औरंगाबादः जिले के मदनपुर प्रखंड के बनिया पंचायत का यह गांव इन दिनों चर्चा में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आत्मनिर्भर भारत योजना की शुरुआत करने की घोषणा से बहुत पहले ही यहां की महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई है. यहां की महिलाएं खादी ग्रामोद्योग समिति की ओर से दिए गए त्रिपुरारी मॉडल के चरखा से सूत काटकर विभाग को देते हैं. बदले में विभाग से उन्हें मेहनतना मिलता है. मेहनताना इतना होता है कि उनकी रोजी-रोटी चल जाए. इधर लॉकडाउन में उन्हें मजदूरी नहीं मिल रही है. इस कारण वे परेशान हैं.
जिले के मदनपुर प्रखंड के बनिया ग्राम आज भी महात्मा गांधी के सपनों को साकार कर रहा है. महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज्य और जयप्रकाश नारायण के सर्वोदय आंदोलन के बाद भारत में निवासरत ग्रामीणों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण के लिए चरखा अभियान चलाया गया था. जिसके सूत से खादी के कपड़े बनते थे और इन कपड़ों की बिक्री से जो मुनाफा होता था, उसे ग्रामीणों के बीच बांट दिया जाता था. आज भी औरंगाबाद के ग्रामीण अंचल में यह परंपरा लगातार जारी है.
क्या है त्रिपुरारी मॉडल
जिले में दो तरह के मशीनों पर सूत की कटाई होती है. पहला मशीन है त्रिपुरारी मॉडल और दूसरा किसान मॉडल. किसान मॉडल पुराना मॉडल है जिसमें एक तरह से रेशम के धागे की कटाई होती है. वहीं त्रिपुरारी मॉडल की खासियत यह है कि इसमें सूती, ऊनी और रेशमी तीनों ही धागों को काटने की व्यवस्था है. जिले के नवीनगर प्रखंड में किसान मॉडल चरखा ज्यादा चलता है. लेकिन अन्य प्रखंडों में खासकर के मदनपुर के बनिया ग्राम में त्रिपुरारी मॉडल चरखा है जो चलाया जा रहा है. त्रिपुरारी मॉडल की कीमत 17 हजार रुपये है. लेकिन ग्रामीणों से इसकी कोई कीमत नहीं ली जाती है. यह मशीन उन्हें मुफ्त में दी जाती है. सिर्फ उनसे मेंटेनेंस का खर्च लिया जाता है.
कितना होता है मुनाफा
कच्चा सूत खादी ग्रामोद्योग कि ओर से सप्लाई किया जाता है. जिसे धागों में बदलने की जिम्मेदारी इन ग्रामीणों की होती है. देखा जाए तो प्रति किलो उन्हें 300 से 400 रुपये मेहनताना का भुगतान किया जाता है और वे महीने में लगभग 7 से 8 हजार रुपये सूत कटाई के जरिए कमाई कर लेते हैं.
लॉकडाउन में पिछले तीन महीने से नहीं हुआ है भुगतान
खादी ग्रामोद्योग से कांट्रैक्ट पर काम वाली ग्रामीण महिलाएं बताती हैं कि उन्हें पहले तो लगातार पेमेंट मिलते रहते थे. लेकिन लॉकडाउन के बाद से उन लोगों को भुगतान में समस्या होने लगी. लखपति देवी बताती है कि वे 67 किलो सूत कात कर विभाग को दे चुकी हैं. लेकिन उसका हिसाब अभी तक नहीं हुआ है. इसी तरह से निर्मला देवी, सुनीता देवी, प्रमिला देवी, शर्मिला देवी, राजंती देवी और पूनम देवी आदि महिलाओं का भी कहना था कि उन्हें लॉकडाउन में पेमेंट का भुगतान नहीं हो रहा है. जिस कारण से उनकी घर की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है. अन्य महिलाओं की भी अपनी समस्याएं थी और सब की मांग थी कि उन्हें जल्द से जल्द बकाया का भुगतान कर दिया जाए.
लॉक डाऊन में नहीं हुई बिक्री
खादी ग्रामोद्योग समिति के जिला सचिव शालिकग्राम मंडल बताते हैं कि खादी ग्रामोद्योग समिति की ओर से मशीन और सूत ग्रामीणों को दिया जाता है. जिससे वे सूत कात कर वापस विभाग को लौटाते हैं. मेहनताना के रूप में उन्हें प्रति किलो 300 से 400 रुपये तक का भुगतान किया जाता है. लेकिन इस बार लॉकडाउन में दुकानें बंद रहने के कारण बिक्री प्रभावित हुई है और यही कारण है कि समय पर भुगतान नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि 2 अक्टूबर तक स्थिति में सुधार आएगी और सभी महिलाओं के बकाया पैसों का भुगतान उनके बैंक अकॉउंट में कर दिया जाएगा.
डेढ़ करोड़ सालाना का है कारोबार
खादी ग्रामोद्योग समिति के सचिव शालिकग्राम मंडल ने बताया कि जिले में खादी ग्राम उद्योग समिति का एक करोड़ 40 लाख रुपये के सालाना उत्पादन और 1 करोड़ 70 लाख रुपये के बिक्री का लक्ष्य रखा था. हालांकि लक्ष्य तो ज्यादा का रखा गया था. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण 20 से 50 लाख रुपये के कारोबार में कमी आ सकती है और आगे का कुछ भी निश्चित नहीं है. पिछले साल एक लाख एक करोड़ 40 लाख रुपये का कारोबार हुआ था. जिसमें उत्पादन और बिक्री समान था. खादी ग्राम उद्योग एक स्वायत्तशासी संस्था है और वे लगातार प्रयास करते रहे हैं कि इसके मुनाफे में वृद्धि हो. लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. इसके लिए प्रचार प्रसार की आवश्यकता है.
आत्मनिर्भर भारत योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आत्मनिर्भर भारत योजना का नारा भले ही दिया गया हो. लेकिन महात्मा गांधी ने यह नारा आजादी के समय ही दिया था कि आत्मनिर्भर बनना है तो चरखा चलाओ और चरखा कम मात्रा में ही सही लोगों को रोजगार दे रहा है. जरूरत इस बात की है कि खादी और खादी से जुड़े उत्पादों की बिक्री बढ़े, जिस कारण हजारों परिवारों को रोजी-रोटी की व्यवस्था हो सके.