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NDA में सीट शेयरिंग बड़ी माथापच्ची, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को जोड़े रखना BJP के लिए चुनौती

Lok Sabha Elections 2024 नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद सीट शेयरिंग का मामला उलझ गया है. चिराग पासवान 2020 में नीतीश कुमार के कारण ही विधानसभा का चुनाव अलग लड़े थे. अब एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में उनकी नाराजगी की खबर आ रही है. उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार के आने से सहज नहीं है. जीतन राम मांझी भी लोकसभा चुनाव में एक सीट चाहते हैं. बीजेपी के लिए सबको खुश करना आसान नहीं है. पढ़ें, विस्तार से

एनडीए में सीट को नाराजगी.
एनडीए में सीट को नाराजगी.
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 6, 2024, 7:39 PM IST

एनडीए में सीट को नाराजगी.

पटना: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर रही है. पहली सूची में 195 उम्मीदवारों की घोषणा की गयी थी. भाजपा प्रत्याशियों की अगली सूची जल्द जारी होने की संभावना है. लेकिन, बिहार में एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. नीतीश कुमार के एनडीए गठबंधन में आने के बाद सीट शेयरिंग को लेकर गणित उलझ गया है.

सबको कैसे खुश रखेगी भाजपाः नीतीश से पहले जिन दलों ने भाजपा का साथ गठबंधन किया था, वो नाराज चल रहे हैं. पीएम मोदी की रैली से चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा ने दूरी बना रखी थी. कयास लगाये जा रहे हैं कि वो दोनों नाराज हैं. भाजपा के सामने सबसे बड़ी मुश्किल है कि कैसे सबको खुश किया जाए. चिराग पासवान को खुश करें या फिर उनके चाचा पशुपति पारस को. उपेंद्र कुशवाहा-जीतन मांझी को या फिर नीतीश कुमार को.

असमंजस में भाजपा के साथीः राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि अभी जिस प्रकार से पूरे देश में मोदी लहर है सभी घटक दल थोड़ा बहुत सैक्रिफाइस कर एनडीए के साथ ही रहना चाहेंगे. दूसरी तरफ एनडीए में अभी तक सीट शेयरिंग को लेकर बैठक नहीं होने से चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी असमंजस में हैं. जदयू 2019 में जो फार्मूला एनडीए में अपनाया गया था उसके पक्ष में है. लेकिन, उस समय केवल तीन पार्टियां एनडीए में थी. आज लोजपा के दो गुट को ले कर कुल एनडीए में कुछ 6 पार्टियां हैं.

"चिराग पासवान भले ही पशुपति पारस और नीतीश कुमार के कारण सहज नहीं हो, लेकिन उन्हें पता है नरेंद्र मोदी की लहर है. सरकार बीजेपी की ही बनेगी तो इसलिए बीजेपी को छोड़ेंगे नहीं. उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की भी यही स्थित है, एनडीए को छोड़ना नहीं चाहते हैं."- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विश्लेषक

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क्या है समीकरण: 2019 लोकसभा चुनाव में 54% वोट एनडीए को मिला था. जिसमें से जदयू को 22.5%, भाजपा को 24.05% और लोजपा को 8.06% था. जबकि विपक्ष में राजद, कांग्रेस, हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का गठबंधन था. इस गठबंधन को 27% ही वोट मिला था. हम और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में आ चुके हैं. और सीटों की दावेदारी कर रहे हैं.

दो फाड़ हुई थी लोजपाः 2019 में रामविलास के नेतृत्व में लोजपा ने 6 सीट जीती थी. रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान और पशुपति पारस अलग-अलग गुट बना लिए हैं. पशुपति पारस के साथ चार और सांसद हैं, जिसके लिए पशुपति पारस सीट चाहते हैं. लेकिन, चिराग पासवान 2014 और 2019 में लोजपा को जो सीट मिली थी उतनी सीट चाहते हैं. चाचा-भतीजा हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने पर अड़े हैं. दोनों की नजर बीजेपी के फैसले पर है.

नीतीश को चिराग ने पहुंचाया था नुकसानः नीतीश कुमार के एनडीए में फिर से वापस लौटने के बाद 40 सीटों में क्या फार्मूला बने इस पर बीजेपी ने कोई खुलासा नहीं किया है. जदयू के तरफ से भी 16 सीटिंग सीट पर दावेदारी हो रही है. 2020 में चिराग पासवान नीतीश कुमार के कारण ही एनडीए में नहीं रह पाए थे और अकेले चुनाव लड़े. नीतीश कुमार के उम्मीदवारों के खिलाफ अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतारा, जिससे नीतीश कुमार को कई सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था. जब से नीतीश कुमार एनडीए में वापस आए हैं पशुपति पारस को तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन चिराग पासवान परेशान है.

