पटनाः बिहार के पक्ष और विपक्ष के नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर को भले ही अपना आदर्श बताते हों. लेकिन उनकी याद में बनाया गया संग्रहालय की जिम्मेदारी लेने को शायद ही कोई पार्टी तैयार है.
बिहार की राजनीति में पिछड़े समाज से आने वाले एक व्यक्ति ने अपने ईमानदार छवि होने के कारण राज्य से निकलकर राष्ट्रीय पटल पर जननायक का दर्जा हासिल किया. उनकी छोटी बड़ी निशानियों और धरोहरों को संजोएं पटना के वीवीआइपी इलाके देश रत्न मार्ग में बनाया गया कर्पूरी स्मृति संग्रहालय पूरी तरह से उपेक्षित है.
खास है जननायक का संग्रहालय
कर्पूरी स्मृति संग्रहालय में जननायक कर्पूरी ठाकुर के कपड़े कुर्ता, धोती, स्वेटर और उनका इस्तेमाल किया गया चश्मा, घड़ी, पेन और चाबी के गुच्छे भी सहेज कर रखे गए हैं. तो वहीं कई फोटो गैलरी भी हैं जहां उनके राजनैतिक जीवन से लेकर परिवारिक जीवन तक की तस्वीरे लगाई गई हैं.
संग्रहालय में समस्तीपुर गोली कांड और पटना में हुए बॉबी हत्याकांड के खिलाफ तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ सदन में लगाए गए अविश्वास प्रस्ताव के उस पत्र को भी गैलरी में लगाये गया है.
पर्यटकों की कमी
राज्य और देश में ईमानदारी के प्रतीक बने समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के इस स्मृति संग्रहालय में पर्यटकों की सूची न के बराबर है. संग्रहालय में रखे गए विजिटर रजिस्टर के आधार पर पिछले चार महीनों में यहां आने वालों का आंकड़ा सौ भी पार नहीं कर पाया.
क्या कहते हैं संग्रहालयध्यक्ष
संग्रहालय के अध्यक्ष सुनील कुमार चुन्नी भी मानते हैं कि यहां आने वालों की संख्या कम है. इसका कारण बेहतर तरीके से प्रचार प्रसार का नहीं होना है. सुनील कुमार चुन्नी का दावा है कि जल्द ही पर्यटन विभाग से मिलकर इसको डेवलप किया जाएगा. ताकि जननायक की इस विरासत को लेकर लोगों का झुकाव बढ़े. साथ ही यहां जो कमियां है विभाग की ओर से उन्हें दूर करने का काम किया जा रहा है.
कैसे बचे ये विरासत
बहरहाल राज्य में तीन दशक से कर्पूरी ठाकुर के शिष्य रहे लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील मोदी सत्ता के शिर्ष पर बने है. लेकिन कर्पूरी के सपने आज भी अधूरे ही हैं. हर साल जननायक की जयंती पर राजनेता खुद को उनका वारिस तो घोषित करते हैं लेकिन उनकी विरासत को सहेजने की जिम्मेदारी नहीं लेते.