बगहा: देश के टॉप टेन टाइगर रिजर्व में गिने जाने वाले वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में कर्नाटक से आए पांच हाथियों का काफी महत्व है. दरअसल 980 वर्ग किमी में उत्तर प्रदेश से नेपाल की सीमा तक फैले वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की सुरक्षा की जिम्मेदारी इन गजराज के कंधों पर है. बात चाहे जंगल की रखवाली की हो या वीटीआर के विभिन्न जीव-जंतुओं की सुरक्षा की, ये प्रशिक्षित हाथी हर समय अपनी उपयोगिता साबित करते हैं.
मॉनसून में करते हैं पेट्रोलिंग: मॉनसून सीजन में होने वाली तेज बारिश के कारण जब जंगल के कई इलाकों में जल जमाव और मिट्टी का कटाव होने लगता है, चो ऐसी परिस्थिति में वाहन से आवागमन संभव नहीं हो पाता है. उस समय इन हाथियों से हीं पेट्रोलिंग की जाती है. वाल्मीकिनगर के कौलेश्वर में इन हाथियों के अधिवास की जगह है. इनके नाम मणिकंठा, बाला जी, द्रोण, राजा और रूपा है. वर्ष 2018 में कर्नाटक से पांच हाथियों को वीटीआर में लाया गया था. जिससे आज वनकर्मी जंगल के भीतर बेखौफ होकर गस्ती करते हैं और कई तरह के तस्करों पर नजर रखते हैं.
इन हाथियों का हुआ है विशेष प्रशिक्षण: इन सभी हाथियों को वनों की सुरक्षा करने का विशेष प्रशिक्षण दिया गया है. यूपी और नेपाल सीमा से सटे होने के कारण वाल्मीकि टाइगर रिजर्व का जंगल काफी संवेदनशील हो जाता है. लिहाजा वन्य जीवों और वन संपदा की सुरक्षा के लिए वन विभाग लगातार कोशिश कर है, ताकि तस्करी और शिकार जैसे वन अपराध पर अंकुश लगाया जा सके.
कन्नड़ भाषा समझते थे हाथी: बता दें कि कर्नाटक से वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में लाए गए हाथियों को प्रशिक्षित करने के लिए कर्नाटक से ही चार महावत भी आए थे. जिन्होंने लगातार तीन वर्षों तक इन हाथियों को प्रशिक्षित किया. हालांकि इन हाथियों को पहले हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं था, जिस कारण महावत और हाथियों में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता था लेकिन कन्नड़ भाषा समझने वाले इन हाथियों को असम से बुलाए गए महावतों के द्वारा हिंदी की ट्रेनिंग दी गई.
कन्नड़ में ऐसे मिलती थी कमांड: वीटीआर के महावत ने बताया की ''जब ये हाथी यहां लाए गए थे तब सिर्फ कन्नड़ समझते थे, जिसके बाद उन्होंने हिंदी भाषा और कन्नड़ को साथ - साथ बोलना शुरू किया और धीरे-धीरे कन्नड़ में कमांड देना बंद कर दिया. भाषा के साथ साथ इन हाथियों के डाइट चार्ट में भी वीटीआर की आबोहवा की तर्ज पर बदलाव किया गया है. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने तीन साल बाद उनके डाइट चार्ट में बदलाव किया है.
''इन हाथियों को घूमने के लिए कन्नड़ में ''सरद'' बोला जाता है, वहीं हिंदी में इसके लिए ''चेगम'' कहा जाता है. पीछे हटने के लिए हिंदी में ''हट पीछे'' तो कन्नड़ में ''धाक पीछे'' का कमांड दिया जाता है. ऐसे ही लेटने के लिए''तीयर''बोला जाता है.''-वीटीआर का महावत
क्या है इन हाथियों का भोजन: दरअसल पहले इन हाथियों को कर्नाटक के आबो-हवा और वहां के खानपान के हिसाब से भोजन दिया जाता था. जिसमें धान, गुड़, नमक, हींग, भात, चना और रेडीमेट पौष्टिक आहार शामिल था, लेकिन तीन साल बाद जब धीरे-धीरे ये हाथी वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जलवायु में ढ़ल गए तब इन्हें इस इलाके की आबोहवा से जुड़ा 40 किलो आहार प्रतिदिन दिया जाने लगा. जिसमें पुआल, अजवाइन, मक्का और गेंहू का दर्रा शामिल है. इनके भोजन से गुड़ को हटा दिया गया है और गन्ने की मात्रा बढ़ा दी गई.
वीटीआर में हाथियों की बड़ी भूमिका: वन संरक्षक सह क्षेत्रीय निदेशक डॉ. नेशामणि के. ने बताया कि मॉनसून सीजन में तेज बारिश के कारण जंगल के कई इलाकों में जल जमाव की स्थिति बन जाती है, साथ ही मिट्टी का कटाव होने लगता है. इस परिस्थिति में वाहन से गस्त लगाना संभव नहीं हो पाता. यही वजह है कि इस समस्या से निजात दिलाने में हाथियों की एक बड़ी भूमिका साबित हुई है.
"ये ट्रेंड हाथी दुर्गम जंगली क्षेत्रों में पेट्रोलिंग करते हुए जंगल की बेशकीमती लकड़ियों समेत वन्य जीव जंतुओं की सुरक्षा करते हैं. इनके प्रोटेक्शन का ही नतीजा है की आज बाघों की संख्या में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है. कहने में कोई बुराई नहीं है कि वीटीआर की सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी इन गजराज के कंधों पर है."- डॉ. नेशामणि के, वन संरक्षक सह क्षेत्रीय निदेशक
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