भीलवाड़ा. बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती जा रही है, जिससे कई तरह की आपदाएं देखने को मिल रही हैं. वर्तमान में पड़ रही भीषण गर्मी का कारण भी ग्लोबल वार्मिंग को माना जा रहा है. वहीं, औद्योगिक इकाइयों से भी काफी मात्रा में विषैली गैस निकलती हैं, जिसका दुष्प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ रहा है. इस बीच विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या को दूर करने के लिए "थिंक ग्लोबली- एक्ट लोकली" के तर्ज पर अधिक से अधिक पौधे लगाने चाहिए. पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए ही हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है.
इस मुद्दे पर भीलवाड़ा के माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय में वनस्पति शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉक्टर बी. एल. जागेटिया ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए प्रतिवर्ष हम 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं. पहली बार 1972 में विश्व संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत की थी. पहला विश्व पर्यावरण दिवस 1973 को 5 जून को मनाया गया. इसके बाद से अब तक लगातार इसी दिन पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है.
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फैक्ट्रियों से निकला दूषित पानी खतरनाक : डॉ जागेटिया ने भीलवाड़ा की स्थिति पर बात करते हुए कहा कि भीलवाड़ा में काफी मात्रा में औद्योगिक इकाइयां स्थापित हैं. इन इकाइयों से मुख्यतः सल्फर व नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड व मीथेन गैस बाहर निकलती है. यह पानी के साथ मिलकर अम्लीय वर्षा के रूप में एसिड के साथ धरती पर आते हैं, जिससे धरती बंजर हो जाती है. वहीं, मनुष्य के अंदर इन गैस के कारण अनेक प्रकार से दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं.औद्योगिक इकाइयों से जो अपशिष्ट जल निकलता है, उससे जल प्रदूषण होता है. उसमें अनेक प्रकार के ऑर्गेनिक प्रदूषक होते हैं. इस अपशिष्ट पानी में हेवी मेटल के साथ ही आयल व ग्रीस मिला हुआ होता है, जो भूमि के अंदर मिट्टी को प्रदूषित करते हैं. वहीं, जल के तंत्र (वॉटर बॉडी) को पोल्यूट करते हुए ग्राउंड वाटर को भी प्रदूषित करते हैं. यह प्रदूषण खाद्य श्रृंखला के माध्यम से आगे स्थानांतरित होता है, जिससे मानव जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है.
डॉ. जागेटिया ने कहा कि लोगों को पर्यावरण सुधारने के लिए नवाचार करना चाहिए. पर्यावरण प्रदूषण के कारण प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, जैसे वर्तमान में टेंपरेचर बढ़ रहा है. यह ग्लोबल वार्मिंग की समस्या है. जैव विविधता का ह्रास है. यह मुख्य समस्या है. इनका निदान स्थानीय स्तर पर करना चाहिए. अधिक से अधिक पौधरोपण करना चाहिए, जिससे पर्यावरण में हरियाली होगी. इससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निजात मिलेगी. वहीं, औद्योगिक अपशिष्ट जो निकलता है उन अपशिष्ट को ट्रीटमेंट करके ही बाहर निकालना चाहिए. डॉ. जागेटिया ने कहा कि पर्यावरण के साथ खिलवाड़ के कारण ही वर्तमान में तापमान 55 डिग्री पहुंच गया है. यह प्रमुख समस्या वैश्विक है. बहुत ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग होगी, तो आने वाले दिनों में अनेक दुष्परिणाम हमें और दिखाई पड़ेंगे. हिमखंड पिघलेंगे और कई तरह की आपदाएं सामने आएंगी. वहीं, अतिवृष्टि और अनावृष्टि का कारण भी ग्लोबल वार्मिंग है. साथ ही फसलों में भी ग्लोबल वार्मिंग का असर देखने को मिलेगा और उत्पादन कम होगा.