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अचानक आसमान से बरसने लगे आग के गोले, हिंगोट युद्ध देखकर लोगों के छूटे पसीने

इंदौर के गौतमपुरा में इस वर्ष भी हिंगोट युद्ध का आयोजन किया गया, जिसमें तुर्रा दल और कलंगी दल के बीच अग्नियुद्ध हुआ.

INDORE GAUTAMPURA HINGOT WAR
गौतमपुरा में तुर्रा दल और कलंगी दल के बीच हुआ हिंगोट युद्ध (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 3 hours ago

इंदौर: गौतमपुरा में हर साल दीपावली के दूसरे दिन आयोजित होने वाला हिंगोट युद्ध एक परंपरागत और साहसिक आयोजन है, जो न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि पर्यटकों और बाहरी लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है. हर साल की तरह इस बार भी गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध के दौरान रोमांच और परंपरा का अद्वितीय संगम देखने को मिला, जहां गांव के दो दल रुणजी का तुर्रा दल और गौतमपुरा का कलंगी दल ने अपने-अपने शौर्य और साहस का प्रदर्शन किया.

तुर्रा दल और कलंगी दल के बीच हुआ हिंगोट युद्ध

इस वर्ष कलंगी दल में योद्धाओं की संख्या अधिक दिखाई दी, जबकि तुर्रा दल की ओर से योद्धाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम रही. हालांकि, इसने मुकाबले की गंभीरता और संघर्ष की भावना को बिल्कुल भी कम नहीं होने दिया. दोनों पक्षों के योद्धाओं ने बगैर किसी डर के हिंगोट युद्ध का हिस्सा बनकर परंपरा को निभाया और अपने दल की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए अद्भुत जज्बा दिखाया. गौतमपुरा के इस वार्षिक आयोजन में किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए प्रशासन और पुलिस द्वारा सुरक्षा इंतजाम किए गए थे.

इंदौर के गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध का आयोजन (ETV Bharat)

प्रशासन ने किए थे खास इंतजामात

गौतमपुरा थाना प्रभारी अरुण सोलंकी ने बताया, ''इस बार आयोजन के दौरान सुरक्षा के मद्देनजर 280 पुलिस जवान तैनात किए गए थे, ताकि भीड़ पर नियंत्रण रखा जा सके और किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा सके. इसके अलावा, 160 कोटवार, नगर सैनिक और नगर सुरक्षा समिति के सदस्य भी पूरे समय मौके पर मुस्तैद रहे. इन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.''

घायलों की त्वरित चिकित्सा व्यवस्था

हिंगोट युद्ध में हर साल कुछ लोगों के घायल होने की आशंका रहती है और इस बार भी 15 लोगों के घायल होने की खबर सामने आई है. हालांकि, राहत की बात यह है कि कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ. एसडीएम रवि वर्मा ने बताया, ''घायलों को तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पहले से ही इंतजाम किए गए थे. ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. अभिलाष शिवरिया के नेतृत्व में मौके पर 5 एंबुलेंस तैनात की गई थीं, ताकि घायल योद्धाओं को त्वरित उपचार दिया जा सके. चिकित्सा दल ने सक्रियता से घायलों का उपचार किया और स्थिति को नियंत्रण में रखा.''

प्रशासनिक अधिकारी भी रहे मुस्तैद

इस वर्ष हिंगोट युद्ध में सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की भी विशेष उपस्थिति रही. एसडीएम रवि वर्मा, मुख्यालय डीएसपी उमाकांत चौधरी, एसडीओपी राहुल खरे के अलावा बेटमा, गौतमपुरा, देपालपुर, हातोद और चंद्रावतीगंज के टीआई और स्टाफ भी मौके पर मौजूद रहे. इस बार प्रशासन की सतर्कता और तैयारियों के कारण आयोजन में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई और लोगों ने इस परंपरा का भरपूर आनंद लिया.

सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है हिंगोट युद्ध

गौतमपुरा का हिंगोट युद्ध न केवल एक प्राचीन परंपरा है, बल्कि यह क्षेत्रीय संस्कृति और साहस का प्रतीक भी है. स्थानीय लोग इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं और इसके प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं. दीपावली के दूसरे दिन इस युद्ध का आयोजन करते हुए ग्रामीणों ने दिखा दिया कि वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से कितनी गहराई से जुड़े हुए हैं. यह आयोजन आज भी एक जीवित परंपरा के रूप में लोगों को अपने पूर्वजों की बहादुरी और साहस की याद दिलाता है.