अब भी कह रहे, सब ठीक हैः प्रधानमंत्री के बेगूसराय के कार्यक्रम में भी चिराग पासवान शामिल नहीं हुए. उसके बाद उनकी नाराजगी की चर्चा हो रही है. चिराग पासवान और पशुपति पारस बीजेपी के सीट शेयरिंग फार्मूले का इंतजार कर रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा काराकाट में लगातार प्रचार में लगे हैं. तीनों दलों के नेताओं का कहना है कि अभी तक एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर कोई बैठक नहीं हुई है. लेकिन सब कुछ सही ढंग से हो जाएगा, विवाद नहीं होगा.

चिराग और कुशवाहा बढ़ा सकते हैं मुश्किलेंः जीतन मांझी गया सीट चाहते हैं. उनको भी भरोसा है कि बीजेपी उन्हें गया सीट देगी. ऐसे जीतन मांझी के बेटे संतोष सुमन बिहार में एनडीए सरकार में मंत्री बन गए हैं. भाजपा अपने बल पर उनके बेटे को विधान परिषद भी भेज रही है. बिहार में वोटिंग में जातीय समीकरण जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. ऐसे में अभी एनडीए के साथ जीत के सभी जातीय समीकरण फिट बैठ रहे हैं. लेकिन, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा यदि नाराज हुए तो मुश्किल बढ़ा सकते हैं.

"चिराग पासवान तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान हैं और तेजस्वी तो डूबता जहाज है. उनके साथ कौन जाना चाहेगा और जो जाएगा तो डूब जाएगा."- प्रेम रंजन पटेल, भाजपा प्रवक्ता

क्या बन रहा समीकरणः बिहार में जातीय गणना रिपोर्ट के अनुसार यादव (14%) के बाद सबसे अधिक आबादी पासवान 5.3%, चमार 5.2 % और मुसहर 3.5% की है. जहां मुसहर जीतन मांझी के साथ है, तो वहीं पासवान और चमार का बड़ा हिस्सा चिराग पासवान से जुड़ा हुआ है. वहीं कुशवाहा की आबादी 4.2% है. इस तरह देखें तो पासवान, मुसहर, चमार और कुशवाहा की कुल आबादी 18% से अधिक है. जिसके साथ यह वोट बैंक जाएगा, जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाएगा.

उपेंद्र कुशवाहा तीन सीट चाहते हैंः उपेंद्र कुशवाहा भी तीन सीट चाहते हैं. काराकाट, जहानाबाद पर तो लगातार कार्यक्रम भी कर रहे हैं. सीट शेयरिंग को लेकर उपेंद्र कुशवाहा अभी कुछ बोल नहीं रहे हैं. लेकिन, उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रमेश कुशवाहा का कहना है कि एनडीए के नेताओं के साथ जब बातचीत होगी कोई भी विवाद नहीं रहेगा. हम लोग मिलकर सभी 40 सीट जीतेंगे.

केसी त्यागी के इशारे को समझियेः चिराग पासवान और पशुपति पारस लगातार दिल्ली में बने हुए हैं. पशुपति पारस औरंगाबाद में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. चिराग पासवान को बेगूसराय आना था पर नहीं आए. नीतीश कुमार विदेश जाने वाले हैं. उससे पहले भाजपा नेताओं से उनकी बातचीत हो सकती है. जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने बयान दिया है कि जेडीयू 16 सीट और बीजेपी ने 17 सीट 2019 में जीती है. उसके आधार पर ही एनडीए में बात आगे बढ़नी चाहिए. केसी त्यागी ने संकेत दिया कि जो जीती हुई सीट है वह जदयू को मिलनी चाहिए.

कुशवाहा और लोजपा का प्रदर्शनः 2014 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को तीन सीट और 3.5% वोट मिला था. 2015 में 2.56% लेकिन 2019 और 2020 में उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में नहीं थे खाता तक नहीं खुला. दूसरी तरफ लोजपा को 2014 में 6.50 प्रतिशत वोट मिला था. फिर 2015 में 4.83% और 2019 में 8.06% वोट मिला था. तीनों चुनाव में एनडीए के साथ थे. 2020 में 5.66% वोट मिला था जब अकेले चुनाव लड़े थे और विधानसभा में केवल एक सीट पर जीत मिली थी.

अपना वोट बैंक है दोनों के पासः उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान के वोट प्रतिशत को देखें तो जहां उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए के साथ रहे हों या एनडीए के साथ नहीं रहे हो 3% के आसपास वोट मिलता रहा है. इस तरह चिराग पासवान को भी 5% के आसपास वोट मिलता रहा है. इसलिए भाजपा दोनों का साथ चाहती है. लेकिन, यह भी सही है नीतीश कुमार को नुकसान कर दोनों से बीजेपी समझौता करेंगे इसकी संभावना कम है.

