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मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए आने वाले दिन चुनौतियों से भरे, पार्टी के अंदर उठ रहे असंतोष के स्वर - MP Congress New Challenges

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jun 7, 2024, 6:03 PM IST

लोकसभा चुनाव में भले ही इंडिया अलायंस का प्रदर्शन भले ही अच्छा रहा है, लेकिन एमपी में कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब है. 29 सीटों पर हुई हार कांग्रेस की सबसे बड़ी हार है. वहीं इस परिणाम के बाद कांग्रेस के अंदर विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं.

MP CONGRESS NEW CHALLENGES
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए आने वाले दिन चुनौतियों से भरे (ETV Bharat)

भोपाल। मध्य प्रदेश के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है. अब पार्टी के लिए आने वाले दिन मुसीबत भरे हो सकते हैं. इसकी बड़ी वजह पार्टी के भीतर ही सुनाई देने वाले असंतोष के स्वर हैं. कहा जा रहा है कि हार की जिम्मेदारी लेते हुए जीतू पटवारी को इस्तीफा दे देना चाहिए, क्योंकि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था.

29 सीटों पर हार कांग्रेस की सबसे बड़ी हार

राज्य के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सभी 29 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार के तौर पर इसे देखा जा रहा है. चुनाव से पहले कांग्रेस की ओर से लगातार बड़ी जीत के दावे किए जाते रहे और टिकट बंटवारे को लेकर भी नेताओं में जमकर खींचतान हुई थी. इसी के चलते ग्वालियर चंबल इलाके में उम्मीदवार तय करने में काफी वक्त लगा था. इतना ही नहीं उम्मीदवारी तय करने में देरी होने के कारण उम्मीदवारों को प्रचार के लिए कम समय मिला. अब यह बात सामने भी आ रही है.

पार्टी के अंदर उभर रहे विरोध के स्वर

राज्य में विधानसभा चुनाव हुए और उसमें कांग्रेस को बड़ी हार मिली थी. उसके बाद पार्टी में बड़ा बदलाव किया गया था और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को हटाकर उनके स्थान पर जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप गई थी. अब पार्टी को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी के भीतर दबे स्वर में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेने की बात जोर पकड़ रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा है कि 'वर्ष 2013 के चुनाव में जब कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था, तो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.'

पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी

कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर गौर करें तो जीतू पटवारी को पार्टी की कमान संभाले लगभग पांच माह का वक्त पूरा हो गया है. मगर वह अब तक अपनी पूरी कार्यकारिणी का भी गठन नहीं कर पाए. इसकी वजह भी पार्टी के अंदर जारी खींचतान को माना जा रहा है. इतना ही नहीं, लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया. इन नेताओं को न तो मनाने की कोशिश हुई और न ही रोकने के प्रयास किए गए. इस बात से भी पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी है.

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कांग्रेस को राज्य में मजबूती की जरूरत

इसके अलावा लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह अपने संसदीय क्षेत्र राजगढ़ और कमलनाथ छिंदवाड़ा तक सीमित रह गए. इन दोनों नेताओं ने राज्य के बड़े हिस्से का दौरा ही नहीं किया. पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चुनाव में भले ही हार हो गई हो, मगर संगठन को मजबूत करने के प्रयास किए जाने की जरूरत है जो फिलहाल नजर नहीं आ रहे. यह बात ठीक है कि भाजपा को केंद्र में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, कांग्रेस इससे खुश हो सकती है, लेकिन राज्य में तो पार्टी को अपनी मजबूती दिखानी होगी. पार्टी में वर्तमान जैसी स्थितियां है, वैसी ही बनी रही तो आने वाले दिनों में मजबूत होने की बजाय पार्टी और कमजोर होगी.

भोपाल। मध्य प्रदेश के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है. अब पार्टी के लिए आने वाले दिन मुसीबत भरे हो सकते हैं. इसकी बड़ी वजह पार्टी के भीतर ही सुनाई देने वाले असंतोष के स्वर हैं. कहा जा रहा है कि हार की जिम्मेदारी लेते हुए जीतू पटवारी को इस्तीफा दे देना चाहिए, क्योंकि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था.

29 सीटों पर हार कांग्रेस की सबसे बड़ी हार

राज्य के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सभी 29 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार के तौर पर इसे देखा जा रहा है. चुनाव से पहले कांग्रेस की ओर से लगातार बड़ी जीत के दावे किए जाते रहे और टिकट बंटवारे को लेकर भी नेताओं में जमकर खींचतान हुई थी. इसी के चलते ग्वालियर चंबल इलाके में उम्मीदवार तय करने में काफी वक्त लगा था. इतना ही नहीं उम्मीदवारी तय करने में देरी होने के कारण उम्मीदवारों को प्रचार के लिए कम समय मिला. अब यह बात सामने भी आ रही है.

पार्टी के अंदर उभर रहे विरोध के स्वर

राज्य में विधानसभा चुनाव हुए और उसमें कांग्रेस को बड़ी हार मिली थी. उसके बाद पार्टी में बड़ा बदलाव किया गया था और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को हटाकर उनके स्थान पर जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप गई थी. अब पार्टी को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी के भीतर दबे स्वर में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेने की बात जोर पकड़ रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा है कि 'वर्ष 2013 के चुनाव में जब कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था, तो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.'

पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी

कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर गौर करें तो जीतू पटवारी को पार्टी की कमान संभाले लगभग पांच माह का वक्त पूरा हो गया है. मगर वह अब तक अपनी पूरी कार्यकारिणी का भी गठन नहीं कर पाए. इसकी वजह भी पार्टी के अंदर जारी खींचतान को माना जा रहा है. इतना ही नहीं, लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया. इन नेताओं को न तो मनाने की कोशिश हुई और न ही रोकने के प्रयास किए गए. इस बात से भी पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी है.

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इसके अलावा लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह अपने संसदीय क्षेत्र राजगढ़ और कमलनाथ छिंदवाड़ा तक सीमित रह गए. इन दोनों नेताओं ने राज्य के बड़े हिस्से का दौरा ही नहीं किया. पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चुनाव में भले ही हार हो गई हो, मगर संगठन को मजबूत करने के प्रयास किए जाने की जरूरत है जो फिलहाल नजर नहीं आ रहे. यह बात ठीक है कि भाजपा को केंद्र में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, कांग्रेस इससे खुश हो सकती है, लेकिन राज्य में तो पार्टी को अपनी मजबूती दिखानी होगी. पार्टी में वर्तमान जैसी स्थितियां है, वैसी ही बनी रही तो आने वाले दिनों में मजबूत होने की बजाय पार्टी और कमजोर होगी.

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