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छत्तीसगढ़ी परंपरा की झलक दिखाता सुआ नृत्य, गांव की युवा पीढ़ी संजो रही धरोहर

दिवाली के मौके पर छत्तीसगढ़ में सुआ नृत्य किया जाता है.बदलते दौर में इस नृत्य को बचाने के लिए युवा आगे आए हैं.

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छत्तीसगढ़ी परंपरा की झलक दिखाता सुआ नृत्य (ETV Bharat Chhattisgarh)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 25, 2024, 11:06 PM IST

रायपुर :सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जो न केवल उनके धार्मिक और सामाजिक जीवन को समृद्ध करता है, बल्कि उनके सांस्कृतिक गर्व और पहचान को भी बनाए रखता है. सुआ नृत्य को तोता के लिए नृत्य भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति का एक प्रमुख लोकनृत्य है. सुआ नृत्य मुख्यतः आदिवासी महिलाएं करती हैं. दीपावली के समय इसका आयोजन खासतौर पर होता है.

आदिवासियों की है पहचान :यह नृत्य छत्तीसगढ़ की जनजातियों, विशेष रूप से गोंड, बैगा और हल्बा जनजातियों में प्रचलित है, जो इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मनाते हैं. वर्तमान दौर में यह नृत्य आदिवासी परंपराओं से आगे बढ़कर अब सामान्य संस्कृति का हिस्सा बन चुका है. ईटीवी भारत ने सुआ नृत्य करने वाली टीम से बात की और इसके बारे में जाना. सुआ नृत्य करने वाली सारी लड़कियां स्कूल और कॉलेज में पढ़ती हैं. पढ़ाई और शिक्षा तो जरूरी हैं लेकिन साथ में हमारी संस्कृति और परंपरा को बचाने के लिए गांव की लड़कियां एकजुट हुई हैं.

सुआ नृत्य का महत्व समझिए (ETV BHARAT)



सामाजिक एकता को देता है बढ़ावा : सुआ नृत्य के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गांव हो या शहर हर तरफ दीपावली के अवसर पर छोटी बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक सुआ नृत्य करते दिखाई देती हैं. यह केवल एक सांस्कृतिक आयोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदाय की धार्मिक और सामाजिक परंपराओं से भी जुड़ा हुआ है. इस नृत्य के माध्यम से महिलाएं अपनी फसल कटाई के बाद की खुशियों को साझा करती हैं. आने वाले समय के लिए समृद्धि की कामना करती हैं. यह नृत्य सामुदायिक एकता को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि इसे सामूहिक रूप से आयोजित किया जाता है, जिसमें गांव के सभी लोग हिस्सा लेते हैं. सुआ नृत्य करने वाली दुलेश्वरी ठाकुर ने बताया कि सुआ नृत्य गांव वालों के लिए त्यौहार है. इसे दिवाली में मनाते हैं. साथ ही शिव और पार्वती की शादी भी करते हैं.

सुआ हमारी सांस्क़ृतिक और पारंपरिक नृत्य है. ज्यादातर इसे गांव के लोग करते हैं. गांव में ही आयोजन किया जाता हैं. अभी के लोग ज्यादा जानते नहीं हैं. इस परंपरा को हम आगे बढ़ा रहे हैं ताकि आगे की पीढ़ी भी इसे अपनाएं- दुलेश्वरी ठाकुर, सुआ डांस करने वाली युवती


दुलेश्वरी ठाकुर ने बताया कि हम दूर गांव जा नहीं सकते. हमारा गांव दूसरे गांव से बहुत दूर है. हमारे गांव से कसडोल 25 किलोमीटर दूर है. हम रात में दूर जा नहीं सकते. इसलिए रोड में सुआ नृत्य करते हैं. आने जाने वाले लोग देखते हैं जिसको देखना होता हैं वो रुक कर देखता हैं. देखने वाले लोग तारीफ भी करते हैं. नृत्य के साथ ड्रेस कोड की भी तारीफ करते हैं. दूर दराज से आने वाले लोग बड़े ही शौक से देखकर आनंद लेते हैं.


परंपरा बचने पढ़ने वाली बच्चियों की मुहिम :वहीं हिना ठाकुर ने बताया कि हमारे छत्तीसगढ़ के लोक सांस्कृतिक सुआ नृत्य हैं. यह हमारी परंपरा है. इसे आगे बढ़ाने का एक छोटा सा प्रयास हैं.

सुआ नृत्य सुआ के लिए ही होता हैं. सुआ जिसे हिंदी में तोता कहते है. इससे होने वाले इनकम से हम गौरा-गौरी जिसमें हम शिव और पार्वती की शादी करते हैं. अपना कमाया हुए धन को इसी में लगाते हैं. इसके अलावा गांव और बाहर से आए लोगों को भोजन कराने में खर्च करते हैं- हिना ठाकुर, सुआ डांस करने वाली युवती

महिलाएं और बच्चियां करती हैं सुआ नित्य :महिलाएं अपने सिर पर घुंघरू बांधती हैं. पारंपरिक वेशभूषा में सजती हैं, जो उनकी संस्कृति की झलक को प्रदर्शित करता है. गीतों के माध्यम से महिलाएं अपने जीवन के पहलुओं और पारिवारिक जीवन की भावनाओं को व्यक्त करती हैं. सुआ नृत्य की प्रस्तुति के दौरान गाए जाने वाले गीत ना केवल मनोरंजन के लिए होते हैं, बल्कि उनमें जीवन की कठिनाइयों, प्रेम, विरह और धार्मिक मान्यताओं की भावनाओं का भी वर्णन किया जाता है. गीतों में प्राकृतिक सौंदर्य, पशु-पक्षियों की विशेषता तथा आदिवासी जीवन की सरलता और संघर्ष का भी उल्लेख होता है.

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