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मजदूर दिवस: 'बिना दिहाड़ी के घर में चूल्हा नहीं जलता साहब, किस बात की छुट्टी'

'हमारे लिए कैसा अवकाश. आज के दिन हम घर पर बैठ जाए तो इससे हमें ही नुकसान होगा. घर के चूल्हे बिना दिहाड़ी मजदूरी के नहीं जलते और खासकर के शहर में रहकर बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है.'

मजदूर दिवस
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Published : May 1, 2019, 1:08 PM IST

पटनाः मई दिवस यानी कि मजदूर दिवस, हर साल 1 मई को दुनिया भर में यह दिन मनाया जाता है. इस दिन भारत ही नहीं दुनिया के करीब 80 देशों में राष्ट्रीय अवकाश रहता है. भारत में मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय है. चुनावी मौसम में नेताओं के वादों, घोषणा पत्रों या सिर्फ भाषणों में ही मजदूरों का जिक्र होता है.

इससे आगे मजदूरों का कितना भला हुआ है इसकी जमीनी पड़ताल की तो काफी मायूसी नजर आती है. इसकी शुरुआत 1886 में हुई थी और 1889 में मजदूर दिवस मनाने का ऐलान किया गया था. पिछले कुछ सालों में मजदूरों की मजदूरी थोड़ी बढ़ी जरूर है मगर काम आधा हो गया है.

labour day
दूसरे जिलों से राजधानी आते हैं मजदूर

कितने मजबूर राजधानी के मजदूर
राजधानी पटना में मजदूरों से बात की गई तो उनका कहना है कि हम लोग हर साल वोट डालते हैं. इसके बाद भी उनके इलाके के नेता उनकी सुध नहीं लेते. इसको लेकर ईटीवी भारत में पटना के विभिन्न चौक चौराहों पर मजदूर दिवस के दिन भी काम के जुगाड़ में खड़े मजदूरों से बात की तो उन्होंने बताया कि बिना कमाए उनके घर के चूल्हे नहीं जलते और बच्चों को पढ़ाने की बात तो छोड़ ही दीजिये.

दूसरे जिलों से आए मजदूरों की समस्या
बिहार के कई जिलों से पटना के भट्टाचार्य मोड़, हड़ताली मोड़ और बेली रोड पर दिहाड़ी मजदूरी ढूंढते मजदूरों ने बताया कि शाम को रोटी का इंतजाम हो जाए इसकी खातिर सड़क पर खड़े होकर खुद की बोली लगानी पड़ती है. 400 से 600 रु रोजाना दिहाड़ी मजदूरी मिलने के बावजूद उनके हिस्से में 300 से 500 ही आते हैं. बीच के 100 रुपये तो दलाली में चले जाते हैं. ये पैसे उन्हें सड़क पर खड़े वैसे दलालों को देना पड़ता है जो उन्हें काम दिलाने का जुगाड़ करते हैं.

काम की तलाश में चौक पर जमा होते हैं मजदूर

मजदूरों के लिए अवकाश
मजदूरों का कहना है कि आज होगी हर कहीं छुट्टी, लेकिन हमारे लिए कैसा अवकाश. आज के दिन हम घर पर बैठ जाए तो इससे हमें ही नुकसान होगा. उनके घर के चूल्हे बिना दिहाड़ी मजदूरी के नहीं जलते और खासकर के शहर में रहकर बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

उनके लिए कितने बदले हालात
सड़क पर खड़े 40% मजदूर काम ना मिलने की वजह से घर लौट जाते हैं. खुद वे भूखे सो भी जाएं पर परिवार को भूखा कैसे छोड़े. मजदूर दिवस पर मिलने वाले अवकाश से इनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता. इतने साल बीत जाने के बाद भी मजदूरों की मनोदशा और परिस्थिति वैसे ही है.

पटनाः मई दिवस यानी कि मजदूर दिवस, हर साल 1 मई को दुनिया भर में यह दिन मनाया जाता है. इस दिन भारत ही नहीं दुनिया के करीब 80 देशों में राष्ट्रीय अवकाश रहता है. भारत में मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय है. चुनावी मौसम में नेताओं के वादों, घोषणा पत्रों या सिर्फ भाषणों में ही मजदूरों का जिक्र होता है.

इससे आगे मजदूरों का कितना भला हुआ है इसकी जमीनी पड़ताल की तो काफी मायूसी नजर आती है. इसकी शुरुआत 1886 में हुई थी और 1889 में मजदूर दिवस मनाने का ऐलान किया गया था. पिछले कुछ सालों में मजदूरों की मजदूरी थोड़ी बढ़ी जरूर है मगर काम आधा हो गया है.

labour day
दूसरे जिलों से राजधानी आते हैं मजदूर

कितने मजबूर राजधानी के मजदूर
राजधानी पटना में मजदूरों से बात की गई तो उनका कहना है कि हम लोग हर साल वोट डालते हैं. इसके बाद भी उनके इलाके के नेता उनकी सुध नहीं लेते. इसको लेकर ईटीवी भारत में पटना के विभिन्न चौक चौराहों पर मजदूर दिवस के दिन भी काम के जुगाड़ में खड़े मजदूरों से बात की तो उन्होंने बताया कि बिना कमाए उनके घर के चूल्हे नहीं जलते और बच्चों को पढ़ाने की बात तो छोड़ ही दीजिये.

