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WHO से अमेरिका के बाहर होने से भारत और दुनिया पर क्या प्रभाव होगा, जानें - US WITHDRAWS FROM WHO

अमेरिका लंबे समय से WHO का सबसे बड़ा योगदानकर्ता और सक्रिय सदस्य रहा है. इसके शासन तंत्र में भी अहम भागीदार रहा है.

Donald Trump orders US leaving WHO How will impact India and Global
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (AFP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 22, 2025, 7:37 PM IST

हैदराबाद: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अमेरिका को अलग करने के लिए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी अमेरिका को डब्ल्यूएचओ से बाहर निकालने का प्रयास किया था.

8 जुलाई 2020 को ट्रंप प्रशासन ने औपचारिक रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर निकलने की संयुक्त राष्ट्र को सूचना दी थी और संगठन पर कोविड-19 महामारी के प्रसार को छिपाने और गंभीर कुप्रबंधन का आरोप लगाया था. हालांकि, यूएन हेल्थ एजेंसी से अलग होने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी, क्योंकि 2021 में राष्ट्रपति पद संभालने के पहले ही दिन जो बाइडेन ने एजेंसी के साथ अमेरिका के संबंधों को फिर से बहाल कर दिया था.

WHO को अमेरिकी वित्तीय सहायता का इतिहास

  • अमेरिका लंबे समय से WHO का सबसे बड़ा योगदानकर्ता रहा है. अमेरिका लंबे समय से WHO का सक्रिय सदस्य है. साथ ही वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ इसके शासन ढांचे में भी अहम भागीदार रहा है.
  • अमेरिका WHO को सबसे ज्यादा फंड भी देता है. पिछले दशक में अमेरिका का योगदान सालाना 163 मिलियन डॉलर से 816 मिलियन डॉलर के बीच रहा है. 2022-23 के दौरान WHO को कुल वित्तपोषण में अमेरिका का योगदान 16 प्रतिशत था. अमेरिका WHO के कुल बजट का लगभग 5वां हिस्सा देता है.
  • अमेरिकी सरकार द्वारा WHO का समर्थन करने के मुख्य तरीकों में इसका मूल्यांकन और वॉलंटरी योगदान है.
  • 2020 में, ट्रंप प्रशासन ने अस्थायी रूप से WHO के लिए अमेरिकी फंडिंग को निलंबित कर दिया और अमेरिकी सदस्यता को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू की. ट्रंप के इस फैसले को 2021 में बाइडेन प्रशासन ने उलट दिया.

डब्ल्यूएचओ को 2015-2024 तक अमेरिकी योगदान

डब्ल्यूएचओ को मुख्य रूप से दो तरीकों से धन मिलता है - इसके सभी सदस्य देशों से अनिवार्य रूप से निर्धारित योगदान और विभिन्न देशों तथा संगठनों से जुटाया गया वॉलंटरी योगदान.

वर्ष 2015-2024 तक डब्ल्यूएचओ को योगदान (मिलियन में)
2015438 मिलियन डॉलर
2016341 मिलियन डॉलर
2017513 मिलियन डॉलर
2018389 मिलियन डॉलर
2019421 मिलियन डॉलर
2020163 मिलियन डॉलर
2021583 मिलियन डॉलर
2022816 मिलियन डॉलर
2023481 मिलियन डॉलर
2024

119 मिलियन डॉलर

(वर्ष 2024 के लिए वॉलंटरी योगदान उपलब्ध नहीं)

2020-21 की अवधि में (जब ट्रंप प्रशासन ने कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ अमेरिकी फंडिंग रोक दी थी), तभी तब अमेरिका अन्य दाताओं, विशेष रूप से जर्मनी और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा कोविड-19 की रोकथाम में अपने योगदान में वृद्धि के बाद भी तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता था. बाइडेन प्रशासन ने 2021 से फंडिंग बहाल की और 2022-23 की अवधि में अमेरिका एक बार फिर WHO का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया.

अमेरिका के WHO से अलग होने के संभावित वैश्विक प्रभाव

अमेरिका के अचानक अलग होने से वैश्विक स्वास्थ्य के लिए फंडिंग, प्रयासों और लीडरशिप में बड़ा बदलाव होगा, विशेष रूप से भविष्य के बड़े स्वास्थ्य संकटों के प्रबंधन में. विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के डब्ल्यूएचओ की सदस्यता छोड़ने से महामारी जैसे स्वास्थ्य संकटों का मुकाबला करने की दुनिया की क्षमता गंभीर रूप से बाधित होगी. अमेरिका की तरफ से WHO के लिए काम करने वाले कॉन्ट्रैक्टर और स्टाफ को वापस बुलाया जाएगा और उनकी जगह नई नियुक्ति की जाएगी. इसके कारण बड़े पैमाने पर कर्मचारियों का नुकसान होगा और वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थिति का मुकाबला की क्षमता कम होगी. इससे बीमारियों को रोकने के प्रयासों में भी देरी होगी.

