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'डबल इंजन' सरकार में भी बिहार नहीं 'विशेष', UP चुनाव से ठीक पहले क्यों पीछे हटी JDU.. पढ़ें इनसाइड स्टोरी

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पिछले डेढ़ दशक से विशेष राज्य के दर्जे की मांग (Special Status) को जोरदार ढंग से उठाते रहे हैं, लेकिन बिहार में दो इंजन की सरकार होने के बावजूद राज्य को विशेष दर्जा हासिल नहीं हो सका है. वहीं, अब यूपी चुनाव (UP Election) से ठीक पहले जेडीयू (JDU) इस मुद्दे से पीछे हट गई है. पढ़ें रिपोर्ट...

पटना
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Published : Sep 29, 2021, 7:47 PM IST

पटना: बिहार में 2005 में जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार बनी तो बिहार के विकास को तेज रफ्तार देने के लिए केंद्र सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की मांग (Special Status) को सियासी मुद्दा बनाया गया. बिहार के जो हालात थे और झारखंड बंटवारे के बाद जो हालात बने, उसे भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग की मूल वजह में रखा गया. लेकिन, 2005 से शुरू हुई बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को अब जदयू (JDU) नहीं उठाएगी.

ये भी पढ़ें- 'विशेष दर्जे' की मांग पर JDU का यू-टर्न, RJD ने कहा-'पलटी मारना CM नीतीश की पुरानी आदत'

बिहार से नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे को लेकर जितना प्रयास किया था, आखिर वह अपने अंतिम परिणाम तक नहीं पहुंच पाया है. अब जदयू के बदले स्टैंड की आखिर वजह क्या है. सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि इस सियासी मुद्दे को यूपी चुनाव (UP Election) से ठीक पहले छोड़ने की बात हुई है. आखिर इसकी वजह क्या है.

विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर नीतीश कुमार ने पहली बार 2005 में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. 2006 में विधिवत प्रस्ताव पारित किया गया और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार को भेजा था. 2004 से 2014 तक नीतीश कुमार के किसी पत्र पर कोई जवाब ही नहीं आया, क्योंकि 2004 से 2009 और 2009 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह उस समय प्रधानमंत्री थे.

ये भी पढ़ें- JDU in Modi Cabinet: जदयू ने एक बार फिर छेड़ा विशेष राज्य के दर्जे का राग, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे शायद केंद्र में इसलिए इसकी सुनवाई नहीं हुई, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हुए, तो बिहार ने नरेंद्र मोदी को इतना समर्थन दिया कि बात उठने लगी कि बिहार ने सब कुछ दे दिया है तो बिहार को अब उसका हक भी मिलना चाहिए. नीतीश कुमार लगातार इस बात का दबाव बनाते भी रहे कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए.

22 सितंबर 2013 को नीतीश कुमार ने अपने एक बयान में कहा था कि बिहार को ज्यादा कुछ नहीं चाहिए अगर विशेष राज्य का दर्जा बिहार को दे दिया जाए तो बिहार अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा. अब सवाल यह उठ रहा है कि बिहार की इतनी बड़ी मांग से जदयू किनारे क्यों हो रही है.

ये भी पढ़ें- ...तो इस वजह से बिहार को नहीं दिया जा सकता विशेष राज्य का दर्जा

बिहार को विकास की डगर पर ले जाने के लिए नीतीश कुमार का प्रयास विशेष राज्य के दर्जे के साथ दबाव वाला रहा है. 2000 में झारखंड से अलग होने के बाद बिहार की जो आर्थिक संरचना बनी उसमें विकास को लेकर लगातार चर्चा होती रही और यह कहा जाता भी रहा कि अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया जाए तो बिहार अपने बूते विकास की नई कहानी लिखेगा, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की श्रेणी में लाने की बात नहीं हुई.

हालांकि, विशेष पैकेज की बात राजनीति में जरूर होती रही, लेकिन नीतीश कुमार बहुत सारे मंच से बीआरजीएफ फंड के पैसे की भी बात करते रहे, लेकिन वहां भी बिहार के हाथ खाली ही रहे. बहरहाल, उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले नीतीश कुमार की पार्टी ने विशेष राज्य के दर्जे की बात से हटकर विशेष पैकेज की बात कही है. उस पर कई सियासी सवाल खड़े होने लगे हैं.

ये भी पढ़ें- विशेष राज्य के दर्जे पर BJP के तेवर सख्त, कहा- जरूरी नहीं स्पेशल स्टेटस से ही विकास हो

विपक्षी पार्टी का साफ तौर पर कहना है कि नीतीश कुमार जब केंद्र में केंद्रीय मंत्री थे तब कभी भी उन्होंने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की बात नहीं की. नीतीश कुमार को बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की याद तभी आई जब वह बिहार में गद्दी पर आए. गद्दी पर आने के बाद उनको बिहार की सुध आने लगी और बिहार ने उन्हें जितनी इज्जत दी थी, नीतीश कुमार की जवाबदेही अब मोदी के साथ ज्यादा मजबूत हो गई है, इसलिए विशेष राज्य के दर्जे से नीतीश की पार्टी किनारा कर रही है.

