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विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस 2024 : गर्भावस्था के समय भूलकर भी न करें यह काम, बच्चा हो सकता है डाउन सिंड्रोम का शिकार

दुनिया भर में लोगों में डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता (World Down Syndrome Day 2024) फैलाने के उद्देश्य से 21 मार्च को 'विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस' मनाया जाता है. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 21, 2024, 10:07 AM IST

लखनऊ :बहुत से ऐसे बच्चे होते हैं, जो डाउन सिंड्रोम डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं. इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकास नहीं होता है. हर 21 मार्च को वर्ष 'विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस' मनाया जाता है. ऐसे में गर्भावस्था के समय कुछ बातों का ध्यान देना चाहिए. प्रजनन के समय माता और पिता दोनों के क्रोमोसोम बच्चे तक पहुंचते हैं. कुल 46 क्रोमोसोम में से 23 माता और 23 पिता के होते हैं. ये दोनों क्रोमोसोम जब आपस में मिलते हैं, तो इनमें से 21वां क्रोमोसोम अपनी एक अतिरिक्त प्रतिलिपि बना देता है. यही अतिरिक्त क्रोमोसोम बच्चे में कई तरह के शारीरिक और मानसिक विकार पैदा करता है. इस बार विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस 2024 की थीम 'रूढ़िवादिता समाप्त करें' रखा गया है.

15 से 20 फीसदी बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित :सिविल अस्पताल के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. एस देव के मुताबिक, प्रदेश में 15 से 20 फीसदी बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं. किसी में यह सिंड्रोम अधिक होता है तो किसी को कम होता है. लेकिन, इसमें बच्चे शारीरिक और बौद्धिक रूप से कमजोर होते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपना विशेष ख्याल रखना चाहिए ताकि उनका होने वाला बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ पैदा हो. डॉ. एस देव ने बताया कि यह एक आनुवांशिक विकार है. सामान्यत एक बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है, जिनमें से 23 क्रोमोसोम का एक सेट वह अपनी मां से तथा 23 क्रोमोसोम का एक सेट अपने पिता से ग्रहण करता है. जो संख्या में कुल 46 होते हैं. लेकिन, यदि बच्चे को उसके माता या पिता से एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मिल जाता है तो वह डाउन सिंड्रोम का शिकार बन जाता है. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित शिशु में एक अतिरिक्त 21वां क्रोमोसोम आ जाने से उसके शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या बढ़कर 47 हो जाती है. सामान्य बच्चों की अपेक्षा, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास की गति धीमी रहती है. इस विकार से पीड़ित लोगों के चेहरे की बनावट दूसरों से अलग होती है. साथ ही उनमें बौद्धिक विकलांगता भी पाई जाती है.

डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और लक्षण :उन्होंने बताया कि रोग नियंत्रण और निवारण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और इस बीमारी की गंभीरता हर पीड़ित बच्चे में अलग-अलग हो सकती है. डाउन सिंड्रोम के चलते पीड़ितों में नजर आने वाली कुछ शारीरिक भिन्नताएं और विकार के लक्षण अलग-अलग प्रकार के होते हैं.
- चपटा चेहरा, खासकर नाक की चपटी नोक.
- ऊपर की ओर झुकी हुई आंखें.
- छोटी गर्दन और छोटे कान.
- मुंह से बाहर निकलती रहने वाली जीभ.
- मांसपेशियों में कमजोरी, ढीले जोड़ और अत्याधिक लचीलापन.
- चौड़े, छोटे हाथ, हथेली में एक लकीर.
- अपेक्षाकृत छोटी अंगुलियां, छोटे हाथ और पांव.
- छोटा कद.
- आंख की पुतली में छोटे सफेद धब्बे.
- इसके अलावा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों और वयस्कों में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं भी पाई जाती हैं. जैसे ल्यूकेमिया, कमजोर नजर, सुनने की क्षमता में कमी, हृदय रोग, याद्दाश्त में कमी, स्लीप एपनिया आदि. इसके अलावा उन्हें विभिन्न प्रकार के संक्रमणों का भी खतरा रहता है.

डाउन सिंड्रोम होने की पुष्टि के लिए करवाया जाता है टेस्ट :उन्होंने बताया कि कोई महिला 35 या उसके अधिक उम्र के बाद गर्भवती होती हैं, तो ऐसी अवस्था में जन्म लेने वाले बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका ज्यादा रहती है. इसके अलावा परिवार में डाउन सिंड्रोम का इतिहास रहा हो, विशेषकर माता-पिता के भाई-बहन में किसी को डाउन सिंड्रोम हो या फिर अगर पहले बच्चे को डाउन सिंड्रोम है, तो दूसरे बच्चे में भी इसका खतरा बढ़ जाता है. इसलिए चिकित्सक एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं. यह एक डायग्नोस्टिक टेस्ट होता है, जिसका इस्तेमाल आनुवांशिक स्वास्थ्य स्थितियों की पुष्टि करने के लिए किया जाता है. बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की पुष्टि के लिए यह टेस्ट करवाया जाता है. उन्होंने बताया कि वैसे तो यह नेचुरल बीमारी होती है जोकि जन्मजात बच्चे को होता है. गर्भावस्था के दौरान महिला को एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और जो दवाई डॉक्टर द्वारा मना की गई है उनका सेवन न करें.

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