनाने में मील का पत्थर साबित हुई हैं.

'महाबोधि मंदिर में इस चप्पल को पहन श्रद्धालु जा सकते हैं. बौद्ध श्रद्धालुओं को तपती जमीन से राहत मिलेगी. बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति को इसकी जानकारी हुई, तब 50 चप्पल बनाने का ऑर्डर मिला. इसको बनाकर मंदिर प्रबंधन को देने के बाद अब 200 जूट का चप्पल और बनाने का आर्डर मिला. बौद्ध भंते गांव में घूमने आते हैं, ये लोग जूट का चप्पल देख ब्यूटीफुल और वैरी नाइस कहकर हमारा मनोबल बढ़ाते हैं'- ममता देवी, जीविका दीदी


यह भी पढ़ें - PM स्वनिधि योजना से स्ट्रीट वेंडर्स के चेहरों पर लौटी मुस्कान, चल पड़ी जिंदगी की गाड़ी

पीएम के लोकल फॉर वोकल को बढ़ावाः बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से आग्रह किया कि वो आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देने के लिए लोकल कपड़े, खिलौने, रोजमर्रा के सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स पर जोर दें. भारत में बनने वाली चीजों पर जोर दें. जिसके बाद देश भर में बड़े पैमाने पर कुटीर उद्योग को बढ़ावा भी मिला. गांव की महिलाएं मिट्टी के बर्तन, जूट के सामान, खादी के कपड़े, आर्गेनिक खेती पर जोर दे रही हैं. जिन्हें अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए सरकारी मदद भी मिल रही है. वहीं, जूट की चप्पल बना रही महिलाओं ने भी मांग की है कि इस कारोबार को बड़ा रूप देने के लिए सरकार द्वारा रुपया मुहैया कराए जाएं, ताकि दूसरे बौद्ध देशों में डिमांड पर सप्लाई करे सकें. बीटीएमसी ने भी उनकी इस पहल को सराहा है.

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गयाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'लोकल फॉर वोकल' (Local for Vocal) पर जोर देने की बात कही है. पीएम के इस सपने को साकार करने के लिए कई संस्थाओं और आम लोगों ने इसकी पहल भी कर दी है. बोधगया के रती बीघा गांव (Rati Bigha Village) की रहने वाली महिलाएं (Jeevika Didi Making Jute slippers In Gaya) भी कुछ ऐसा ही कर रहीं हैं, जो आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता हुआ कदम कहा जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय नगरी बोधगया में कुछ महिलाएं इन दिनों जूट की चप्पलें बनाने में लगीं हैं. जो गया ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चा का विषय बन गया है.

ये भी पढ़ेंः महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए दी जा रही आर्थिक सहायता, बिना ब्याज के लौटानी होगी राशि

हैंड मेड हैं जूट की चप्पलें : दरअसल, जूट की चप्पलें बनाने वाली ये मेहनतकश महिलाएं जीविका समूह से जुड़ी हुई हैं और लगातार कुछ नया करने को प्रयासरत रहती हैं. इनकी इसी सोच का नतीजा है कि आज बोधगया में विदेशों से आने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए जूट की चप्पलें उपलब्ध हैं. जिसे देखकर बौद्धिस्ट 'वैरी नाइस' और 'ब्यूटीफुल' कह रहे हैं. काफी बारीकी और मेहनत से जूट की ये चप्पलें तैयार की जा रही हैं. कोई फीता बंद लगा रहा है, तो कोई धागे तैयार कर रहा है, तो कोई कूट को काटकर उसकी साइज तैयार करने में जुटा है.

गर्मी में जलते थे पांव : बड़ी बात यह है कि जूट की चप्पल को पहनकर बौद्ध श्रद्धालु महाबोधि मंदिर में कहीं भी जा सकते हैं. महाबोधि मंदिर परिसर से लेकर गर्भगृह तक यह चप्पल पहन कर जाया जा सकता है. आम लोग से लेकर पर्यटक भी ऐसा कर सकते हैं. पहले चमड़े के चप्पल जूते पहने रहने के कारण मुख्य गेट के पास ही रोक दिया जाता था और चमड़े की चप्पल जूते उतरवा ली जाती थी. ऐसे में गर्मी के दिनों में श्रद्धालुओं पर्यटकों को काफी परेशानी होती थी. लेकिन अब जूट के चप्पलों का कमाल है कि श्रद्धालु या पर्यटक इसे पहनकर महाबोधि मंदिर में हर जगह आ जा सकते हैं.

