बेगूसरायः भगवान राम की जन्मभूमि के नाम से मशहूर यूपी की अयोध्या नगरी की तरह बेगूसराय में भी एक अयोध्या गावं है. जिसका अपना धार्मिक महत्व है. गंगा नदी के करीब बसे इस गावं का नाम सैकड़ो वर्ष पहले कुछ और था, लेकिन यहां आए साधु संतो ने इस गावं के लोगों की सामाजिक स्थिति और धार्मिक आस्था को देखते हुए इस गावं का नाम अयोध्या रख दिया. तभी से ये इलाका अयोध्या गावं के नाम से मशहूर है.
बिहार के बेगूसराय में भी 'अयोध्या': बताया जाता है कि जल मार्ग होने के कारण इस गावं में साधु संतो के आगमन से इसका धार्मिक महत्व दिनों दिन बढ़ता गया. फिलहाल अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से इस गावं के लोगों की खुशी देखते ही बन रही है. यहां के लोग इस अवसर पर गंगा की सफाई, धार्मिक अनुष्ठान, ठाकुरबाड़ी और अपने घरों में घी के दिए जलाएंगे. भजन कृतन होगें और अनुष्ठान होंगे. 22 जनवरी के लिए पूरी आस्था के साथ गांव के लोग इसे सजाने संवारने में लगे हैं.
राम मंदिर को लेकर लोगों में उत्साहः देश भर मे जहां रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है, वहीं बिहार के बेगूसराय जिले के तेघरा प्रखंड स्थित अयोध्या में भी लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. राम जी के वंशज राजा अज के नाम से जाना जाने वाले अजुधा गावं आज 'अयोध्या' के नाम से जाना जाता है, जिसका अपना एक इतिहास है. अयोध्या गावं बेगूसराय के तेघरा के अवध तिरहुत रोड से दो किलोमीटर गंगा के तट पर बसा हुआ है.
इस स्थान का नाम पहले अजूधा थाः बताया जाता है कि मुगल काल में मिर्जा और पैगंबर दो भाई थे, जिन्होंने अपनी सम्पति का बंटवारा आधा आधा करने के लिए एक जगह का नाम आधारपुर रखा और दूसरी जगह का नाम अजुधा रखा. गांव के बुजुर्ग भोलन सिंह ने बताया कि अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेज यहां नील की खेती किया करते थे, उस वक्त अंग्रेजो का दबदबा था. तभी इस स्थान का नाम अजूधा पड़ा. उस जामने मे यहां साधु संत आते थे और यहां कल्पवास किया करते थे.
"साधु संतो के आगमन के दौरान साधु संतो ने पाया कि यहां के लोग धार्मिक हैं, सामजिक और न्याय प्रिय है. तभी से इस स्थान का नाम उन लोगों के द्वारा अयोध्या रखा गया. यहां गंगा पास में ही बहती है. साधु संत आते है और महीनों तक रहकर कल्पवास करते है. पिछले वर्ष भी यहां पर राम नाम कथा, भागवत कथा और अष्टजाम आदी हुआ था.अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, हम सनातनी हैं हम लोगों की राम में गहरी आस्था है. यहा के लोग भी अयोध्या जा रहे है". - भोलन सिंह, ग्रामीण
वहीं ग्रामीण दया शंकर सिंह बाबा ने बताया कि पहले गांव का नाम अजूधा था, एक बर यहां साधु का एक जत्था आया, जिनमें 25-50 की संख्या मे साधु शामिल थे. जिनकी सवारी हाथी, घोड़ा, ऊंट आदी थी. गावं के लोगों ने उन साधुओं की अपने हिसाब से सेवा की 15 दिनों के बाद जब साधु जाने लगे तो, उन्होंने इस गांव का नाम अयोध्या रख दिया. दया शंकर सिंह ने बताया की राम हमारे पूज्य पिता है. 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन हर घर मे पांच-पांच घी के दिए जलाए जाएंगे.
गंगा में नहाने से दूर हुए कुष्ट रोगः वहीं, इस संबंध में गोपाल दास महंत ने बताया कि इस स्थान पर एक कोठी घाट था, जहां स्वामी करपात्री महाराज जी गंगा किनारे रहते थे और वहां पूजा पाठ किया करते थे. उन्हीं महाराज जी के द्वारा यज्ञ कराया गया था. इसी दौरान कुछ ब्राह्मण के द्वारा 108 टिन घी की चोरी कर ली गई. जिसके कारण उनको कुष्ट हो गया. कुष्ट रोगी महाराज जी के पास पहुंचे. महाराज जी के द्वारा यह बताया गया कि उनके द्वारा कुछ गलती की गई हो. जिसका प्रायश्चित करें. इसके बाद उन ब्राह्मणों के द्वारा सारा घी गंगा जी में प्रवाहित कर दिया गया और गंगा मां से क्षमा याचना की. इसके बाद उनका कुष्ठ खत्म हो गया था.
अयोध्या नाम से प्रचलित है इलाकाः वहीं, स्थानीय विवेक गौतम ने बताया कि अयोध्या मिथिला गंगा धाम का इतिहास बहुत पुराना है. इस गांव का नाम भगवान राम के पूर्वज अज के नाम पर था. गांव में सैकड़ों वर्ष पुराना एक बरगद का पेड़ था. जिसका नाम अजगरबर था. जिसे भगवान राम के पूर्वजों के नाम पर रखा गया था. उन्होंने बताया कि यह स्थान अयोध्या मिथिला गंगा घाट के नाम से प्रचलित है. धार्मिक महत्व और स्वच्छता के देखते हुए यहां नेपाल, समस्तीपुर, दरभंगा और सीतामढ़ी के लोग गंगा स्नान के लिए आते है. यहां गंगा में दशहरा के दिन महा आरती का आयोजन होता है.
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