विशेषज्ञों का मानना है कि WHO और अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC), जिसे दुनिया की अग्रणी पब्लिक-हेल्थ एजेंसी माना जाता है, के बीच सहयोग खत्म होने से अंतरराष्ट्रीय निगरानी और स्वास्थ्य खतरों को लेकर प्रतिक्रिया प्रभावित होगी.

भारत पर क्या असर हो सकता है

डब्ल्यूएचओ दुनिया भर के देशों के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भाग लेता है, जहां तक सरकारें अनुमति देती हैं. भारत सरकार के कई स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भी यह भागीदार है और उनका समर्थन करता है, जैसे उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी), एचआईवी, मलेरिया और तपेदिक, एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध आदि. महत्वपूर्ण बात यह है कि डब्ल्यूएचओ भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यहां तक कि डब्ल्यूएचओ की टीमें वैक्सीन कवरेज की निगरानी भी करती हैं. अमेरिका से फंडिंग रुकने पर डब्ल्यूएचओ भारत सहित इन कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाएंगे.

अमेरिका पर प्रभाव

वैश्विक स्वास्थ्य नीति में प्रभावशाली भागीदार के रूप में अमेरिका अपनी प्रमुख भूमिका खो देगा. वर्तमान में, अमेरिका सार्वजनिक स्वास्थ्य कूटनीति के माध्यम से दुनिया को लोगों के स्वास्थ्य के प्रति प्रतिक्रिया और रखरखाव के तरीके को आकार देता है.

पूर्व में डब्ल्यूएचओ छोड़ने वाले देश

1949 में, सोवियत संघ और अल्बानिया, बुल्गारिया, बेलारूस, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और यूक्रेन सहित कई अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों ने डब्ल्यूएचओ से अलग होने की घोषणा की थी. इन देशों में डब्ल्यूएचओ के काम और इस पर अमेरिकी प्रभाव पर असंतोष व्यक्त किया गया.

यह भी पढ़ें - WHO से अलग हुआ अमेरिका, ट्रंप का अंतरराष्ट्रीय संगठनों-समझौतों से बाहर होने का रहा ट्रेंड

हैदराबाद: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अमेरिका को अलग करने के लिए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी अमेरिका को डब्ल्यूएचओ से बाहर निकालने का प्रयास किया था.

8 जुलाई 2020 को ट्रंप प्रशासन ने औपचारिक रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर निकलने की संयुक्त राष्ट्र को सूचना दी थी और संगठन पर कोविड-19 महामारी के प्रसार को छिपाने और गंभीर कुप्रबंधन का आरोप लगाया था. हालांकि, यूएन हेल्थ एजेंसी से अलग होने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी, क्योंकि 2021 में राष्ट्रपति पद संभालने के पहले ही दिन जो बाइडेन ने एजेंसी के साथ अमेरिका के संबंधों को फिर से बहाल कर दिया था.

WHO को अमेरिकी वित्तीय सहायता का इतिहास

  • अमेरिका लंबे समय से WHO का सबसे बड़ा योगदानकर्ता रहा है. अमेरिका लंबे समय से WHO का सक्रिय सदस्य है. साथ ही वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ इसके शासन ढांचे में भी अहम भागीदार रहा है.
  • अमेरिका WHO को सबसे ज्यादा फंड भी देता है. पिछले दशक में अमेरिका का योगदान सालाना 163 मिलियन डॉलर से 816 मिलियन डॉलर के बीच रहा है. 2022-23 के दौरान WHO को कुल वित्तपोषण में अमेरिका का योगदान 16 प्रतिशत था. अमेरिका WHO के कुल बजट का लगभग 5वां हिस्सा देता है.
  • अमेरिकी सरकार द्वारा WHO का समर्थन करने के मुख्य तरीकों में इसका मूल्यांकन और वॉलंटरी योगदान है.
  • 2020 में, ट्रंप प्रशासन ने अस्थायी रूप से WHO के लिए अमेरिकी फंडिंग को निलंबित कर दिया और अमेरिकी सदस्यता को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू की. ट्रंप के इस फैसले को 2021 में बाइडेन प्रशासन ने उलट दिया.

