शिमला: करीब एक दशक पहले की बात है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के नाम एक पत्र आता है. उस पत्र में एक हैरतनाक खुलासा किया गया था. कृष्ण चंद सारटा नामक व्यक्ति की तरफ से लिखे गए पत्र में जिक्र था कि ऊपरी शिमला के कुछ प्रभावशाली लोगों ने सरकारी वन भूमि से हरे-भरे पेड़ काट कर सेब बागीचे स्थापित कर दिए हैं. पत्र में कहा गया कि ये सिलसिला न जाने कब से चल रहा है. हाईकोर्ट एक्शन में आया और राज्य सरकार को एक-एक इंच सरकारी वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए. मामला पेचीदा था. हजारों बीघा सरकारी वन भूमि में अतिक्रमण कर तैयार किए गए सेब बागीचे फल-फूल रहे थे. उनमें करोड़ों के सेब की फसल थी.
हरे-भरे पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलने लगी तो मामले ने सियासी रंग ले लिया. एक नीति आई कि पांच बीघा जमीन पर अतिक्रमण नियमित कर दिया जाए. मामला दशक भर से हाईकोर्ट में है. अब ये मामला फिर से सुर्खियों में है. कारण ये कि हाईकोर्ट ने कब्जाधारियों को अतिक्रमण की गई जमीन की किस्म बताने के आदेश जारी किए हैं. यहां इस मामले से जुड़े कुछ हैरतअंगेज तथ्यों को दर्ज किया जा रहा है. आलम ये था कि कब्जों को हटाने के लिए सेना की इको बटालियन की भी मदद लेनी पड़ी थी.
2015 में हाईकोर्ट ने दिया फैसला
ऊपरी शिमला के जुब्बल इलाके के रहने वाले कृष्ण चंद सारटा ने हाईकोर्ट को जो पत्र लिखा था, उसे जनहित याचिका माना गया. अप्रैल 2015 में हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति तरलोक चौहान ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रधान सचिव वन, सचिव राजस्व विभाग, पीसीसीएफफारेस्ट, इंजीनियर इन-चीफ सिंचाई व जन स्वास्थ्य विभाग (अब जल शक्ति विभाग) व बिजली बोर्ड के अफसरों को आदेश दिए थे कि छह महीने में सरकारी वन भूमि से अवैध कब्जे हटाए जाएं. साथ ही सरकारी भूमि पर बने ढांचों का बिजली-पानी काटने के आदेश जारी किए. अदालत ने वन विभाग के अफसरों को खास हिदायत दी थी कि जिन लोगों ने जंगलों को काटकर सेब के बागीचे व फसलें उगाई हैं, उन पर सख्त कार्रवाई करते हुए अवैध रूप से जंगल की भूमि पर तैयार बागीचे में सेब के पौधों और फसलों को काटने का खर्च भी कब्जाधारी से ही वसूला जाए.
13 परिवारों ने ही किया था 2800 बीघा सरकारी जमीन पर कब्जा
कृष्ण चंद सारटा ने अपनी चिट्ठी में कब्जाधारियों में से कुछ के नाम व पते भी दिए थे. हैरानी की बात थी कि 13 परिवारों ने 2800 बीघा जमीन पर कब्जा कर सेब बागीचे लगा दिए थे. सरकारी वन भूमि पर कब्जा कर कई लोग करोड़पति हो गए. अतिक्रमण कर पक्के मकान बनाए और बिजली-पानी के कनेक्शन भी ले लिए गए. हाईकोर्ट ने जब सख्ती दिखाई तो राज्य सरकार ने स्टेटस रिपोर्ट सबमिट की. उस रिपोर्ट के अनुसार सरकारी वन भूमि पर अवैध कब्जे करने के मामले में जिला शिमला पहले नंबर पर और कुल्लू जिला दूसरे नंबर पर था. स्टेट्स रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दस बीघा से अधिक भूमि पर कब्जा करने को लेकर 2526 एफआईआर फाइल की गई.
इसके अलावा 2018 में पेश रिपोर्ट के अनुसार कुल 2522 मामले न्यायिक दंडाधिकारियों के समक्ष पेश किए गए थे. साथ ही टोटल मामलों में से 1811 मामले अलग-अलग वन मंडलाधिकारियों के सामने दाखिल किए गए. उनमें से 1416 मामलों में बेदखली आदेश पारित किए गए थे. वर्ष 2018 की स्टेट्स रिपोर्ट के मुताबिक 933 मामलों में 867 हेक्टेयर से अधिक भूमि से कब्जा हटाया जा चुका था.
