भोपाल: मशहूर गजल गायक उस्ताद अहमद हुसैन ने कहा कि "सुना तभी जाएगा जब आपकी बात में दम हो. चाहे फिर वो शायरी हो या मौसिकी". उस्ताद मोहम्मद हुसैन ने कहा कि "आज भी लोग अच्छा लिख रहे हैं, लेकिन उसमें शायरी की बेसिक ग्रामर नहीं है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि कुछ जिम्मेदारी श्रोताओं की भी है, आप सुनना छोड़ देंगे तो वो वैसे लिखना और गाना छोड़ देंगे.
पुरानी शायरी में लहू है..जुनून है...
उस्ताद अहमद हुसैन कहते हैं, "हम किसी को बुरा नहीं कहते हैं. आज जो चल रहा है, उसके लिए जिम्मेदार हम खुद हैं." वे कहते हैं, आप सुनना छोड़ देंगे, तो वो लिखेंगे नहीं. जिसको हम बुरा कह रहे हैं, उसको ही हम सुनते भी हैं. आप बुरा सुनना छोड़ देंगे तो वो गाना छोड़ देंगे, लिखना छोड देंगे. शायरी में कोई शायरी नहीं है, मौसिकी में मौसिकी नहीं है. आप देखिए तो जो पुरानी चीजे हैं, उन्हे लोग सुनते हैं, क्योकि उसमें लहू है, वक्त है, ठहराव है, जुनून है.
ये भी पढ़ें: |
नए लोगों को बेसिक ग्रामर का पता नहीं...
उस्ताद मोहम्मद हुसैन कहते हैं, "आज के दौर की शायरी में वो बात नहीं दिखाई देते. ऐसा नहीं है कि उसमें कुछ बुरा है. आज का आदमी भी बहुत अच्छा लिख रहा है, अपने हिसाब से. लेकिन उसको बेसिक ग्रामर पता नहीं है. बहर क्या होती है...रदीफ काफिया चीजें क्या होती हैं, ये जानकारी नहीं है. हर चीज में छंद होता है. अब जो शायरी हो रही है, जो लिख रहे हैं उनको अगर अपनी पहचान करवाना है तो सलीके से कहने का हुनर सीखना होगा.''
गुरु की सोहबत जरूरी
मोहम्मद हुसैन ने शायर वसीम बरेलवी साहब का जिक्र करते हुए कहा कि "बरेलवी साहब कहते हैं, कौन सी बात कहां कैसे कही जाती है ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है. हर बात तभी सुनाई देती जब आपकी बात में दम होगा. एक लाइन मिसरा एक वाक्य दो लाइन दोहा तीन लाईन तिपाई चार चौपाई ये सीखना होगा." मोहम्मद हुसैन कहते हैं जब तक गुरु की सोहबत नहीं करेंगे तो उस मय्यार तक पहुंचना मुश्किल है.