डब्ल्यूएचओ को 2015-2024 तक अमेरिकी योगदान

डब्ल्यूएचओ को मुख्य रूप से दो तरीकों से धन मिलता है - इसके सभी सदस्य देशों से अनिवार्य रूप से निर्धारित योगदान और विभिन्न देशों तथा संगठनों से जुटाया गया वॉलंटरी योगदान.

वर्ष 2015-2024 तक डब्ल्यूएचओ को योगदान (मिलियन में)
2015438 मिलियन डॉलर
2016341 मिलियन डॉलर
2017513 मिलियन डॉलर
2018389 मिलियन डॉलर
2019421 मिलियन डॉलर
2020163 मिलियन डॉलर
2021583 मिलियन डॉलर
2022816 मिलियन डॉलर
2023481 मिलियन डॉलर
2024

119 मिलियन डॉलर

(वर्ष 2024 के लिए वॉलंटरी योगदान उपलब्ध नहीं)

2020-21 की अवधि में (जब ट्रंप प्रशासन ने कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ अमेरिकी फंडिंग रोक दी थी), तभी तब अमेरिका अन्य दाताओं, विशेष रूप से जर्मनी और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा कोविड-19 की रोकथाम में अपने योगदान में वृद्धि के बाद भी तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता था. बाइडेन प्रशासन ने 2021 से फंडिंग बहाल की और 2022-23 की अवधि में अमेरिका एक बार फिर WHO का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया.

अमेरिका के WHO से अलग होने के संभावित वैश्विक प्रभाव

अमेरिका के अचानक अलग होने से वैश्विक स्वास्थ्य के लिए फंडिंग, प्रयासों और लीडरशिप में बड़ा बदलाव होगा, विशेष रूप से भविष्य के बड़े स्वास्थ्य संकटों के प्रबंधन में. विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के डब्ल्यूएचओ की सदस्यता छोड़ने से महामारी जैसे स्वास्थ्य संकटों का मुकाबला करने की दुनिया की क्षमता गंभीर रूप से बाधित होगी. अमेरिका की तरफ से WHO के लिए काम करने वाले कॉन्ट्रैक्टर और स्टाफ को वापस बुलाया जाएगा और उनकी जगह नई नियुक्ति की जाएगी. इसके कारण बड़े पैमाने पर कर्मचारियों का नुकसान होगा और वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थिति का मुकाबला की क्षमता कम होगी. इससे बीमारियों को रोकने के प्रयासों में भी देरी होगी.

विशेषज्ञों का मानना है कि WHO और अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC), जिसे दुनिया की अग्रणी पब्लिक-हेल्थ एजेंसी माना जाता है, के बीच सहयोग खत्म होने से अंतरराष्ट्रीय निगरानी और स्वास्थ्य खतरों को लेकर प्रतिक्रिया प्रभावित होगी.

भारत पर क्या असर हो सकता है

डब्ल्यूएचओ दुनिया भर के देशों के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भाग लेता है, जहां तक सरकारें अनुमति देती हैं. भारत सरकार के कई स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भी यह भागीदार है और उनका समर्थन करता है, जैसे उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी), एचआईवी, मलेरिया और तपेदिक, एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध आदि. महत्वपूर्ण बात यह है कि डब्ल्यूएचओ भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यहां तक कि डब्ल्यूएचओ की टीमें वैक्सीन कवरेज की निगरानी भी करती हैं. अमेरिका से फंडिंग रुकने पर डब्ल्यूएचओ भारत सहित इन कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाएंगे.

अमेरिका पर प्रभाव

वैश्विक स्वास्थ्य नीति में प्रभावशाली भागीदार के रूप में अमेरिका अपनी प्रमुख भूमिका खो देगा. वर्तमान में, अमेरिका सार्वजनिक स्वास्थ्य कूटनीति के माध्यम से दुनिया को लोगों के स्वास्थ्य के प्रति प्रतिक्रिया और रखरखाव के तरीके को आकार देता है.

पूर्व में डब्ल्यूएचओ छोड़ने वाले देश

1949 में, सोवियत संघ और अल्बानिया, बुल्गारिया, बेलारूस, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और यूक्रेन सहित कई अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों ने डब्ल्यूएचओ से अलग होने की घोषणा की थी. इन देशों में डब्ल्यूएचओ के काम और इस पर अमेरिकी प्रभाव पर असंतोष व्यक्त किया गया.

यह भी पढ़ें - WHO से अलग हुआ अमेरिका, ट्रंप का अंतरराष्ट्रीय संगठनों-समझौतों से बाहर होने का रहा ट्रेंड

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