शिमला जिला में कई प्रभावशाली लोगों ने अपनी जमीन के साथ लगती वन भूमि से पहले पेड़ काटे और फिर उस जमीन पर कब्जा कर सेब के बागीचे तैयार किए. हैरानी की बात है कि कई लोगों ने तो पचास बीघा से अधिक वन भूमि पर कब्जा किया था. ऊपरी शिमला के रोहड़ू में अड़हाल में भागू राम ने 73 बीघा जमीन पर कब्जा किया था. इसी तरह चौपाल के मड़ावग में शिवराम ने 26 बीघा, भगतराम से 19 बीघा, ठियोग में सुरजन ने 11 बीघा, ज्ञान सिंह ने 10 बीघा, रोहड़ू के थानाबाग में जयदेवा ने 15 बीघा जमीन पर कब्जा किया था. वन विभाग ने उनसे ये कब्जा छुड़वा लिया था.
अवैध कब्जों में शिमला जिला सबसे आगे
स्टेट्स रिपोर्ट के अनुसार शिमला जिला में अवैध कब्जों के 3280 मामले सामने आए थे. इसके बाद कुल्लू जिला में 2392, कांगड़ा में 1757, मंडी में 1218 मामले सामने आए थे. ये वो मामले थे जिनमें लोगों ने 10 बीघा से कम भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ था. इसमें से शिमला जिला में सरकारी वन भूमि पर कब्जा कर सेब बागीचे लगाए गए थे. अन्य जगह अलग-अलग किस्म के कब्जे के मामले सामने आए थे.
दो महिला अफसरों को दिया था 2800 बीघा जमीन छुड़ाने का जिम्मा
हाईकोर्ट ने वर्ष 2018 में 13 परिवारों द्वारा 2800 बीघा से अधिक जमीन को छुड़वाने के लिए दो महिला अफसरों को नियुक्त किया था. आईपीएस अफसर सौम्या सांबशिवन व आईएएस अफसर देबाश्वेता बनिक को तीन सदस्यीय एसआईटी में प्रमुख भूमिका दी गई थी. संबंधित विभागों के अफसरों को आदेश जारी किए गए थे कि एसआईटी का सहयोग करें. कुल 13 परिवारों ने करीब 2776 बीघा वन भूमि पर अवैध कब्जे किये हुए थे और हाईकोर्ट का आदेश होने पर भी राज्य सरकार बाल भी बांका नहीं कर पाई थी. जुब्बल उपमंडल के पाहर गांव के मोतीराम, बबलू व लायक राम के पास संयुक्त रूप से 345 बीघा अवैध कब्जे वाली जमीन थी. इसी गांव के अशोक, हेमंत व ज्ञान सिंह के पास 318 बीघा, बरथाटा गांव के चंपालाल, भूपेंद्र, रमेश कुमार व मोहन लाल के पास 292 बीघा, बरथाटा व बधाल गांव के ज्ञानचंद, बलबीर दौलटा, शीशीराम जेटटा, जोगिंद्र किनटा व सुरेंद्र गुमटा के पास 279 बीघा जमीन अवैध कब्जे वाली थी.
बुलाना पड़ी थी सेना की इको बटालियन
वर्ष 2018 में हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चलते हुए तीन साल का समय हो गया था. सरकार की ढील से नाराज हाईकोर्ट ने अदालत के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिए थे कि इस मामले में तुरंत भारतीय सेना से संपर्क करे. हाईकोर्ट ने अवैध कब्जे हटाने में भारतीय सेना की कुफरी स्थित 133 बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर से संपर्क करने को कहा था. हाईकोर्ट ने डीसी शिमला को आदेश दिए थे कि वो विशेष टीम और इको टास्क फोर्स के सदस्यों को कुशल स्टाफ प्रदान करे. साथ ही विशेष टीम और आर्मी जवानों को आदेश दिए थे कि कब्जों को हटाया जाए.
बाद में सरकार ने विधानसभा में अध्यादेश लाकर पांच बीघा तक की जमीन पर कब्जे को नियमित करने के तौर पर राहत दी थी. अब मामले में नया मोड़ आया है. हाईकोर्ट ने कब्जाधारियों को अवैध रूप से कब्जा की गई जमीन की किस्म बताने को कहा है. अदालत ने पूछा है कि जिस जमीन पर कब्जा किया गया है वो शामलात जमीन है या अन्य किस्म की.