इसे भी पढ़ेंः क्या चिराग-कुशवाहा और आप नाराज हैं? बोले मांझी- कोई दिक्कत नहीं है, सीट शेयरिंग पर जल्द होगी NDA की बैठक

इसे भी पढ़ेंः नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद लोकसभा सीटों के बंटवारे का क्या होगा फार्मूला, किन-किन सीटों पर फंस रहा पेच

इसे भी पढ़ेंः मोदी के साथ नीतीश, आंकड़ों से जानें बिहार में NDA को कैसे मिलेगा फायदा

इसे भी पढ़ेंः बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग बड़ी चुनौती, किसे मिल सकती है कितनी सीट?

इसे भी पढ़ेंः तेजस्वी के बाद अब CPIML ने दिया चिराग पासवान को ऑफर, सीट शेयरिंग को लेकर भी बड़ा खुलासा

एनडीए में सीट को नाराजगी.

पटना: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर रही है. पहली सूची में 195 उम्मीदवारों की घोषणा की गयी थी. भाजपा प्रत्याशियों की अगली सूची जल्द जारी होने की संभावना है. लेकिन, बिहार में एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. नीतीश कुमार के एनडीए गठबंधन में आने के बाद सीट शेयरिंग को लेकर गणित उलझ गया है.

सबको कैसे खुश रखेगी भाजपाः नीतीश से पहले जिन दलों ने भाजपा का साथ गठबंधन किया था, वो नाराज चल रहे हैं. पीएम मोदी की रैली से चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा ने दूरी बना रखी थी. कयास लगाये जा रहे हैं कि वो दोनों नाराज हैं. भाजपा के सामने सबसे बड़ी मुश्किल है कि कैसे सबको खुश किया जाए. चिराग पासवान को खुश करें या फिर उनके चाचा पशुपति पारस को. उपेंद्र कुशवाहा-जीतन मांझी को या फिर नीतीश कुमार को.

असमंजस में भाजपा के साथीः राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि अभी जिस प्रकार से पूरे देश में मोदी लहर है सभी घटक दल थोड़ा बहुत सैक्रिफाइस कर एनडीए के साथ ही रहना चाहेंगे. दूसरी तरफ एनडीए में अभी तक सीट शेयरिंग को लेकर बैठक नहीं होने से चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी असमंजस में हैं. जदयू 2019 में जो फार्मूला एनडीए में अपनाया गया था उसके पक्ष में है. लेकिन, उस समय केवल तीन पार्टियां एनडीए में थी. आज लोजपा के दो गुट को ले कर कुल एनडीए में कुछ 6 पार्टियां हैं.

"चिराग पासवान भले ही पशुपति पारस और नीतीश कुमार के कारण सहज नहीं हो, लेकिन उन्हें पता है नरेंद्र मोदी की लहर है. सरकार बीजेपी की ही बनेगी तो इसलिए बीजेपी को छोड़ेंगे नहीं. उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की भी यही स्थित है, एनडीए को छोड़ना नहीं चाहते हैं."- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विश्लेषक

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क्या है समीकरण: 2019 लोकसभा चुनाव में 54% वोट एनडीए को मिला था. जिसमें से जदयू को 22.5%, भाजपा को 24.05% और लोजपा को 8.06% था. जबकि विपक्ष में राजद, कांग्रेस, हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का गठबंधन था. इस गठबंधन को 27% ही वोट मिला था. हम और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में आ चुके हैं. और सीटों की दावेदारी कर रहे हैं.

दो फाड़ हुई थी लोजपाः 2019 में रामविलास के नेतृत्व में लोजपा ने 6 सीट जीती थी. रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान और पशुपति पारस अलग-अलग गुट बना लिए हैं. पशुपति पारस के साथ चार और सांसद हैं, जिसके लिए पशुपति पारस सीट चाहते हैं. लेकिन, चिराग पासवान 2014 और 2019 में लोजपा को जो सीट मिली थी उतनी सीट चाहते हैं. चाचा-भतीजा हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने पर अड़े हैं. दोनों की नजर बीजेपी के फैसले पर है.

नीतीश को चिराग ने पहुंचाया था नुकसानः नीतीश कुमार के एनडीए में फिर से वापस लौटने के बाद 40 सीटों में क्या फार्मूला बने इस पर बीजेपी ने कोई खुलासा नहीं किया है. जदयू के तरफ से भी 16 सीटिंग सीट पर दावेदारी हो रही है. 2020 में चिराग पासवान नीतीश कुमार के कारण ही एनडीए में नहीं रह पाए थे और अकेले चुनाव लड़े. नीतीश कुमार के उम्मीदवारों के खिलाफ अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतारा, जिससे नीतीश कुमार को कई सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था. जब से नीतीश कुमार एनडीए में वापस आए हैं पशुपति पारस को तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन चिराग पासवान परेशान है.

