ETV Bharat / state

मोतियों की माला की तरह बनाए गए थे तालाब, तालाबों की नगरी अब खो रही अपनी पहचान

दुर्ग जिले का धमधा क्षेत्र कभी तालाबों की नगरी नाम से जाना जाता था.लेकिन अब अतिक्रमण ने तालाबों का अस्तित्व खत्म कर दिया है.

identity of city of ponds
तालाबों की नगरी धमधा की मिट रही पहचान (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
author img

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 2 hours ago

दुर्ग : दुर्ग जिले से लगा हुआ क्षेत्र धमधा कभी अपने तालाबों के कारण जाना जाता था. इसे छह कोरी, छह आगर तरिया यानी 126 तालाबों वाला नगर कहा जाता है. धर्मधाम धमधा और तालाबों के नगर पर सीजीपीएससी में भी प्रश्न पूछा गया था, क्योंकि जितने तालाब पहले धमधा में थे,उतने किसी दूसरे स्थान में नहीं थे. लेकिन ये तालाब विकास की भेंट चढ़ गए.सरकारी आंकड़ों में अब धमधा में तालाबों की संख्या 29 रह गई है. अधिकारी भी मानते हैं कि अधिकांश तालाब अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए हैं. अब जितने भी तालाब बचे हैं, उन्हें जन जागरूकता अभियान चलाकर बचाया जाएगा. ईटीवी भारत की मुहिम भी इन तालाबों के अस्तित्व को बचाने की है.

अतिक्रमण के कारण तालाब विलुप्त : धमधा के अधिकांश तालाब अवैध कब्जे की भेंट चढ़कर विलुप्त हो गए. सिर्फ 29 तालाब ही बचे हैं. वहीं मुख्य नगर पालिका अधिकारी ओपी ठाकुर ने बताया कि धमधा में त्रिमूर्ति महामाया मंदिर 900 साल पुराना माना जाता है. यह धमधा का सबसे पुराना मंदिर है.धमधा में 126 तालाब हुआ करते थे, अब केवल 29 बचे हैं.

जितने भी तालाब बचे हैं, पूरी तरह से सफाई कर कर लोगों को जागरूक करेंगे और लोगों को कहेंगे कि तालाबों में कचरा ना डालें.तालाबों को बचाना है तो लोगों को जागरूक होना जरूरी है. तालाबों को अतिक्रमण कर लोग घर बना रहे हैं. उन्हें भी हम नोटिस और समझाईश दे रहे हैं- ओपी ठाकुर,नगर पालिका अधिकारी

मोतियों की माला की तरह सजाए गए थे तालाब : वहीं स्थानीय निवासी गोविंद पटेल के मुताबिक धमधा को छै कोरी है आगर तरिया वाले गांव के रूप में जाना जाता है. यानी 126 स्थान तालाब वाला गांव,छत्तीसगढ़ में ऐसे कई स्थान हैं, जहां यह कहावत सुनने को मिलती हैं.रतनपुर,खरौद,नवागढ़,आरंग और मल्हार इसमें शामिल हैं.लेकिन जितने तालाब आज धमधा में दिखते है,उतने दूसरे स्थान पर नहीं दिखते.

मोतियों की माला की तरह 126 तालाबों का निर्माण किया गया था.एक तालाब के पूरा भरने पर दूसरे तालाब में अतिरिक्त पानी चला जाता था.ये सिलसिला 126 तालाबों के पूरा भरने तक चलता रहता था. लेकिन आज यहां आने वाले पर्यटक जब स्थानीय निवासियों से पूछते है कि अब कितने तालाब है तो जबाव होता है 25-30 तालाब - गोविंद पटेल,स्थानीय

वहीं इतिहासकार डॉ विनय शर्मा का कहना है कि धमधा को धर्म नगरी के नाम से जाना जाता है,क्योंकि वहां पर अनेकों प्रसिद्ध मंदिर है, साथी धमधा में 126 तालाब हुआ करते थे, लेकिन अब 100 से ज्यादा तालाब विलुप्त हैं.

