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जबलपुर में 50 दिन से जेल में बंद निजी स्कूलों के प्रिंसिपल्स व कर्मचारियों को मिली एमपी हाई कोर्ट से जमानत - Jabalpur bail Principals employees

जबलपुर के निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस बढ़ाने व अपने हिसाब से किताबें चलाने के मामले में जिला प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई के तहत 11 स्कूलों के प्रिंसिपल व कर्मचारी बीते 50 दिन से जेल में थे. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इन सभी को जमानत पर छोड़ने के आदेश दिए हैं.

Jabalpur bail Principals employees
प्रिंसिपल्स व कर्मचारियों को मिली एमपी हाई कोर्ट से जमानत (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 10, 2024, 10:04 AM IST

जबलपुर। निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों से मनमानी और फीस वसूली के मामले में पिछले 50 दिन से जेल में बंद निजी स्कूलों के प्रिंसिपल और कर्मचारियों की जमानत याचिका को लेकर मध्य प्रदेश कोर्ट के जस्टिस मनिंदर सिंह भट्टी की कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा "प्रिंसिपल और कर्मचारी कभी न कभी रिटायर होंगे और इनका मकसद किसी को फायदा पहुंचाना नहीं है. इसलिए इनको जेल में नहीं रखा जाना चाहिए." इसके साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा "यह जुर्म अगर बनता है भी तो सिर्फ सोसाइटी के मुख्य प्रबंधक पर बन सकता है. इस प्रकार कोर्ट ने 12 प्रिंसिपल और कर्मचारियों को जमानत दे दी."

जबलपुर में 50 दिन से जेल में बंद निजी स्कूलों के प्रिंसिपल्स को जमानत (ETV BHARAT)

11 निजी स्कूलों के खिलाफ हुई थी एफआईआर

दरअसल, निजी स्कूलों द्वारा नियम विरुद्ध तरीके से फीस बढ़ाने और पुस्तक विक्रेताओं के साथ साठगांठ कर अभिभावकों को तय दुकान से किताब कॉपियां खरीदने के लिए बाध्य किया गया. जिला प्रशासन की जांच में भी ये सारे तथ्य उजागर हुए थे. जिसके बाद निजी स्कूलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर 11 स्कूलों के संचालक, प्रिंसिपल एवं अन्य स्टाफ को गिरफ्तार करते हुए कोर्ट में पेश किया गया. जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था. याचिकाकर्ता के वकील हर्षित वारी ने बताया "उन्होंने कोर्ट के सामने पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के ऊपर एफआईआर में जो आरोप लगाए गए हैं, वे बेबुनियाद हैं क्योंकि यह आरोप प्रिंसिपल के ऊपर लागू ही नहीं होते."

प्रिंसिपल्स पर बेबुनियाद आरोप लगाए गए

वकील ने दलील दी कि ये आरोप प्रिंसिपल नहीं बल्कि स्कूल के मुख्य प्रबंधक के ऊपर लागू होते हैं. क्योंकि इनके ऊपर अनावश्यक फीस का एफआईआर में जिक्र नहीं किया गया है और जो आईएसबीएन नंबर को फोर्स करके फर्जीवाड़े का आरोप लगाया था वह प्रिंसिपल्स और कर्मचारियों के ऊपर दूर-दूर तक नहीं लगता. स्कूल कर्मचारी का डिसीजन मेकिंग पार्ट से कोई लेना-देना नही रहता है और ना ही उनका डिसीजन कोई बाइंडिंग रहती है तो एम्पलाइज को अरेस्ट करना बिल्कुल अनावश्यक है.

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वकील का तर्क- कलेक्टर के आदेश को किसने पढ़ा

वकील ये भी दलील दी "वे लोग 40 दिन से वैसे ही बेबुनियाद आरोप में जेल के अंदर है तो उनको जमानत का लाभ देना आवश्यक है." इसके साथ ही याचिकाकर्ता के वकील हर्षित वारी का कहना था कि 27 मई को जबलपुर जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा आदेश जारी किया गया. इस आदेश को आज तक किसी ने नहीं देखा. जिसके बारे में अभी तक किसी को पता भी नहीं. आखिर किस आधार पर उनके ऊपर ये आरोप लगाए गए हैं.

जबलपुर। निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों से मनमानी और फीस वसूली के मामले में पिछले 50 दिन से जेल में बंद निजी स्कूलों के प्रिंसिपल और कर्मचारियों की जमानत याचिका को लेकर मध्य प्रदेश कोर्ट के जस्टिस मनिंदर सिंह भट्टी की कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा "प्रिंसिपल और कर्मचारी कभी न कभी रिटायर होंगे और इनका मकसद किसी को फायदा पहुंचाना नहीं है. इसलिए इनको जेल में नहीं रखा जाना चाहिए." इसके साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा "यह जुर्म अगर बनता है भी तो सिर्फ सोसाइटी के मुख्य प्रबंधक पर बन सकता है. इस प्रकार कोर्ट ने 12 प्रिंसिपल और कर्मचारियों को जमानत दे दी."

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11 निजी स्कूलों के खिलाफ हुई थी एफआईआर

दरअसल, निजी स्कूलों द्वारा नियम विरुद्ध तरीके से फीस बढ़ाने और पुस्तक विक्रेताओं के साथ साठगांठ कर अभिभावकों को तय दुकान से किताब कॉपियां खरीदने के लिए बाध्य किया गया. जिला प्रशासन की जांच में भी ये सारे तथ्य उजागर हुए थे. जिसके बाद निजी स्कूलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर 11 स्कूलों के संचालक, प्रिंसिपल एवं अन्य स्टाफ को गिरफ्तार करते हुए कोर्ट में पेश किया गया. जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था. याचिकाकर्ता के वकील हर्षित वारी ने बताया "उन्होंने कोर्ट के सामने पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के ऊपर एफआईआर में जो आरोप लगाए गए हैं, वे बेबुनियाद हैं क्योंकि यह आरोप प्रिंसिपल के ऊपर लागू ही नहीं होते."

प्रिंसिपल्स पर बेबुनियाद आरोप लगाए गए

वकील ने दलील दी कि ये आरोप प्रिंसिपल नहीं बल्कि स्कूल के मुख्य प्रबंधक के ऊपर लागू होते हैं. क्योंकि इनके ऊपर अनावश्यक फीस का एफआईआर में जिक्र नहीं किया गया है और जो आईएसबीएन नंबर को फोर्स करके फर्जीवाड़े का आरोप लगाया था वह प्रिंसिपल्स और कर्मचारियों के ऊपर दूर-दूर तक नहीं लगता. स्कूल कर्मचारी का डिसीजन मेकिंग पार्ट से कोई लेना-देना नही रहता है और ना ही उनका डिसीजन कोई बाइंडिंग रहती है तो एम्पलाइज को अरेस्ट करना बिल्कुल अनावश्यक है.

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