बक्सर : ईटीवी भारत की मुहिम एक बार फिर रंग ला रही है. नतीजतन जिले के धन्वन्तरि आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय सूरत अब बदलने लगी है. हम लगातार इस महाविद्यालय के लिए खबरें दिखाते रहे हैं. एक समय ऐसा था कि यह महाविद्यालय खंडहर में तब्दील होता दिख रहा था. लेकिन संघर्ष समिति और हमारे प्रयासों से अब इसका कायाकल्प होता दिख रहा है.
कुछ दिनों पहले तक जो महाविद्यालय घास, फूस से पटा हुआ खंडहर जैसा दिखता था, अब वहां साफ सफाई के साथ सौंदर्यीकरण की शुरुआत हो गई है. रंग रोगन का कार्य भी हुआ है. महाविद्यालय परिसर में आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि और और कॉलेज के संस्थापक की प्रतिमा लगाई गई है.
अवधेश नारायण सिंह ने किया प्रतिमाओं का अनावरण
राजकीय धन्वन्तरि आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह बक्सर पहुंचे. यहां उन्होंने भगवान धन्वन्तरि तथा इस महाविद्यालय के संस्थापक स्वर्गीय डॉ. सिद्धनाथ तिवारी के प्रतिमा का अनावरण किया. इस दौरान उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए सभापति ने कहा कि बक्सर के लिए यह गौरव की बात है कि यहां आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय की स्थापना की गई है. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद अनादिकाल से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है, ऐसे में कभी शाहाबाद के गौरव रहे धन्वन्तरि आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय की बदहाल स्थिति आश्चर्यजनक है. जबकि सरकार ज्यादा से ज्यादा देसी चिकित्सालय तथा देसी चिकित्सा पद्धति को अपनाने पर जोर दे रही है.
'लग रहा है हो जाएगा कायाकल्प!'
वैश्विक महामारी कोरोना काल में पूरे वैश्विक स्तर पर लोगों ने आयुर्वेद की उपयोगिता साबित की है. लोग कोरोना वायरस से बचाव के लिए काढ़ा का सेवन कर रहे थे. कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य बीबी राम ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि निश्चित रूप से हालात बदलने के आसार दिख रहे हैं. सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा है कि वे पटना जाकर मुख्यमंत्री और केंद्र और राज्य के स्वास्थ्य मंत्रियों से भी इसके उद्धार के लिए बात करेंगे. ऐसे में लगता है कि शाहाबाद के इस इकलौते आयुर्वेद कॉलेज का काया कल्प हो जाएगा.
महाविद्यालय के बारे में...
गौरतलब है कि धन्वन्तरि आयुर्वेद कॉलेज बक्सर की स्थापना 1972 में और इसका सरकारी करण 9 दिसंबर 1986 को हुआ था. इसके पहले यह कॉलेज निजी प्रबंधन के हाथों में था. प्राप्त जानकारी के अनुसार तब इस कॉलेज की स्थिति काफी अच्छी थी. सरकारीकरण के बाद से इस कॉलेज की हालत लगातार खराब होती चली गई. पहले यहां क्लास रूम और लैब रूम सहित सारी सुविधाएं थीं.
सरकारी उदासीनता के कारण 2003 में धन्वन्तरि आयुर्वेद कॉलेज में नामांकन पर पाबंदी लगा दी गई और 2007 से यहां पढ़ाई ठप हो गई. गौरतलब है की यहां कुल 112 पद स्वीकृत हैं और अभी केवल 22 ही बचे हैं. बिहार में कुल पांच आयुर्वेद कॉलेज हैं, जो पटना, बेगूसराय, दरभंगा, भागलपुर और बक्सर में स्थित है. इनमें सबसे बदहाल स्थिति अभी बक्सर आयुर्वेद महाविद्यालय की है. देखना होगा कायाकल्प की दिशा में अग्रसर ये महाविद्यालय कब अपने पुराने अस्तित्व को फिर से जीएगा.