बिहार की सियासत में यह बातें जोर-शोर से चल रही हैं कि जदयू इसलिए विशेष राज्य के दर्जे से अलग हट रही है, क्योंकि अब केंद्र में जदयू की हिस्सेदारी हो गई है. जब तक केंद्र में जदयू की हिस्सेदारी नहीं थी विशेष राज्य के दर्जे की मांग जदयू का हर नेता करता था, क्योंकि अब जदयू के कोटे के भी मंत्री केंद्र में शामिल हो गए हैं, ऐसे में विपक्ष यह सवाल उठा सकता है कि अगर विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल रहा है तो केंद्र की सरकार में बिहार के जदयू कोटे से मंत्री के रहने का कोई मतलब नहीं है.

ये भी पढ़ें- अब 'विशेष दर्जे' की मांग नहीं... नीतीश के मंत्री बोले- 16 साल से मांग करते-करते थक गए

नीतीश कुमार यह बेहतर तरीके से जानते हैं कि विपक्ष इसे मुद्दा बना सकता है, इसलिए पूरी जदयू पार्टी ही उससे अलग जा रही है, लेकिन एक सवाल इसी के साथ और भी खड़ा हो रहा है कि उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले इस मुद्दे से हटने की वजह क्या है.

उत्तर प्रदेश में मोदी के लिए एक चुनौती नीतीश कुमार ने खड़ी कर दी है कि बिहार में सबसे पहले नारा दिया गया था 'दो इंजन की सरकार' और दो इंजन की चलने वाली सरकार भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिला पाई. नीतियों में बदलाव करना निश्चित तौर पर बड़ा मामला था, लेकिन आर्थिक रूप से समृद्ध करने के लिए दो इंजन की सरकार का फार्मूला चल सकता था.

ये भी पढ़ें- बिहार को फिसड्डी बताने वाले 'नीति आयोग की रैंकिंग' पर सरकार ने जताई आपत्ति, भेजा मेमोरेंडम

ऐसे में उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले इस बात की चर्चा भी शुरू हो गई है कि विकास के मुद्दे पर बिहार में जो विभेद दिखा है अगर यही उत्तर प्रदेश की सियासत में विपक्ष भजा ले जाता है, तो भाजपा के लिए चुनौती भी बढ़ जाती है और चिंता भी, क्योंकि विशेष राज्य के दर्जे और बिहार में चल रही दो इंजन की सरकार के विकास का जो मॉडल नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी ने खड़ा किया है, अगर विपक्ष इसे उत्तर प्रदेश के चुनाव में पड़ोसी राज्य होने के नाते भजा ले जाते हैं, तो निश्चित तौर पर यह दोनों राजनीतिक दलों के लिए फायदे का धंधा नहीं होगा. बहरहाल, 2022 के लिए सज रहे यूपी के सिंहासन के महासंग्राम के लिए जिन मुद्दों से लड़ाई होनी है, उसमें यह हथियार भी कारगर होगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.

पटना: बिहार में 2005 में जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार बनी तो बिहार के विकास को तेज रफ्तार देने के लिए केंद्र सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की मांग (Special Status) को सियासी मुद्दा बनाया गया. बिहार के जो हालात थे और झारखंड बंटवारे के बाद जो हालात बने, उसे भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग की मूल वजह में रखा गया. लेकिन, 2005 से शुरू हुई बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को अब जदयू (JDU) नहीं उठाएगी.

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बिहार से नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे को लेकर जितना प्रयास किया था, आखिर वह अपने अंतिम परिणाम तक नहीं पहुंच पाया है. अब जदयू के बदले स्टैंड की आखिर वजह क्या है. सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि इस सियासी मुद्दे को यूपी चुनाव (UP Election) से ठीक पहले छोड़ने की बात हुई है. आखिर इसकी वजह क्या है.

विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर नीतीश कुमार ने पहली बार 2005 में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. 2006 में विधिवत प्रस्ताव पारित किया गया और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार को भेजा था. 2004 से 2014 तक नीतीश कुमार के किसी पत्र पर कोई जवाब ही नहीं आया, क्योंकि 2004 से 2009 और 2009 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह उस समय प्रधानमंत्री थे.

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नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे शायद केंद्र में इसलिए इसकी सुनवाई नहीं हुई, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हुए, तो बिहार ने नरेंद्र मोदी को इतना समर्थन दिया कि बात उठने लगी कि बिहार ने सब कुछ दे दिया है तो बिहार को अब उसका हक भी मिलना चाहिए. नीतीश कुमार लगातार इस बात का दबाव बनाते भी रहे कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए.

