भोपाल : साइबर अपराध की दुनिया में डीप वेब नई चुनौती लेकर सामने आ रहा है. डार्क वेब के बाद डीप वेब की बढ़ती चुनौतियों और इससे होने वाले अपराध रोकने के लिए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बड़ी तैयारी हो रही है. यहां देश की सबसे हाईटेक मीडिया फॉरेंसिक लैब बनाई जा रही है. यह लैब भोपाल की नेशनल फॉरेंसिंक यूनिवर्सिटी की भौरी स्थित 27 एकड़ जमीन पर बनाई जाएगी. इस लैब के बनने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि साइबर अपराधों में डीप वेब की मदद से होने वाले अपराधों में ऑडिया-वीडियो, डिजिटल डेटा में होने वाले मेन्युपुलेशन और दूसरे तरह के साइबर अपराधों में सच्चाई मिनटों में सामने आ जाएगी.
देश की सबसे बड़ी मीडिया फॉरेंसिक लैब
नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर प्रो डॉ. सतीश कुमार बताते हैं, '' इस हाईटेक मीडिया फॉरेंसिक लैब के लिए मंजूरी मिल गई है. इसे यूनिवर्सिटी के भौरी स्थित कैंपस में ही 27 एकड़ एरिया में विकसित किया जाएगा. यह सेंटर देश का सबसे हाईटेक सेंटर होगा और यह देश भर में डिजिटल एविडेंस की इंवेस्टीगेशन के लिए एक प्रमुख केन्द्र के रूप में विकसित होगा.
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मीडिया फॉरेंसिक लैब से क्या फायदा होगा?
प्रो डॉ. सतीश कुमार ने आगे बताया, '' इसके बनने से तमाम जांच एजेंसियों को साइबर से जुड़े मामलों की जांच और उनके एविडेंस की इंवेस्टीगेशन में बड़ी मदद मिलेगी. साथ ही इससे न्याय प्रणाली को भी मजबूती मिलेगी. कोर्ट में डिजिटल सबूतों को प्रामाणिकता के साथ पेश किया जा सकेगा.'' बताया जाता है इस लैब के निर्माण के लिए पहले चरण में केन्द्र सरकार द्वारा 120 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है. इसमें यूनिवर्सिटी में लैब, बिल्डिंग, गेस्ट हाउस, स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स और 500 सीट का हॉस्टल का भी निर्माण कराया जाएगा.
अभी गुजरात-दिल्ली भेजने पड़ते हैं डिजिटल सबूत
साइबर अपराध, ऑनलाइन फ्रॉड, डार्क व डीप वेब के गंभीर मामलों के लिए फिलहाल मध्य प्रदेस में मीडिया फॉरेंसिक लैब नहीं है. इस वजह से साइबर अपराधों से जुड़े गंभीर मामलों में सबूतों को साक्ष्य के रूप में प्रमाणित करने के लिए उन्हें दिल्ली या फिर गुजरात भेजा जाता है. यहां मौजूद राष्ट्रीय साइबर फॉरेंसिक लैब में सबूतों की जांच होती है, जिससे ऐसे मामलों में न्याय में देरी होती है. गौरतलब है कि गुजरात के नेशनल लैब को 2022 में शुरू किया गया था. इसके अलावा मध्यप्रदेश सहित 28 राज्यों में साइबर फॉरेंसिक की ट्रेनिंग लैब खोली गई थीं.
डार्क वेब के बाद डीप वेब बड़ा खतरा
मध्यप्रदेश सहित देशभर में साइबर अपराध तेजी से बढ़े हैं. वहीं अब डीप वेब के माध्यम से साइबर अपराध किया जा रहा है, जिससे अपराधियों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है. ऐसे मामलों से निपटने और अपराधियों तक पहुंचकर उन्हें कोर्ट में सजा दिलाने के लिए यह लैब महत्वपूर्ण साबित होगी. इससे भविष्य में होने वाले एआई से जुड़े अपराधों पर भी नकेल कसी जा सकेगी.
डार्क वेब और डीप वेब क्या है?
डार्क वेब और डीप वेब में ज्यादा भिन्नता नहीं है. इंटरनेट पर डार्क वेब, डीप वेब का ही एक हिस्सा है. डार्क वेब इंटरनेट का वो हिस्सा है जो छिपकर काम करता है. इसके जरिए तमाम अवैध गतिविधियां, ड्रग्स, हथियारों की तस्करी और ऑनलाइन फ्रॉड होते हैं. वहीं डीप वेब भी इसी तरह इंटरनेट का एक छिपा हुआ हिस्सा है, जिसे सर्च इंजन्स में इंडेक्स नहीं किया जाता और इन्हें विशेष आईपी एड्रेस से छिपाकर रखा जाता है. डीप वेब के पेज और कॉन्टेंट को छिपाकर रखा जाता है और इसतक पहुंचने के लिए पासवर्ड और लॉगइन क्रिडेंशियल्स की जरूरत पड़ती है. साइबर अपराध की दुनिया में अब डीप वेब का जमकर सहारा लिया जा रहा है.
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