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बिहार में लोग अपनों से पूछ रहे बस एक ही सवाल, 'हैलो.. छठ में आ रहे हो न..?'

छठ में ज्यादा दिन नहीं रह गए. लोग बाहर रहने वाले दोस्तों और सदस्यों से पूछने लगे हैं कि छठ में घर आ रहे हैं?

छठ में घर आ रहे हो ना दोस्त
छठ में घर आ रहे हो ना दोस्त (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 2 hours ago

Updated : 1 hours ago

पटना : छठ बिहार में लोक आस्था का महापर्व है. यह ऐसा पर्व है जिसमें लोग कहीं भी रहे लेकिन घर आकर इस पर्व को मनाना चाहते हैं. यही कारण है की छठ के समय बिहार आने वाली ट्रेनों में टिकटों की वेटिंग लिस्ट काफी लंबी रहती है. ऐसे में छठ का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है बिहार के लोग बाहर रहने वाले अपने परिजनों और दोस्तों को फोन कर पूछ रहे हैं कि इस बार छठ में घर आ रहे हो ना. जब जवाब मिल रहा है कि हां छठ में घर आ रहे हैं तो चेहरा उत्साह से भर जा रहा है. वहीं, जब जवाब मिल रहा है कि छुट्टी नहीं मिलने के कारण इस बार छठ में घर नहीं आ रहे हैं तो बिहार में बैठा दोस्त मायूस हो जा रहा है.

छठ घाट चलना है कब आओगे? : सुनो, तुम छठ पर घर आ रहे हो ना? इस बार कोई बहाना नहीं. तब तुम्हारे साथ नहाय खाय के दिन गंगा घाट जाना है. बाजार से नारियल लाना है. फल पट्टी से सेब और अनार लाना है. मां घर में तुम्हारा राह देख रही हैं. ठेकुआ का गेहूं भी तुम्हीं को सुखाना है. पड़ोस के अजीत भैया, सोनू भैया तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे. कब आएगा? जल्दी आओ सुजीत बाबू! घाट भी सजाना है. शाम को डाला लेकर घाट जाना है. खुशियां है, जो सिर्फ तुम्हारे आने से आएंगी. इसलिए तुम जल्दी आओ. इस छठ तुम्हे आना जरूर. तुम्हारा इंतजार रहेगा.

"छठ एक ऐसा पर्व है जो बाहर रहने वाले लोगों को बिहार से जोड़कर रखता है. मेरी सीट कन्फर्म है लेकिन छुट्टी नहीं. फिर भी मैं छठ बिहार में मनाने आऊंगा. चाहे मुझे नौकरी ही क्यों न छोड़नी पड़े. छठी मैया की कृपा से फिर नौकरी मिल जाएगी."- धीरज

छुट्टी और रिजर्वेशन की किल्लत : सोशल मीडिया पर ऐसे कई रील वायरल हो रहे हैं जिसमें दोस्त आपस में बात कर रहे हैं की छठ में घर आ रहे हो ना. ऐसे ही पटना की एक युवक अंकित भारद्वाज अपने दिल्ली में काम कर रहे दोस्त प्रीयेश को फोन करते हैं और पूछते हैं कि इस बार छठ में घर आ रहे हैं ना. उधर से जवाब मिलता है कि अभी तय नहीं है क्योंकि छुट्टी नहीं मिल रही है. इस बार छुट्टी की किल्लत है जिसके कारण वह घर नहीं आ पा रहे हैं लेकिन फिर भी कोशिश में लगे हैं कि कैसे भी करके बस उन्हें छुट्टी दे दे ताकि वह घर आ जाएं.

'एकजुट करती है छठ' : अंकित ने बताया कि छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें वह लोग भी अपने गांव के घर में पहुंचते हैं, जो परिवार के शादी और अन्य समारोह में भी नहीं पहुंचते हैं. छठ ऐसा पर्व है जो हमें आपस में जोड़ता है और यही पर्व है जिसमें वह अपने पुराने दोस्तों से मुलाकात करते हैं.

सभी दोस्त काम के सिलसिले में अलग-अलग जगह रहते हैं लेकिन छठ के मौके पर घर जरूर आते हैं. जब आते हैं तो उनसे भेंट होती है और एक साथ मिलकर बैठना और बातें करना काफी अच्छा लगता है. साथ बैठकर छठ का प्रसाद ठेकुआ खाते हैं. इससे पहले छठ की तैयारी में सभी दोस्त अपना घाट तैयार करते हैं और इसमें जो आनंद आता है वह कहीं नहीं है.

छठ घाटों की सफाई
छठ घाटों की सफाई (ETV Bharat)

'नौकरी छोड़ देंगे लेकिन न आने का सवाल नहीं' : पटना के अभिषेक पांडे ने अपने दोस्त धीरज को फोन किया जो नोएडा में काम करते हैं. अभिषेक ने पूछा कि और दोस्त छठ में आ रहे हो ना, उधर से उनके दोस्त धीरज का जवाब आता है कि हां आ रहे हैं. खुशी की बात यह है की टिकट भी कंफर्म हो गया है.

