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लैंगिक भेदभावपूर्ण कानूनों पर सख्त सुप्रीम कोर्ट, यूपी-उत्तराखंड को जारी किया नोटिस, जानिए पूरा मामला - GENDER DISCRIMINATORY LAWS

पैतृक संपत्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी मामले में लैंगिक आधार पर भेदभाव कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (फोटो साभार- Getty Images)
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By Sumit Saxena

Published : Nov 7, 2024, 4:53 PM IST

Updated : Nov 7, 2024, 5:03 PM IST

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. यह जवाब लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों को हटाए जाने को लेकर मांगा गया है. जिसमें दोनों राज्यों में लैंगिक आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों को खत्म करने की मांग की गई है. जो शादी के बाद बेटी को पैतृक संपत्ति में उसकी हिस्सेदारी और विधवा महिला को ससुराल की संपत्ति में उसके हिस्से से वंचित करने से जुड़ा है.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने श्वेता गुप्ता की ओर से दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई की. जिसके तहत सुनवाई करते हुए बेंच ने दोनों राज्यों (उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) को नोटिस जारी किया है.

वकील ने दिया ये तर्क: याचिकाकर्ता श्वेता गुप्ता के वकील केसी जैन ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में लैंगिक आधार पर भेदभाव के प्रावधानों के तहत इस संबंध में राहत देने की मांग करने वाली याचिका पर विचार किया था.

याचिकाकर्ता का कहना था कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 (UP Revenue Code 2006) की धारा 109 के तहत जब एक महिला (जिसे अपने पिता से जमीन विरासत में मिली है) की मौत हो जाती है तो उसकी जमीन उसके अपने उत्तराधिकारियों के बजाय उसके पति के उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हो जाती है.

इसी तरह प्रावधान ने शादी के बाद अपने पिता से विरासत में मिली जमीन पर बेटी के मालिकाना हक को भी खत्म कर दिया गया. इसी प्रावधान में ये भी प्रावधान किया गया है कि यदि विधवा महिला पुनर्विवाह यानी दोबारा शादी करती है तो वो अपने मृत पति से विरासत में मिली भूमि से वंचित हो जाती है. यानी पति से मिली संपत्ति पर उसका अधिकार समाप्त हो जाएगा. क्योंकि, यह भूमि अंतिम पुरुष धारक के अगले जीवित उत्तराधिकारी को मिलेगी.

याचिकाकर्ता का कहना है कि 'क्या महिला की वैवाहिक स्थिति उसकी पहचान निर्धारित कर सकती है? जिससे वो भूमि के अधिकार का हकदार है या नहीं. जबकि, उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के तहत उत्तराधिकार के लिए पुरुष की वैवाहिक स्थिति का कोई महत्व नहीं है. इसकी भी जानकारी दी जाए. वहीं, पूरे मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दोनों राज्यों से जवाब मांगा है.

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दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. यह जवाब लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों को हटाए जाने को लेकर मांगा गया है. जिसमें दोनों राज्यों में लैंगिक आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों को खत्म करने की मांग की गई है. जो शादी के बाद बेटी को पैतृक संपत्ति में उसकी हिस्सेदारी और विधवा महिला को ससुराल की संपत्ति में उसके हिस्से से वंचित करने से जुड़ा है.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने श्वेता गुप्ता की ओर से दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई की. जिसके तहत सुनवाई करते हुए बेंच ने दोनों राज्यों (उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) को नोटिस जारी किया है.

वकील ने दिया ये तर्क: याचिकाकर्ता श्वेता गुप्ता के वकील केसी जैन ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में लैंगिक आधार पर भेदभाव के प्रावधानों के तहत इस संबंध में राहत देने की मांग करने वाली याचिका पर विचार किया था.

याचिकाकर्ता का कहना था कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 (UP Revenue Code 2006) की धारा 109 के तहत जब एक महिला (जिसे अपने पिता से जमीन विरासत में मिली है) की मौत हो जाती है तो उसकी जमीन उसके अपने उत्तराधिकारियों के बजाय उसके पति के उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हो जाती है.

इसी तरह प्रावधान ने शादी के बाद अपने पिता से विरासत में मिली जमीन पर बेटी के मालिकाना हक को भी खत्म कर दिया गया. इसी प्रावधान में ये भी प्रावधान किया गया है कि यदि विधवा महिला पुनर्विवाह यानी दोबारा शादी करती है तो वो अपने मृत पति से विरासत में मिली भूमि से वंचित हो जाती है. यानी पति से मिली संपत्ति पर उसका अधिकार समाप्त हो जाएगा. क्योंकि, यह भूमि अंतिम पुरुष धारक के अगले जीवित उत्तराधिकारी को मिलेगी.

याचिकाकर्ता का कहना है कि 'क्या महिला की वैवाहिक स्थिति उसकी पहचान निर्धारित कर सकती है? जिससे वो भूमि के अधिकार का हकदार है या नहीं. जबकि, उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के तहत उत्तराधिकार के लिए पुरुष की वैवाहिक स्थिति का कोई महत्व नहीं है. इसकी भी जानकारी दी जाए. वहीं, पूरे मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दोनों राज्यों से जवाब मांगा है.

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Last Updated : Nov 7, 2024, 5:03 PM IST
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