तालाबों का जीर्णोद्धार करने के लिए लगातार प्रशासन और स्थानीय लोग जन जागरूकता अभियान चल रहे हैं. हम मानते हैं कि तालाब एक वाटर सोर्सिंग का सबसे बड़ा जरिया होता है. धमधा में जिस प्रकार तालाब हुआ करते थे. वह वाटर सोर्सिंग के लिए सबसे बड़ा उदाहरण है. क्योंकि एक तालाब में पानी भरता तो सारे तालाबों में अपने आप पानी भर जाता था. इससे आसपास के इलाकों में वाटर सोर्सिंग अच्छा रहता था. अब लोग तालाबों पर अतिक्रमण कर चुके हैं. उसे तालाब का अस्तित्व खत्म हो चुका है. उसे पुनर्जीवित करने के लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा. अतिक्रमण हटाकर फिर से तालाब निर्माण करना पड़ेगा- डॉ विनय शर्मा, इतिहासकार


पर्यावरण अधिकारी अनीता सावंत का का भी मानना है कि तालाबों का होना वाटर रिचार्ज के लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि आसपास जितने भी बोर होंगे उसमें वाटर रिचार्ज बहुत जल्दी होता है. इस तरह से जन संरक्षण संवर्धन के लिए तालाब बहुत जरूरी होता है.तालाब की कमी होने पर वाटर रिचार्ज नहीं होगा,जिससे जमीन में पानी का स्तर काफी नीचे चला जाएगा.

Encroachment takes identity
मैप पर तालाबों का ब्यौरा (ETV BHARAT CHHATTISGARH)


कैसे भरते थे सारे तालाब ?: दुर्ग मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर बेमेतरा रोड पर धमधा स्थित है.छतीसगढ़ की 36 रियासतों में धमधागढ़ भी एक रियासत थी. यहां 14वीं-15वीं शताब्दी में गोंड आदिवासी राजाओं का शासन था. जिनका किला आज भी धमधा में मौजूद है. गोंड आदिवासी राजाओं का परिवार महासमुंद के अरण्य गांव में रहकर खेती किसानी कर रहा है. किले को 126 तालाबों के घेरे से अभेद्य बनाया गया था. इन तालाबों को पानी से लबालब रखने का काम "बूढ़ा नरवा" यानि बूढ़ा नाला करता था. बूढ़ा नरवा में पानी की सप्लाई पांच किलोमीटर दूर के खेतों से होती थी और आज भी हो रही है. बारिश और खेतों का अतिरिक्त पानी लंबी नहर से होकर पहले तालाब में पहुंचता था. फिर उसके भरने के बाद दूसरे, तीसरे, चौथे तालाब को भरता हुआ पानी आगे की ओर बढ़ता. धमधा गढ़ के किले के चारों तरफ सुरक्षा और जल संरक्षण की दृष्टि से तीन स्तर में तालाब खोदे गए थे.

मिट्टी में जान डालने वाला अनोखा कलाकार, देखिए हैरतंगेज कला

दंपति का अनोखा प्रकृति प्रेम, फल बांटकर पेड़ लगाबो तभे तो फल खाबो का दे रहे संदेश

सर्व आदिवासी समाज की अनोखी पहल, आने वाले कल का संवार रहे भविष्य

दुर्ग : दुर्ग जिले से लगा हुआ क्षेत्र धमधा कभी अपने तालाबों के कारण जाना जाता था. इसे छह कोरी, छह आगर तरिया यानी 126 तालाबों वाला नगर कहा जाता है. धर्मधाम धमधा और तालाबों के नगर पर सीजीपीएससी में भी प्रश्न पूछा गया था, क्योंकि जितने तालाब पहले धमधा में थे,उतने किसी दूसरे स्थान में नहीं थे. लेकिन ये तालाब विकास की भेंट चढ़ गए.सरकारी आंकड़ों में अब धमधा में तालाबों की संख्या 29 रह गई है. अधिकारी भी मानते हैं कि अधिकांश तालाब अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए हैं. अब जितने भी तालाब बचे हैं, उन्हें जन जागरूकता अभियान चलाकर बचाया जाएगा. ईटीवी भारत की मुहिम भी इन तालाबों के अस्तित्व को बचाने की है.

अतिक्रमण के कारण तालाब विलुप्त : धमधा के अधिकांश तालाब अवैध कब्जे की भेंट चढ़कर विलुप्त हो गए. सिर्फ 29 तालाब ही बचे हैं. वहीं मुख्य नगर पालिका अधिकारी ओपी ठाकुर ने बताया कि धमधा में त्रिमूर्ति महामाया मंदिर 900 साल पुराना माना जाता है. यह धमधा का सबसे पुराना मंदिर है.धमधा में 126 तालाब हुआ करते थे, अब केवल 29 बचे हैं.