दूसरे जिलों से आए मजदूरों की समस्या
बिहार के कई जिलों से पटना के भट्टाचार्य मोड़, हड़ताली मोड़ और बेली रोड पर दिहाड़ी मजदूरी ढूंढते मजदूरों ने बताया कि शाम को रोटी का इंतजाम हो जाए इसकी खातिर सड़क पर खड़े होकर खुद की बोली लगानी पड़ती है. 400 से 600 रु रोजाना दिहाड़ी मजदूरी मिलने के बावजूद उनके हिस्से में 300 से 500 ही आते हैं. बीच के 100 रुपये तो दलाली में चले जाते हैं. ये पैसे उन्हें सड़क पर खड़े वैसे दलालों को देना पड़ता है जो उन्हें काम दिलाने का जुगाड़ करते हैं.

काम की तलाश में चौक पर जमा होते हैं मजदूर

मजदूरों के लिए अवकाश
मजदूरों का कहना है कि आज होगी हर कहीं छुट्टी, लेकिन हमारे लिए कैसा अवकाश. आज के दिन हम घर पर बैठ जाए तो इससे हमें ही नुकसान होगा. उनके घर के चूल्हे बिना दिहाड़ी मजदूरी के नहीं जलते और खासकर के शहर में रहकर बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

उनके लिए कितने बदले हालात
सड़क पर खड़े 40% मजदूर काम ना मिलने की वजह से घर लौट जाते हैं. खुद वे भूखे सो भी जाएं पर परिवार को भूखा कैसे छोड़े. मजदूर दिवस पर मिलने वाले अवकाश से इनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता. इतने साल बीत जाने के बाद भी मजदूरों की मनोदशा और परिस्थिति वैसे ही है.

Intro:मई दिवस यानी कि मजदूर दिवस हर साल 1 मई को दुनिया भर में मजदूर दिवस मनाया जाता है इस दिन कंपनियों में अवकाश रहता है सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के करीब 80 देशों में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है मजदूर दिवस की शुरुआत 1886 में हुई थी और 1889 में मजदूर दिवस मनाने का ऐलान किया गया ..

वहीं चुनावी मौसम मौसम में नेताओं के वादों में घोषणा पत्रों में या सिर्फ भाषणों में मजदूरों का जिक्र होता है इससे आगे मजदूरों का कितना भला हुआ है इसकी जमीनी पड़ताल की तो काफी मायूसी नजर आई , हालांकि पिछले कुछ सालों में मजदूरों की मजदूरी थोड़ी जरूर बढ़ी है मगर काम आधा हो गया खास करके ये तमाम मजदूर वोट डालते हैं और उनकी टीस यह है इसके बाद भी उनके इलाके के नेता उनकी सुध नहीं लेते , इसको लेकर ईटीवी भारत में पटना के विभिन्न चौक चौराहों पर मजदूर दिवस के दिन भी मजदूरी के जुगाड़ में खड़े मजदूरों से बात की तो उन्होंने बताया की बिना कमाए उनके घर के चूल्हे नहीं जलते और बच्चो को पढ़ाने की बाते तो छोड़ ही दीजिये...


Body:ऐसे में बिहार के कई जिलों से पटना के भट्टाचार्य मोड़ , हड़ताली मोड़ और बेली रोड पर दिहाड़ी मजदूरी ढूंढते मजदूरों ने बताया कि शाम को रोटी का इंतजाम हो जाए इसकी खातिर सड़क पर खड़ा होकर खुद की बोली लगानी पड़ती है 400 से 600 रु रोजाना दिहाड़ी मजदूरी मिलने के बावजूद उनके हिस्से में 300 से 500 ही आते हैं बीच के 100 रु दलाली के रूप में उन्हें सड़क पर खड़े वैसे दलालों को देना पड़ता है जो उन्हें काम दिलाने का जुगाड़ करते हैं....


Conclusion:वहीं कई मजदूरों ने बताया उनके घर के चूल्हे बिना दिहाड़ी मजदूरी के नहीं जलते और खासकर के शहर में रहकर बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है और इसके लिए उन्हें हर दिन सड़कों पर निकल कर खुद की बोली लगानी पड़ती है और काम ढूंढना पड़ता है सड़क पर कई दलाल होते हैं जो उन्हें काम दिलाते हैं और उसके एवज में उन्हें बतौर कमीशन उन्हें ₹100 प्रतिदिन देने पड़ते हैं...

सड़क पर खड़े 40% मजदूर काम ना मिलने की वजह से घर लौट जाते हैं और उनके घर के चूल्हे बिना उनके दिहाड़ी मजदूरी के नहीं जलता थे फिर सवाल यह उठता है आखिर हम किस लिए मजदूर दिवस मनाते हैं इतने साल बीत जाने के बाद भी मजदूरों की मना मनोदशा और परिस्थिति वैसे ही है फिर यह कैसा मजदूर दिवस.....
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