22 सितंबर 2013 को नीतीश कुमार ने अपने एक बयान में कहा था कि बिहार को ज्यादा कुछ नहीं चाहिए अगर विशेष राज्य का दर्जा बिहार को दे दिया जाए तो बिहार अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा. अब सवाल यह उठ रहा है कि बिहार की इतनी बड़ी मांग से जदयू किनारे क्यों हो रही है.

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बिहार को विकास की डगर पर ले जाने के लिए नीतीश कुमार का प्रयास विशेष राज्य के दर्जे के साथ दबाव वाला रहा है. 2000 में झारखंड से अलग होने के बाद बिहार की जो आर्थिक संरचना बनी उसमें विकास को लेकर लगातार चर्चा होती रही और यह कहा जाता भी रहा कि अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया जाए तो बिहार अपने बूते विकास की नई कहानी लिखेगा, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की श्रेणी में लाने की बात नहीं हुई.

हालांकि, विशेष पैकेज की बात राजनीति में जरूर होती रही, लेकिन नीतीश कुमार बहुत सारे मंच से बीआरजीएफ फंड के पैसे की भी बात करते रहे, लेकिन वहां भी बिहार के हाथ खाली ही रहे. बहरहाल, उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले नीतीश कुमार की पार्टी ने विशेष राज्य के दर्जे की बात से हटकर विशेष पैकेज की बात कही है. उस पर कई सियासी सवाल खड़े होने लगे हैं.

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विपक्षी पार्टी का साफ तौर पर कहना है कि नीतीश कुमार जब केंद्र में केंद्रीय मंत्री थे तब कभी भी उन्होंने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की बात नहीं की. नीतीश कुमार को बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की याद तभी आई जब वह बिहार में गद्दी पर आए. गद्दी पर आने के बाद उनको बिहार की सुध आने लगी और बिहार ने उन्हें जितनी इज्जत दी थी, नीतीश कुमार की जवाबदेही अब मोदी के साथ ज्यादा मजबूत हो गई है, इसलिए विशेष राज्य के दर्जे से नीतीश की पार्टी किनारा कर रही है.

बिहार की सियासत में यह बातें जोर-शोर से चल रही हैं कि जदयू इसलिए विशेष राज्य के दर्जे से अलग हट रही है, क्योंकि अब केंद्र में जदयू की हिस्सेदारी हो गई है. जब तक केंद्र में जदयू की हिस्सेदारी नहीं थी विशेष राज्य के दर्जे की मांग जदयू का हर नेता करता था, क्योंकि अब जदयू के कोटे के भी मंत्री केंद्र में शामिल हो गए हैं, ऐसे में विपक्ष यह सवाल उठा सकता है कि अगर विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल रहा है तो केंद्र की सरकार में बिहार के जदयू कोटे से मंत्री के रहने का कोई मतलब नहीं है.

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नीतीश कुमार यह बेहतर तरीके से जानते हैं कि विपक्ष इसे मुद्दा बना सकता है, इसलिए पूरी जदयू पार्टी ही उससे अलग जा रही है, लेकिन एक सवाल इसी के साथ और भी खड़ा हो रहा है कि उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले इस मुद्दे से हटने की वजह क्या है.

उत्तर प्रदेश में मोदी के लिए एक चुनौती नीतीश कुमार ने खड़ी कर दी है कि बिहार में सबसे पहले नारा दिया गया था 'दो इंजन की सरकार' और दो इंजन की चलने वाली सरकार भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिला पाई. नीतियों में बदलाव करना निश्चित तौर पर बड़ा मामला था, लेकिन आर्थिक रूप से समृद्ध करने के लिए दो इंजन की सरकार का फार्मूला चल सकता था.

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ऐसे में उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले इस बात की चर्चा भी शुरू हो गई है कि विकास के मुद्दे पर बिहार में जो विभेद दिखा है अगर यही उत्तर प्रदेश की सियासत में विपक्ष भजा ले जाता है, तो भाजपा के लिए चुनौती भी बढ़ जाती है और चिंता भी, क्योंकि विशेष राज्य के दर्जे और बिहार में चल रही दो इंजन की सरकार के विकास का जो मॉडल नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी ने खड़ा किया है, अगर विपक्ष इसे उत्तर प्रदेश के चुनाव में पड़ोसी राज्य होने के नाते भजा ले जाते हैं, तो निश्चित तौर पर यह दोनों राजनीतिक दलों के लिए फायदे का धंधा नहीं होगा. बहरहाल, 2022 के लिए सज रहे यूपी के सिंहासन के महासंग्राम के लिए जिन मुद्दों से लड़ाई होनी है, उसमें यह हथियार भी कारगर होगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.

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