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ऐतिहासिक अब्दुलबारी पुल का अस्तित्व खतरे में, अवैध बालू उत्खनन से डैमेज हो रही नींव

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Published : Nov 9, 2020, 11:51 AM IST

भोजपुर के ऐतिहासिक अब्दुलबारी पुल पर वाहनों की हो रही आवाजाही खतरे से खाली नहीं है. ना ही जिला प्रशासन और ना ही रेलवे प्रशासन को इसकी परवाह है. विभाग इस पुल पर किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है.

लल
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भोजपुरः हावड़ा-दिल्ली को जोड़ने वाली सोन नदी पर बना कोइलवर का अब्दुल बारी पुल का अस्तित्व अब खतरे में नजर आ रहा है. अब्दुल बारी पुल के पिलर का प्लेटफार्म टूटने से पुल पर खतरा मंडरा रहा है.

सोन नदी में हुए बालू की अंधाधुंध कटाई ने करीब 156 साल पुराने इस पुल की नींव को हिलाकर रख दिया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लोहे के गाटर से बने इस दोहरे और दो मंजिला पुल के निर्माण तकनीक और सुंदरता लोगों को आज भी आकर्षित करती है. सोन नदी पर यह पुल 1862 ई. में बनकर तैयार हुआ था. इस पुल का नाम बिहार के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी के नाम पर अब्दुल बारी पुल रखा गया. 1440 मीटर लंबे इस पुल को 1962 की फिल्म "गांधी" में भी दिखाया गया है.

ऐतिहासिक अब्दुल बारी पुल
ऐतिहासिक अब्दुल बारी पुल

पुल से गुजरते हैं सैकड़ों वाहन और रेलगाड़ियां
पुल के ऊपरी मंजिल स्थित अप और डाउन रेल लाइन से दर्जनभर सुपरफास्ट ट्रेन समेत दर्जनों यात्री और गुड्स ट्रेनें गुजरती हैं. वहीं, नीचे सड़क मार्ग से रोजाना हजारों वाहन बस, कार आदि यात्री वाहन सड़क मार्ग से गुजरते हैं. सोन नद में हुए लगातार बालू उत्खनन के कारण पुल का नींव टूटने लगी है. रोजाना दर्जनों नेता मंत्री इस पुल से होकर गुजरते हैं. लेकिन किसी की नजर पुल के नींव पर नहीं जाती.

अब्दुल बारी पुल बनी रेल पटरी
अब्दुल बारी पुल बनी रेल लाइन

उद्घाटन के इंतजार में नया पुल
पुल के 28 पिलरों में से कई की नींव डैमेज होने से पुल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. हालांकि सोन नदी में अब्दुल बारी पुल के उत्तर में बन रहे नए सिक्स लेन पुल के चालू होने से इस पुराने पुल पर भार जरूर कम हो जायेगा. लेकिन अभी वो उद्घाटन के इंतजार में पड़ा है.

भोजपुरः हावड़ा-दिल्ली को जोड़ने वाली सोन नदी पर बना कोइलवर का अब्दुल बारी पुल का अस्तित्व अब खतरे में नजर आ रहा है. अब्दुल बारी पुल के पिलर का प्लेटफार्म टूटने से पुल पर खतरा मंडरा रहा है.

सोन नदी में हुए बालू की अंधाधुंध कटाई ने करीब 156 साल पुराने इस पुल की नींव को हिलाकर रख दिया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लोहे के गाटर से बने इस दोहरे और दो मंजिला पुल के निर्माण तकनीक और सुंदरता लोगों को आज भी आकर्षित करती है. सोन नदी पर यह पुल 1862 ई. में बनकर तैयार हुआ था. इस पुल का नाम बिहार के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी के नाम पर अब्दुल बारी पुल रखा गया. 1440 मीटर लंबे इस पुल को 1962 की फिल्म "गांधी" में भी दिखाया गया है.

ऐतिहासिक अब्दुल बारी पुल
ऐतिहासिक अब्दुल बारी पुल

पुल से गुजरते हैं सैकड़ों वाहन और रेलगाड़ियां
पुल के ऊपरी मंजिल स्थित अप और डाउन रेल लाइन से दर्जनभर सुपरफास्ट ट्रेन समेत दर्जनों यात्री और गुड्स ट्रेनें गुजरती हैं. वहीं, नीचे सड़क मार्ग से रोजाना हजारों वाहन बस, कार आदि यात्री वाहन सड़क मार्ग से गुजरते हैं. सोन नद में हुए लगातार बालू उत्खनन के कारण पुल का नींव टूटने लगी है. रोजाना दर्जनों नेता मंत्री इस पुल से होकर गुजरते हैं. लेकिन किसी की नजर पुल के नींव पर नहीं जाती.

अब्दुल बारी पुल बनी रेल पटरी
अब्दुल बारी पुल बनी रेल लाइन

उद्घाटन के इंतजार में नया पुल
पुल के 28 पिलरों में से कई की नींव डैमेज होने से पुल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. हालांकि सोन नदी में अब्दुल बारी पुल के उत्तर में बन रहे नए सिक्स लेन पुल के चालू होने से इस पुराने पुल पर भार जरूर कम हो जायेगा. लेकिन अभी वो उद्घाटन के इंतजार में पड़ा है.

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