बक्सर: किसानों की मुसीबत यह है कि उन्हें एक नहीं दोहरी मार हर बार झेलनी पड़ जाती है. अगर मौसम की मार से बच भी गए तो फसल की अनुचित दाम मार डालती है. पिछले एक सप्ताह से मौसम का मिजाज बदला हुआ है. कभी धूप कभी छांव ने रबी फसल पर ग्रहण लगा दिया है. बेमौसम बारिश ने तो और भी बेड़ा गर्क करके रख दिया है. किसान न तो खेतों की सिंचाई कर पा रहे हैं न ही कीटों से फसल को बचाने के लिए दवा का छिड़काव कर पार रहे हैं.
पिछले एक सप्ताह से बदल रहे मौसम ने अन्नदाताओं की चिंता बढ़ा कर रख दी है. कभी अचानक पूरे दिन तेज धूप खिली रहती है. तो कभी पूरी रात आसमान में बादल छाए रहते हैं. बारिशों की बूंदें और घने कोहरे ने सरसों, आलू और गेंहू की फसल पर ग्रहण लगा दिया है.
किसानों में जगी थी उम्मीद
कोरोना काल ने किसानों ने बंजर जमीन का भला कर दिया था. जिस रेतीली जमीन पर एक दाना भर का अनाज नहीं उपजता था. उन जमीनों को प्रवासी श्रमिकों की मदद से खेती के लिए तैयार कर लिया. किसानों ने उन घर लौटे प्रवासी श्रमिकों की बदौलत 90 हजार हेक्टेयर भूमि पर बंपर 5 लाख 20 हजार मैट्रिक टन धान की रिकॉर्ड उपज की. बंपर उत्पादन से उत्साहित किसानों को यह उम्मीद थी कि रबी फसल के दौरान भी मौसम साथ देगा. और जिले में रबी फसल की उपज भी बेहतर होगी. लेकिन मौसम के बदलते रूख ने जिले के किसानों के उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
क्या कहते हैं किसान?
15 नवम्बर से 25 दिसम्बर के बीच 80-85 हजार हेक्टेयर भूमि पर किसानों ने केवल गेंहू फसल की बुवाई किया. जिसका 21 से 25 दिनों के अंदर सिंचाई करना अनिवार्य होता है. लेकिन आसमान में लग रहे बादल के कारण किसान खेतों की सिंचाई करने में भी डर रहे हैं. किसान कह रहे हैं कि, 'कही सिंचाई के बाद बारिश हो गई तो फसल के लिए काफी नुकसानदायक हो जायेगा'. जिले के सदर प्रखंड के युवा किसान भानु यादव ने बताया कि मौसम में लगतार परिवर्तन हो रहा है. मौसम की धूप-छांव के चलते अब तक पटवन नहीं हो पाया. थोड़ी देर और हो गई तो फसल बर्बाद हो जाएगी.
कृषि अनुंसधान हर संभव मदद करेगा-डॉक्टर मंधाता सिंह, वैज्ञानिक
किसानों के इस समस्या को लेकर कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर मंधाता सिंह ने बताया कि 85 हजार हेक्टेयर भूमि पर किसानों ने केवल गेंहू की खेती की है. गेंहू की पहली सिंचाई की जा रही है. लेकिन जिस तरह से मौसम में बदलाव हो रहा है. उसे देखते हुए किसान अपने सूझबूझ और कृषि अनुसंधान केंद्र पर उपलब्ध वैज्ञानिकों से सलाह लेकर बेहतर उत्पादन कर सकते हैं. उन्होंने कहा यदि किसान फोन पर भी जानकारी लेना चाहें तो ले सकते हैं. उन्हें किसी भी कृषि यंत्र की आवश्यकता हो उसे भी हम लोग उपलब्ध कराएंगे.
अपने फौलादी हाथों से बंजर जमीन को भी फसलों से लह-लहा देने वाले अन्नदाताओं के घर अब खुद भोजन का संकट गहराने लगा है. उन्हें न तो फसल का सही दाम मिल पाता है न ही मौसम का साथ. नतीजतन किसानों की माली हालत सुधरने की बजाए और बिगड़ती जा रही है.