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भीड़ में गूंजते जयकारे और रोमांच

इस आयोजन को देखने के लिए गौतमपुरा और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए थे. जयकारों और रोमांच की गूंज के बीच योद्धाओं ने अपने दल की जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी. हिंगोट युद्ध को लेकर लोगों में जोश और उमंग इतना अधिक था कि हर वार, हर पल को भीड़ ने रोमांचित होकर देखा. स्थानीय लोगों और प्रशासन के बेहतर समन्वय के कारण इस परंपरागत आयोजन का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ.

इंदौर: गौतमपुरा में हर साल दीपावली के दूसरे दिन आयोजित होने वाला हिंगोट युद्ध एक परंपरागत और साहसिक आयोजन है, जो न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि पर्यटकों और बाहरी लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है. हर साल की तरह इस बार भी गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध के दौरान रोमांच और परंपरा का अद्वितीय संगम देखने को मिला, जहां गांव के दो दल रुणजी का तुर्रा दल और गौतमपुरा का कलंगी दल ने अपने-अपने शौर्य और साहस का प्रदर्शन किया.

तुर्रा दल और कलंगी दल के बीच हुआ हिंगोट युद्ध

इस वर्ष कलंगी दल में योद्धाओं की संख्या अधिक दिखाई दी, जबकि तुर्रा दल की ओर से योद्धाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम रही. हालांकि, इसने मुकाबले की गंभीरता और संघर्ष की भावना को बिल्कुल भी कम नहीं होने दिया. दोनों पक्षों के योद्धाओं ने बगैर किसी डर के हिंगोट युद्ध का हिस्सा बनकर परंपरा को निभाया और अपने दल की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए अद्भुत जज्बा दिखाया. गौतमपुरा के इस वार्षिक आयोजन में किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए प्रशासन और पुलिस द्वारा सुरक्षा इंतजाम किए गए थे.

इंदौर के गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध का आयोजन (ETV Bharat)

प्रशासन ने किए थे खास इंतजामात

गौतमपुरा थाना प्रभारी अरुण सोलंकी ने बताया, ''इस बार आयोजन के दौरान सुरक्षा के मद्देनजर 280 पुलिस जवान तैनात किए गए थे, ताकि भीड़ पर नियंत्रण रखा जा सके और किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा सके. इसके अलावा, 160 कोटवार, नगर सैनिक और नगर सुरक्षा समिति के सदस्य भी पूरे समय मौके पर मुस्तैद रहे. इन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.''

घायलों की त्वरित चिकित्सा व्यवस्था

हिंगोट युद्ध में हर साल कुछ लोगों के घायल होने की आशंका रहती है और इस बार भी 15 लोगों के घायल होने की खबर सामने आई है. हालांकि, राहत की बात यह है कि कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ. एसडीएम रवि वर्मा ने बताया, ''घायलों को तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पहले से ही इंतजाम किए गए थे. ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. अभिलाष शिवरिया के नेतृत्व में मौके पर 5 एंबुलेंस तैनात की गई थीं, ताकि घायल योद्धाओं को त्वरित उपचार दिया जा सके. चिकित्सा दल ने सक्रियता से घायलों का उपचार किया और स्थिति को नियंत्रण में रखा.''

प्रशासनिक अधिकारी भी रहे मुस्तैद

इस वर्ष हिंगोट युद्ध में सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की भी विशेष उपस्थिति रही. एसडीएम रवि वर्मा, मुख्यालय डीएसपी उमाकांत चौधरी, एसडीओपी राहुल खरे के अलावा बेटमा, गौतमपुरा, देपालपुर, हातोद और चंद्रावतीगंज के टीआई और स्टाफ भी मौके पर मौजूद रहे. इस बार प्रशासन की सतर्कता और तैयारियों के कारण आयोजन में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई और लोगों ने इस परंपरा का भरपूर आनंद लिया.

सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है हिंगोट युद्ध

गौतमपुरा का हिंगोट युद्ध न केवल एक प्राचीन परंपरा है, बल्कि यह क्षेत्रीय संस्कृति और साहस का प्रतीक भी है. स्थानीय लोग इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं और इसके प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं. दीपावली के दूसरे दिन इस युद्ध का आयोजन करते हुए ग्रामीणों ने दिखा दिया कि वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से कितनी गहराई से जुड़े हुए हैं. यह आयोजन आज भी एक जीवित परंपरा के रूप में लोगों को अपने पूर्वजों की बहादुरी और साहस की याद दिलाता है.

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भीड़ में गूंजते जयकारे और रोमांच

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