जितने भी तालाब बचे हैं, पूरी तरह से सफाई कर कर लोगों को जागरूक करेंगे और लोगों को कहेंगे कि तालाबों में कचरा ना डालें.तालाबों को बचाना है तो लोगों को जागरूक होना जरूरी है. तालाबों को अतिक्रमण कर लोग घर बना रहे हैं. उन्हें भी हम नोटिस और समझाईश दे रहे हैं- ओपी ठाकुर,नगर पालिका अधिकारी

मोतियों की माला की तरह सजाए गए थे तालाब : वहीं स्थानीय निवासी गोविंद पटेल के मुताबिक धमधा को छै कोरी है आगर तरिया वाले गांव के रूप में जाना जाता है. यानी 126 स्थान तालाब वाला गांव,छत्तीसगढ़ में ऐसे कई स्थान हैं, जहां यह कहावत सुनने को मिलती हैं.रतनपुर,खरौद,नवागढ़,आरंग और मल्हार इसमें शामिल हैं.लेकिन जितने तालाब आज धमधा में दिखते है,उतने दूसरे स्थान पर नहीं दिखते.

मोतियों की माला की तरह 126 तालाबों का निर्माण किया गया था.एक तालाब के पूरा भरने पर दूसरे तालाब में अतिरिक्त पानी चला जाता था.ये सिलसिला 126 तालाबों के पूरा भरने तक चलता रहता था. लेकिन आज यहां आने वाले पर्यटक जब स्थानीय निवासियों से पूछते है कि अब कितने तालाब है तो जबाव होता है 25-30 तालाब - गोविंद पटेल,स्थानीय

वहीं इतिहासकार डॉ विनय शर्मा का कहना है कि धमधा को धर्म नगरी के नाम से जाना जाता है,क्योंकि वहां पर अनेकों प्रसिद्ध मंदिर है, साथी धमधा में 126 तालाब हुआ करते थे, लेकिन अब 100 से ज्यादा तालाब विलुप्त हैं.

तालाबों का जीर्णोद्धार करने के लिए लगातार प्रशासन और स्थानीय लोग जन जागरूकता अभियान चल रहे हैं. हम मानते हैं कि तालाब एक वाटर सोर्सिंग का सबसे बड़ा जरिया होता है. धमधा में जिस प्रकार तालाब हुआ करते थे. वह वाटर सोर्सिंग के लिए सबसे बड़ा उदाहरण है. क्योंकि एक तालाब में पानी भरता तो सारे तालाबों में अपने आप पानी भर जाता था. इससे आसपास के इलाकों में वाटर सोर्सिंग अच्छा रहता था. अब लोग तालाबों पर अतिक्रमण कर चुके हैं. उसे तालाब का अस्तित्व खत्म हो चुका है. उसे पुनर्जीवित करने के लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा. अतिक्रमण हटाकर फिर से तालाब निर्माण करना पड़ेगा- डॉ विनय शर्मा, इतिहासकार


पर्यावरण अधिकारी अनीता सावंत का का भी मानना है कि तालाबों का होना वाटर रिचार्ज के लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि आसपास जितने भी बोर होंगे उसमें वाटर रिचार्ज बहुत जल्दी होता है. इस तरह से जन संरक्षण संवर्धन के लिए तालाब बहुत जरूरी होता है.तालाब की कमी होने पर वाटर रिचार्ज नहीं होगा,जिससे जमीन में पानी का स्तर काफी नीचे चला जाएगा.

Encroachment takes identity
मैप पर तालाबों का ब्यौरा (ETV BHARAT CHHATTISGARH)


कैसे भरते थे सारे तालाब ?: दुर्ग मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर बेमेतरा रोड पर धमधा स्थित है.छतीसगढ़ की 36 रियासतों में धमधागढ़ भी एक रियासत थी. यहां 14वीं-15वीं शताब्दी में गोंड आदिवासी राजाओं का शासन था. जिनका किला आज भी धमधा में मौजूद है. गोंड आदिवासी राजाओं का परिवार महासमुंद के अरण्य गांव में रहकर खेती किसानी कर रहा है. किले को 126 तालाबों के घेरे से अभेद्य बनाया गया था. इन तालाबों को पानी से लबालब रखने का काम "बूढ़ा नरवा" यानि बूढ़ा नाला करता था. बूढ़ा नरवा में पानी की सप्लाई पांच किलोमीटर दूर के खेतों से होती थी और आज भी हो रही है. बारिश और खेतों का अतिरिक्त पानी लंबी नहर से होकर पहले तालाब में पहुंचता था. फिर उसके भरने के बाद दूसरे, तीसरे, चौथे तालाब को भरता हुआ पानी आगे की ओर बढ़ता. धमधा गढ़ के किले के चारों तरफ सुरक्षा और जल संरक्षण की दृष्टि से तीन स्तर में तालाब खोदे गए थे.

मिट्टी में जान डालने वाला अनोखा कलाकार, देखिए हैरतंगेज कला

दंपति का अनोखा प्रकृति प्रेम, फल बांटकर पेड़ लगाबो तभे तो फल खाबो का दे रहे संदेश

सर्व आदिवासी समाज की अनोखी पहल, आने वाले कल का संवार रहे भविष्य

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.