भागलपुरः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. जिसके तहत राज्य के सभी 38 जिलों में मौसम आधारित कृषि योजना का उद्घाटन भी किया गया है. इस योजना के तहत यह प्रयास किया जा रहा है कि खेतों में साल भर के सभी 365 दिन किसान मौसम के अनुसार कोई ना कोई फसल की उपजाएं. जिससे उन्हें अच्छी आय हो सके. उसी को ध्यान में रखते हुए किसानों को जागरूक करने के लिए लगातार कार्यक्रम चलाया जा रहा है. राज्य के आला अफसर से लेकर जिलाधिकारी तक को किसानों को जागरूक करने के लिए निर्देशित किया गया है. वहीं गुरुवार को बिहार के कृषि सचिव और मुख्यमंत्री के कार्य पदाधिकारी एक दिवसीय दौरे पर भागलपुर पहुंचे. जहां उन्होंने सबौर स्थित कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र में जिले के सैकड़ों किसानों से सीधा संवाद किया और मौसम आधारित खेती करने के बारे में बताया.
अवशेष प्रबंधन पर करें शोध
कृषि सचिव और मुख्यमंत्री के कार्य पदाधिकारी ने कृषि विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन और नई तकनीक से खेती को लेकर किए जा रहे प्रयोग और अनुसंधान का जायजा लिया. इस दौरान उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय के किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए मौसम आधारित खेती को लेकर भी शोध करने का आग्रह किया. कृषि विश्वविद्यालय से भी फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर अनुसंधान करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर उद्योग भी लगाया जाएगा. इसलिए कार्य योजना तैयार कर बिहार सरकार को दें.
मौसम आधारित करें खेती
किसानों से सीधा संवाद करते हुए कृषि सचिव डॉ. एन सरवण कुमार ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार किसानों की आय दोगुनी हो उसको लेकर योजना चला रहे हैं. उसी कार्यक्रम में मौसम आधारित खेती भी शामिल है. मौसम आधारित खेती राज्य के 8 जिलों में पहले से ही लागू थी. इस वर्ष 14 दिसंबर से पूरे राज्य भर में इसे लागू कर दिया गया है. हाल के दिनों में जलवायु में बहुत बड़ा बदलाव आ गया है. जिस कारण बाढ़ और सूखा जैसी समस्या भी उत्पन्न हुई है. ऐसे में जरूरी है कि मौसम के आधारित खेती करें. 365 दिनों तक का रोड मैप तैयार कृषि विभाग द्वारा किया गया है. उस तरीके को किसान अपना सकते हैं. जिससे 365 दिन तक अपने खेतों में फसल का उपज कर सकेंगे और आय दोगुनी होगी.
उर्वरा शक्ति होगी खत्म
वहीं किसानों के लिए पराली जलाने वाली समस्या है. उसको लेकर हम पूरे राज्य भर में सर्वे करने के बाद यहां पहुंचे हैं. उन्होंने कहा कि पराली जलाना काफी आसान है. किसान धान की कटाई करने के बाद अगले फसल को लगाने के लिए फसल अवशेष को जलाना आसान समझते हैं. लेकिन यह आसान तो है लेकिन काफी नुकसान देह है. खेतों में फसल अवशेष को जलाने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता खत्म होती है और खेत की मिट्टी को जीवित रखने वाले जीव जंतु भी नष्ट हो जाते हैं. इसी तरह से यदि पराली जलाने की परंपरा बढ़ती रही तो आने वाले दिनों में फसल की उपज कम हो जाएगी. इसलिए जरूरी है कि उसे जलायें नहीं उसका विशेष प्रबंधन करें. इसके लिए योजना सरकार द्वारा चलाई जा रही है,उसका लाभ उठाएं.
कृषि वैज्ञानिक सिखाएंगे खेती के गुण
गौरतलब हो कि मौसम के अनुसार कृषि योजना के अंतर्गत राज्य में 190 मॉडल गांव तैयार किए जाएंगे. जहां कृषि वैज्ञानिक 5 साल तक खुद खेती करेंगे. इस दौरान कृषि वैज्ञानिक गांव में ही रहेंगे. जिससे गांव के लाखों किसानों को खेती करने के बारे में सिखाया जा सके. इस वैज्ञानिक खेती को बोरलॉग इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशिया, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सफल बनाएंगे.