बांका: 'बोल बम का नारा है, बाबा एक सहारा है'. 'बाबा नगरिया दूर है, जाना जरूर है'. ऐसे तरह-तरह के नारों के साथ पूरा कांवरिया पथ केसरिया मय हो गया और कांवरिये बाबा धाम की ओर बढ़ते रहे. इस दौरान बोल बम के नारों से पूरा नजारा भक्तिमय हो गया. अगर आकाश से कांवरिया पथ को देखा जाए तो संपूर्ण कांवरिया पथ पर केसरिया रंग की खींची हुई लकीर दिखाई देती है.
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विभिन्न प्रकार के होते हैं कांवरिया: बाबा पर आस्था और असीम कृपा का ही नतीजा है कि कांवरिया पथ की पूरी यात्रा सभी कांवरिया नंगे पैर पूरा कर लेते हैं और हर तरह के कष्ट के बावजूद नाचते झूमते बाबा दरबार पहुंच जाते हैं. विश्व का सबसे लंबा मेला कहे जाने वाले इस मेले में विभिन्न प्रकार के कांवरिया बाबा धाम जाते हैं. सबसे ज्यादा बोल बम यानी साधारण बम की संख्या होती है. यह कांवरिया गंगाधाम से जल उठाने के बाद दो से छह दिनों में बाबा धाम पहुंचते हैं.
सबसे कष्टदायी होती है दांडी बम यात्राः वहींं, उन कांवरियों को डाक बम कहा जाता है, जो जल उठाने के 24 घंटे के अंदर बाबा धाम पहुंच कर जलार्पण करते हैं. यह डाक बम पैदल चलते हुए ही पानी शर्बत एवं फलाहार का सेवन करते हैं. इसके अलावे दांडी बम की यात्रा सबसे कष्टदायी होती है, जो गंगाधाम से बाबाधाम तक दंड देते हुए जाते हैं. इन कांवरिया को बाबा धाम पहुंचने में एक महीने से दो महीने तक का समय लगता है. क्योकि इतनी लंबी दूरी को उन्हें हाथ के सहारे छाती के बल दंड देकर तय करना पड़ता है.
खड़ेसरी बम रास्ते में कहीं बैठते ही नहीं: कुछ बम ऐसे भी आते हैं जो सिर्फ फलाहार पर निर्भर रहते हैं, इसके अलावा कुछ बम सिर्फ फलाहार कर बाबा को जल अर्पण करते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो रास्ते में बैठते नहीं हैं, बल्कि खड़ा रहकर ही अपनी यात्रा पूरी करते हैं. उसे खड़ेसरी बम भी कहा जाता है. इस प्रकार सावन में आने वाले कांवरिया सिर्फ भगवान का नाम लेकर भारत में अनेकता में एकता को उजागर करते हैं.