अभिषेक इधर से कहते हैं कि वह बड़ी खुशी की बात है, छुट्टी मैनेज हो गया है ना. उधर से धीरज कहते हैं कि छुट्टी अभी नहीं मिला है लेकिन अगर छुट्टी नहीं मिला तो भी वह घर आ जाएंगे. नौकरी छोड़ देंगे, लेकिन छठ में जरूर घर आएंगे, क्योंकि छठ बहुत महत्वपूर्ण है.

परिवार में लोग छठ करते हैं और सारा परिवार छठ में ही एक साथ जुटता है तो ना आने का सवाल ही नहीं. धीरज पूछते हैं कि दोस्त तुम्हें कुछ चाहिए तो मैं लेते आऊंगा. जवाब में इधर से अभिषेक कहते हैं दोस्त तुम आ रहे हो इतना ही काफी है, मिलने का इंतजार है.

ETV Bharat
छठ घाटों की अभी से तैयारी (ETV Bharat)

छठ में बिहार रहने का मन करता है : अभिषेक ने बताया कि उन्होंने अपने सभी दोस्तों से बात की है और लगभग सभी इस बार छठ में घर आ रहे हैं. कई दोस्त नौकरी की परवाह किए बिना छठ मनाने बिहार आ रहे हैं जबकि उनकी छुट्टी अभी भी स्वीकृत नहीं हुई है.

छठ एक ऐसा पर्व है जो हमें अपनी परंपराओं से जोड़ता है. छठ के समय कहीं बाहर रहने का मन नहीं करता मन करता है कि घर पर रहे. छठ का प्रसाद बनाने में माता की मदद करें और दोस्तों के साथ मिलकर पुरानी बातों को याद करते हुए अच्छे दिन का उत्साह मानाएं. अच्छा ठीक है ऐसा पर्व है जो हमें अपने पैतृक स्थान से जोड़कर रखता है और अलग नहीं होने देता.

''छठ के मौका पर घर से दूर रह के मन बहुते भारी बा. बचपन से लेके अब तक के याद बा, बिहाने बिहाने गंगा किनारे जाय के, अरघ देवे के, आ माई तोहरा के उपवास करत देखे के. ई छठ त हमरा खाती खाली परब ना, बलुक हमरा संस्कृति आ परिवार से जोड़ल भाना ह. हम परदेश में जरूर बानी, बाकि मन से हम ओहिजा बानी. ईश्वर से मनावत बानी कि ए बरस हम ओहिजा रहब.''- अभिषेक की पत्र

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पटना : छठ बिहार में लोक आस्था का महापर्व है. यह ऐसा पर्व है जिसमें लोग कहीं भी रहे लेकिन घर आकर इस पर्व को मनाना चाहते हैं. यही कारण है की छठ के समय बिहार आने वाली ट्रेनों में टिकटों की वेटिंग लिस्ट काफी लंबी रहती है. ऐसे में छठ का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है बिहार के लोग बाहर रहने वाले अपने परिजनों और दोस्तों को फोन कर पूछ रहे हैं कि इस बार छठ में घर आ रहे हो ना. जब जवाब मिल रहा है कि हां छठ में घर आ रहे हैं तो चेहरा उत्साह से भर जा रहा है. वहीं, जब जवाब मिल रहा है कि छुट्टी नहीं मिलने के कारण इस बार छठ में घर नहीं आ रहे हैं तो बिहार में बैठा दोस्त मायूस हो जा रहा है.

छठ घाट चलना है कब आओगे? : सुनो, तुम छठ पर घर आ रहे हो ना? इस बार कोई बहाना नहीं. तब तुम्हारे साथ नहाय खाय के दिन गंगा घाट जाना है. बाजार से नारियल लाना है. फल पट्टी से सेब और अनार लाना है. मां घर में तुम्हारा राह देख रही हैं. ठेकुआ का गेहूं भी तुम्हीं को सुखाना है. पड़ोस के अजीत भैया, सोनू भैया तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे. कब आएगा? जल्दी आओ सुजीत बाबू! घाट भी सजाना है. शाम को डाला लेकर घाट जाना है. खुशियां है, जो सिर्फ तुम्हारे आने से आएंगी. इसलिए तुम जल्दी आओ. इस छठ तुम्हे आना जरूर. तुम्हारा इंतजार रहेगा.