अब भी कह रहे, सब ठीक हैः प्रधानमंत्री के बेगूसराय के कार्यक्रम में भी चिराग पासवान शामिल नहीं हुए. उसके बाद उनकी नाराजगी की चर्चा हो रही है. चिराग पासवान और पशुपति पारस बीजेपी के सीट शेयरिंग फार्मूले का इंतजार कर रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा काराकाट में लगातार प्रचार में लगे हैं. तीनों दलों के नेताओं का कहना है कि अभी तक एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर कोई बैठक नहीं हुई है. लेकिन सब कुछ सही ढंग से हो जाएगा, विवाद नहीं होगा.

चिराग और कुशवाहा बढ़ा सकते हैं मुश्किलेंः जीतन मांझी गया सीट चाहते हैं. उनको भी भरोसा है कि बीजेपी उन्हें गया सीट देगी. ऐसे जीतन मांझी के बेटे संतोष सुमन बिहार में एनडीए सरकार में मंत्री बन गए हैं. भाजपा अपने बल पर उनके बेटे को विधान परिषद भी भेज रही है. बिहार में वोटिंग में जातीय समीकरण जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. ऐसे में अभी एनडीए के साथ जीत के सभी जातीय समीकरण फिट बैठ रहे हैं. लेकिन, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा यदि नाराज हुए तो मुश्किल बढ़ा सकते हैं.

"चिराग पासवान तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान हैं और तेजस्वी तो डूबता जहाज है. उनके साथ कौन जाना चाहेगा और जो जाएगा तो डूब जाएगा."- प्रेम रंजन पटेल, भाजपा प्रवक्ता

क्या बन रहा समीकरणः बिहार में जातीय गणना रिपोर्ट के अनुसार यादव (14%) के बाद सबसे अधिक आबादी पासवान 5.3%, चमार 5.2 % और मुसहर 3.5% की है. जहां मुसहर जीतन मांझी के साथ है, तो वहीं पासवान और चमार का बड़ा हिस्सा चिराग पासवान से जुड़ा हुआ है. वहीं कुशवाहा की आबादी 4.2% है. इस तरह देखें तो पासवान, मुसहर, चमार और कुशवाहा की कुल आबादी 18% से अधिक है. जिसके साथ यह वोट बैंक जाएगा, जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाएगा.

उपेंद्र कुशवाहा तीन सीट चाहते हैंः उपेंद्र कुशवाहा भी तीन सीट चाहते हैं. काराकाट, जहानाबाद पर तो लगातार कार्यक्रम भी कर रहे हैं. सीट शेयरिंग को लेकर उपेंद्र कुशवाहा अभी कुछ बोल नहीं रहे हैं. लेकिन, उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रमेश कुशवाहा का कहना है कि एनडीए के नेताओं के साथ जब बातचीत होगी कोई भी विवाद नहीं रहेगा. हम लोग मिलकर सभी 40 सीट जीतेंगे.

केसी त्यागी के इशारे को समझियेः चिराग पासवान और पशुपति पारस लगातार दिल्ली में बने हुए हैं. पशुपति पारस औरंगाबाद में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. चिराग पासवान को बेगूसराय आना था पर नहीं आए. नीतीश कुमार विदेश जाने वाले हैं. उससे पहले भाजपा नेताओं से उनकी बातचीत हो सकती है. जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने बयान दिया है कि जेडीयू 16 सीट और बीजेपी ने 17 सीट 2019 में जीती है. उसके आधार पर ही एनडीए में बात आगे बढ़नी चाहिए. केसी त्यागी ने संकेत दिया कि जो जीती हुई सीट है वह जदयू को मिलनी चाहिए.

कुशवाहा और लोजपा का प्रदर्शनः 2014 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को तीन सीट और 3.5% वोट मिला था. 2015 में 2.56% लेकिन 2019 और 2020 में उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में नहीं थे खाता तक नहीं खुला. दूसरी तरफ लोजपा को 2014 में 6.50 प्रतिशत वोट मिला था. फिर 2015 में 4.83% और 2019 में 8.06% वोट मिला था. तीनों चुनाव में एनडीए के साथ थे. 2020 में 5.66% वोट मिला था जब अकेले चुनाव लड़े थे और विधानसभा में केवल एक सीट पर जीत मिली थी.

अपना वोट बैंक है दोनों के पासः उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान के वोट प्रतिशत को देखें तो जहां उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए के साथ रहे हों या एनडीए के साथ नहीं रहे हो 3% के आसपास वोट मिलता रहा है. इस तरह चिराग पासवान को भी 5% के आसपास वोट मिलता रहा है. इसलिए भाजपा दोनों का साथ चाहती है. लेकिन, यह भी सही है नीतीश कुमार को नुकसान कर दोनों से बीजेपी समझौता करेंगे इसकी संभावना कम है.

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