नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मुस्लिम महिला की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें उसने शरीयत के बजाय इंडियन सक्सेशन लॉ के तहत शासन करने की मांग की है. यह मामला भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया, जिसमें जस्टिस संजय कुमार और के वी विश्वनाथन शामिल थे.
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि याचिकाकर्ता ने एक दिलचस्प सवाल उठाया है.मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला जन्मजात मुस्लिम है और उसका कहना है कि वह शरीयत में विश्वास नहीं करती और उसे लगता है कि यह एक रिग्रेसिव कानून है.
5 मई को होगी अगली सुनवाई
पीठ ने मेहता को जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा. मेहता ने पीठ से मामले में निर्देश लेने के लिए तीन सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया. इस पर पीठ ने उन्हें चार सप्ताह का समय दिया और मामले की सुनवाई 5 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में निर्धारित कर दी.
यह याचिका 'एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल' की महासचिव सफिया पी एम द्वारा दायर की गई है. याचिका में कहा गया है, "याचिकाकर्ता चाहता है कि जो लोग मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं होना चाहते हैं, उन्हें देश के धर्मनिरपेक्ष कानून, अर्थात भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 द्वारा शासित होने की अनुमति दी जानी चाहिए, चाहे वह बिना वसीयत के हो या वसीयतनामा के उत्तराधिकार के मामले में हो."
गैर-मुस्लिम पिता की जन्मी मुस्लिम महिला
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता एक गैर-मुस्लिम पिता की जन्मी मुस्लिम महिला है, जिसने आधिकारिक तौर पर धर्म नहीं छोड़ा है, उसे अपने बहुमूल्य नागरिक अधिकारों की रक्षा करने में अजीबोगरीब समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
याचिका में कहा गया है, "भारत में कोई भी व्यक्ति जो मुस्लिम के रूप में पैदा होता है, वह मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत शासित होता है. शरिया कानून के अनुसार, जो व्यक्ति इस्लाम में अपना विश्वास छोड़ देता है, उसे उसके समुदाय से बेदखल कर दिया जाएगा और उसके बाद वह अपनी पैतृक संपत्ति में किसी भी तरह के उत्तराधिकार का हकदार नहीं होता है.
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता एक डिक्लेरेशन प्राप्त करना चाहती है कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 या 3 में सूचीबद्ध किसी भी मामले के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं होगी, लेकिन अधिनियम या नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत वह ऐसा प्रमाण पत्र प्राप्त कर सके.
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