"छठ एक ऐसा पर्व है जो बाहर रहने वाले लोगों को बिहार से जोड़कर रखता है. मेरी सीट कन्फर्म है लेकिन छुट्टी नहीं. फिर भी मैं छठ बिहार में मनाने आऊंगा. चाहे मुझे नौकरी ही क्यों न छोड़नी पड़े. छठी मैया की कृपा से फिर नौकरी मिल जाएगी."- धीरज

छुट्टी और रिजर्वेशन की किल्लत : सोशल मीडिया पर ऐसे कई रील वायरल हो रहे हैं जिसमें दोस्त आपस में बात कर रहे हैं की छठ में घर आ रहे हो ना. ऐसे ही पटना की एक युवक अंकित भारद्वाज अपने दिल्ली में काम कर रहे दोस्त प्रीयेश को फोन करते हैं और पूछते हैं कि इस बार छठ में घर आ रहे हैं ना. उधर से जवाब मिलता है कि अभी तय नहीं है क्योंकि छुट्टी नहीं मिल रही है. इस बार छुट्टी की किल्लत है जिसके कारण वह घर नहीं आ पा रहे हैं लेकिन फिर भी कोशिश में लगे हैं कि कैसे भी करके बस उन्हें छुट्टी दे दे ताकि वह घर आ जाएं.

'एकजुट करती है छठ' : अंकित ने बताया कि छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें वह लोग भी अपने गांव के घर में पहुंचते हैं, जो परिवार के शादी और अन्य समारोह में भी नहीं पहुंचते हैं. छठ ऐसा पर्व है जो हमें आपस में जोड़ता है और यही पर्व है जिसमें वह अपने पुराने दोस्तों से मुलाकात करते हैं.

सभी दोस्त काम के सिलसिले में अलग-अलग जगह रहते हैं लेकिन छठ के मौके पर घर जरूर आते हैं. जब आते हैं तो उनसे भेंट होती है और एक साथ मिलकर बैठना और बातें करना काफी अच्छा लगता है. साथ बैठकर छठ का प्रसाद ठेकुआ खाते हैं. इससे पहले छठ की तैयारी में सभी दोस्त अपना घाट तैयार करते हैं और इसमें जो आनंद आता है वह कहीं नहीं है.

छठ घाटों की सफाई
छठ घाटों की सफाई (ETV Bharat)

'नौकरी छोड़ देंगे लेकिन न आने का सवाल नहीं' : पटना के अभिषेक पांडे ने अपने दोस्त धीरज को फोन किया जो नोएडा में काम करते हैं. अभिषेक ने पूछा कि और दोस्त छठ में आ रहे हो ना, उधर से उनके दोस्त धीरज का जवाब आता है कि हां आ रहे हैं. खुशी की बात यह है की टिकट भी कंफर्म हो गया है.

अभिषेक इधर से कहते हैं कि वह बड़ी खुशी की बात है, छुट्टी मैनेज हो गया है ना. उधर से धीरज कहते हैं कि छुट्टी अभी नहीं मिला है लेकिन अगर छुट्टी नहीं मिला तो भी वह घर आ जाएंगे. नौकरी छोड़ देंगे, लेकिन छठ में जरूर घर आएंगे, क्योंकि छठ बहुत महत्वपूर्ण है.

परिवार में लोग छठ करते हैं और सारा परिवार छठ में ही एक साथ जुटता है तो ना आने का सवाल ही नहीं. धीरज पूछते हैं कि दोस्त तुम्हें कुछ चाहिए तो मैं लेते आऊंगा. जवाब में इधर से अभिषेक कहते हैं दोस्त तुम आ रहे हो इतना ही काफी है, मिलने का इंतजार है.

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छठ घाटों की अभी से तैयारी (ETV Bharat)

छठ में बिहार रहने का मन करता है : अभिषेक ने बताया कि उन्होंने अपने सभी दोस्तों से बात की है और लगभग सभी इस बार छठ में घर आ रहे हैं. कई दोस्त नौकरी की परवाह किए बिना छठ मनाने बिहार आ रहे हैं जबकि उनकी छुट्टी अभी भी स्वीकृत नहीं हुई है.

छठ एक ऐसा पर्व है जो हमें अपनी परंपराओं से जोड़ता है. छठ के समय कहीं बाहर रहने का मन नहीं करता मन करता है कि घर पर रहे. छठ का प्रसाद बनाने में माता की मदद करें और दोस्तों के साथ मिलकर पुरानी बातों को याद करते हुए अच्छे दिन का उत्साह मानाएं. अच्छा ठीक है ऐसा पर्व है जो हमें अपने पैतृक स्थान से जोड़कर रखता है और अलग नहीं होने देता.

''छठ के मौका पर घर से दूर रह के मन बहुते भारी बा. बचपन से लेके अब तक के याद बा, बिहाने बिहाने गंगा किनारे जाय के, अरघ देवे के, आ माई तोहरा के उपवास करत देखे के. ई छठ त हमरा खाती खाली परब ना, बलुक हमरा संस्कृति आ परिवार से जोड़ल भाना ह. हम परदेश में जरूर बानी, बाकि मन से हम ओहिजा बानी. ईश्वर से मनावत बानी कि ए बरस हम ओहिजा रहब.''- अभिषेक की पत्र

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