पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) नीत एनडीए सरकार बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census In Bihar) को लेकर काफी एक्टिव मोड में दिखाई पड़ रही है. तभी तो बिना देरी किए इसपर लगातार फैसले लिए जा रहे हैं. सर्वदलीय बैठक के बाद इसपर कैबिनेट ने मुहर लगायी. अब इसके लिए बकायदा नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है. सामान्य प्रशासन विभाग ने नोटिफिकेशन जारी किया है.
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2023 तक जाति आधारित गणना पूरा करने का लक्ष्य : दरअसल 1 जून को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई थी. जिसमें जातीय जनगणना कराने पर सहमति बनी थी. इसके अगले दिन यानी 2 जून को बिहार कैबिनेट की बैठक हुई. इस बैठक में बिहार में जातीय जनगणना की स्वीकृति दे दी गई. बैठक में फरवरी, 2023 तक जाति आधारित गणना पूरा करने का लक्ष्य रखा गया. इसपर 500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया.
एक जून को हुई थी सर्वदलीय बैठक: मुख्यमंत्री सचिवालय संवाद में सर्वदलीय बैठक में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल, उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद, जदयू की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी, मंत्री विजेंद्र यादव, मंत्री श्रवण कुमार, कांग्रेस की तरफ से अजीत शर्मा, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा की ओर से पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, माले की तरफ से महबूब आलम, सीपीआई के अजय कुमार सहित सभी 9 दलों के नेता शामिल हुए थे. जिन दलों के विधायक विधानसभा में नहीं है, उन्हें नहीं बुलाया गया था और उसी में तय हुआ था कि कैबिनेट से स्वीकृति ली जाएगी और अब उसकी स्वीकृति ले ली गई है. अब इस पर काम शुरू हो जाएगा.
केंद्र नहीं करायेगी जातीय जणगणना : यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकार जातीय जनगणना नहीं कराने जा रही है. वहीं राज्यों को ये छूट मिली है कि अगर वो चाहें तो अपने खर्चे पर सूबे में जातीय जनगणना करा सकते हैं. वहीं बिहार में लगभग सभी दल एकमत हैं कि प्रदेश में जातीय जनगणना होनी चाहिए. भाजपा ने इसे लेकर केंद्र के फैसले के साथ खुद को खड़ा रखा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाल में ही इस मुद्दे पर मुलाकात की थी. सीएम लगातार जातीय जनगणना के पक्ष में बयान देते रहे हैं.
नीतीश कुमार के नेतृत्व में पीएम से मिला था शिष्टमंडल : जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की पहल पर ही पिछले साल 23 अगस्त को नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से शिष्टमंडल मिला था लेकिन केंद्र सरकार ने साफ मना कर दिया है. बिहार में वोट के लिहाज से ओबीसी और ईबीसी बड़ा वोट बैंक है. दोनों की कुल आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है. और इसमें सबसे अधिक यादव जाति का वोट है जो 13 से 14% के आसपास अभी माना जा रहा है. जहां तक जातियों की बात करें तो 33 से 34 जातियां इस वर्ग में आती है. ऐसे तो जातीय जनगणना सभी जातियों की होगी लेकिन जेडीयू और आरजेडी की नजर ओबीसी और ईबीसी जाति पर ही है.
1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुई: 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुई है. इसलिए अनुमान पर ही बिहार में जातियों की आबादी का प्रतिशत लगाया जाता रहा है. बिहार में ओबीसी में 33 जातियां शामिल है तो वही ईबीसी में सवा सौ से अधिक जातियां हैं. ओबीसी और ईबीसी की आबादी में यादव 14 फीसदी, कुर्मी तीन से चार फीसदी, कुशवाहा 6 से 7 फीसदी, बनिया 7 से 8 फीसदी ओबीसी का दबदबा है. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कानू, गंगोता, धानुक, नोनिया, नाई, बिंद बेलदार, चौरसिया, लोहार, बढ़ई, धोबी, मल्लाह सहित कई जातियां चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं.
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