पीएम नरेंद्र मोदी के संदेश से मिली प्रेरणा- प्रधानमंत्री का वह संदेश जिसमें उन्होंने महाबोधि मंदिर में चमड़े के चप्पल जूते पहनकर नहीं जाने की बात कही थी, इससे प्रेरणा लेकर उन्होंने जूट के चप्पल को बनाने का आईडिया सोचा और आज करीब सैकड़ों महिलाएं इसके निर्माण में दिन-रात जुटी हुई हैं. इन्होंने यूट्यूब से चप्पल बनाने का तरीका सीखा और फिर खुद आकर्षक जूट की चप्पलें बनाने लगीं. इस समय बौद्ध गया में जूट की चप्पलों की डिमांड काफी बढ़ गई है. बीटीएमसी द्वारा और बौद्ध श्रद्धालुओं के द्वार भी जूट की चप्पलों की खरीदारी की जा रही है. जूट प्लास्टिक की चप्पलों से ज्यादा बेहतर है. यह मिट्टी में आसानी से डिस्पोज भी हो जाता है.

2007 में बना जीविका समूहः जीविका बिहार सरकार द्वारा चलाई जाने वाली यह एक योजना है. इस योजना के चलाने का मुख्य उद्देश्य है कि बिहार से गरीबी को जड़ से खत्म किया जाए. वर्ष 2007 में विश्व बैंक की आर्थिक सहायता से बिहार रूरल लाइवलिहुड प्रोजेक्ट यानी जीविका शुरू किया गया. 2010 तक प्रोजेक्ट को राज्य के 55 ब्लॉक में शुरू किया गया. इसे बाद से ये समूह लगातार बढ़ता गया. गांव से लेकर अनुमंडल तक हर लेवल पर महिलाओं को आत्मनिर्भन बनाने में जीविका समूह का बड़ा रोल है. गांव की महिलाओं को स्वरोजगार मुहैय्या कराने में जीविका समूह ने कई महत्वपूर्ण काम किए है, कुटीर उद्योग से लेकर, आर्गेनिक खेती, अस्पताल में मरीजों के खाने, बच्चों और महिलाओं के स्वस्थ और बैंक में महिलाओं के खाते खुलवाने, रोजगार के लिए महिलाओं को लोन तक दिलाने में ये अपनी अहम भूमिका निभा रहीं हैं. सीएम नीतीश की ये योजना बिहार में महिलाओं को सशक्त बनाने में मील का पत्थर साबित हुई हैं.

'महाबोधि मंदिर में इस चप्पल को पहन श्रद्धालु जा सकते हैं. बौद्ध श्रद्धालुओं को तपती जमीन से राहत मिलेगी. बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति को इसकी जानकारी हुई, तब 50 चप्पल बनाने का ऑर्डर मिला. इसको बनाकर मंदिर प्रबंधन को देने के बाद अब 200 जूट का चप्पल और बनाने का आर्डर मिला. बौद्ध भंते गांव में घूमने आते हैं, ये लोग जूट का चप्पल देख ब्यूटीफुल और वैरी नाइस कहकर हमारा मनोबल बढ़ाते हैं'- ममता देवी, जीविका दीदी


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पीएम के लोकल फॉर वोकल को बढ़ावाः बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से आग्रह किया कि वो आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देने के लिए लोकल कपड़े, खिलौने, रोजमर्रा के सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स पर जोर दें. भारत में बनने वाली चीजों पर जोर दें. जिसके बाद देश भर में बड़े पैमाने पर कुटीर उद्योग को बढ़ावा भी मिला. गांव की महिलाएं मिट्टी के बर्तन, जूट के सामान, खादी के कपड़े, आर्गेनिक खेती पर जोर दे रही हैं. जिन्हें अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए सरकारी मदद भी मिल रही है. वहीं, जूट की चप्पल बना रही महिलाओं ने भी मांग की है कि इस कारोबार को बड़ा रूप देने के लिए सरकार द्वारा रुपया मुहैया कराए जाएं, ताकि दूसरे बौद्ध देशों में डिमांड पर सप्लाई करे सकें. बीटीएमसी ने भी उनकी इस पहल को सराहा है.

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Last Updated : Apr 12, 2022, 2:24 PM IST
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