पटना : वीआईपी चीफ मुकेश सहनी नीतीश मंत्रिमंडल से निष्कासित किए जा चुके हैं. उनकी पार्टी के तीनों विधायक बीजेपी में शामिल भी हो गए हैं. मतलब एनडीए से मुकेश सहनी का खेल खत्म हो चुका है. कहते हैं राजनीति में मौका के अनुसार ही कदम आगे बढ़ाया जाता है और उसी अनुसार बयान भी दिया जाता है. अब देखिए न जिस मुकेश सहनी के साथ जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi)हरवक्त खड़े रहते थे, वो अचानक पलट गए हैं.
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मांझी की मुकेश सहनी को सलाह : यह राजनीति का दस्तूर ही है कि मांझी अब मुकेश सहनी को सलाह देने में लगे हैं. हम प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है कि मुकेश सहनी अगर चुप्पी साध लेते तो संभव है, यह नौबत नहीं आती. आपको याद होगा अक्सर ही जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी बैठक किया करते थे. गाहे-बगाहे सरकार को गिराने की धमकी देते थे. लेकिन बीजेपी ने ऐसी बाजी पलटी कि सबकी बोलती बंद हो गयी है. खासकर मांझी तो सहनी को ही कसूरवार मान रहे हैं.
सहनी को इस तरह की बयानबाजी नहीं करनी चाहिए थी : जीतन राम मांझी ने कहा कि मुकेश सहनी से हमारी मुलाकात होती रहती थी. हालांकि जितनी बात वह बोलते थे, उसका कोई आधार नहीं था. सहनी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 165 सीट पर लड़ गए. फिर लोगों से कहा कि हम किसी के सहारे नहीं है. सबसे गलती उन्होंने यह की कि राजद से बात चलने की बात कही. राजनीति में ऐसी बात नहीं होनी चाहिए. आधा-आधा टाइम मुख्यमंत्री हो. हालांकि इस दौरान मांझी ने बीजेपी को भी आड़े हाथों लिया.
UP की खीज BJP ने निकाली : हम प्रमुख ने कहा कि यह तो सही बात है कि बोचहां सीट से मुकेश सहनी की पार्टी को ही टिकट मिलनी चाहिए थी. क्योंकि दिवंगत मुसाफिर पासवान उन्हीं की पार्टी के विधायक थे. हालांकि बीजेपी ने यूपी की खींच यहां निकाली तो सहनी को चुप्पी साध लेनी चाहिए थी. राजनीति में आगे और भी मौके मिलते हैं. कल एमएलसी का मामला है, परसों राज्यसभा का मामला होगा. सहनी तो गलती कर ही गए, लेकिन एनडीए के साथी के नाते भाजपा को भी इतना हार्ड एक्शन नहीं लेना चाहिए था.
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27 मार्च से प्रभावी है बर्खास्तगी का आदेश : 28 मार्च 2022 को सचिवालय मंत्रालय विभाग की ओर से एक पत्र जारी कर लिखा गया है कि- 'भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 (1) में निहित प्रावधान के अंतर्गत मुकेश सहनी दिनांक 27 मार्च 2022 के प्रभाव से राज्य के मंत्री तथा मंत्रिपरिषद के सदस्य नहीं रहे.' बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 164 (1) के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है. ऐसे में मुख्यमंत्री की अनुसंशा स्वीकार लेने के बाद मंत्री को हटा दिया जाता है.
23 मार्च को सहनी के विधायक बीजेपी में हुए थे शामिल: 23 मार्च को सहनी के तीनों विधायक राजू सिंह, स्वर्णा सिंह और मिश्री लाल यादव ने पार्टी छोड़ दी और BJP में शामिल हो गए. तीनों विधायकों के शामिल होने के बाद ही BJP के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा था कि तीनों विधायक हमेशा से BJP के थे. मुकेश सहनी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि जब तक सीएम नीतीश चाहेंगे मंत्री पद पर रहेंगे, लेकिन वो इस्तीफा नहीं देंगे. गौरतलब है कि मुकेश सहनी को हटाने के बाद पशुपालन एवं मत्स्य विभाग का प्रभार डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद को सौंप दिया गया है.
यहां से डगमगाई मुकेश सहनी की नाव : भारतीय जनता पार्टी ने मुजफ्फरपुर के बोचहां उपचुनाव में भी कैंडिडेट उतार दिया. यह सीट विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के विधायक रहे मुसाफिर पासवान के निधन के कारण खाली हुई थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर एनडीए से वीआईपी लड़ी थी, लेकिन उपचुनाव के लिए बीजेपी ने यह सीट वीआईपी को नहीं दी. इस उपचुनाव के लिए 12 अप्रैल को वोटिंग होगी और 16 अप्रैल को नतीजे आएंगे. यहां बीजेपी से बेबी कुमारी, वीआईपी से डॉक्टर गीता और आरजेडी से अमर पासवान प्रत्याशी हैं. यूपी विधानसभा में चुनावं लड़े तो लड़े लेकिन NDA में रहते हुए बोचहां विधानसभा उपचुनाव और एमएलसी चुनाव में एनडीए प्रत्याशी के सामने अपना अलग उम्मीदवार खड़ा करना मुकेश सहनी को भारी पड़ गया.
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