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'ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए', ताहिर हुसैन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी - SUPREME COURT

ताहिर हुसैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे सभी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 20, 2025, 5:54 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अंतरिम जमानत के लिए दायर पूर्व पार्षद और दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन की याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसे सभी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई 21 जनवरी तक के लिए टाल दी.

जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने समय की कमी के कारण सुनवाई स्थगित कर दी थी, लेकिन जैसे ही पीठ दिन के लिए उठने लगी, हुसैन के वकील ने मामले का उल्लेख किया और 21 जनवरी को सुनवाई का अनुरोध किया. पीठ ने जवाब में टिप्पणी की, "जेल में बैठकर चुनाव जीतना आसान है. ऐसे सभी लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए." उनके वकील ने कहा कि हुसैन का नॉमिनेशन स्वीकार कर लिया गया है.

AIMIM के टिकट पर नामांकन
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने 14 जनवरी को हुसैन को AIMIM के टिकट पर मुस्तफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए कस्टडी पैरोल दी थी.हालांकि, इसने चुनाव लड़ने के लिए 14 जनवरी से 9 फरवरी तक अंतरिम जमानत के लिए उनकी याचिका को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि हिंसा में मुख्य अपराधी होने के नाते हुसैन के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की मौत हो गई.

ताहिर हुसैन के खिलाफ 11 एफआईआर
हाईकोर्ट ने कहा कि दंगों के सिलसिले में उनके खिलाफ लगभग 11 एफआईआर दर्ज की गई थीं और वह संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले और यूए मामले में हिरासत में थे. वहीं, हुसैन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि चुनाव लड़ना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसके लिए उन्हें न केवल 17 जनवरी तक अपना नामांकन दाखिल करना था, बल्कि बैंक अकाउंट भी खोलना था और प्रचार करना था.

पुलिस ने आरोप लगाया था कि हुसैन जो फरवरी 2020 के दंगों का मुख्य साजिशकर्ता और फंडरथा, औपचारिकताएं पूरी कर सकता है और कस्टडी पैरोल पर चुनाव लड़ सकता है. बता दें कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में 53 लोग मारे गए थे और कई घायल हुए थे.

अभियोजन पक्ष के अनुसार 26 फरवरी 2020 को शिकायतकर्ता रविंदर कुमार ने दयालपुर पुलिस स्टेशन को सूचित किया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो में तैनात उनका बेटा अंकित शर्मा 25 फरवरी 2020 से लापता है. शर्मा के शव को कथित तौर पर दंगा प्रभावित क्षेत्र के खजूरी खास नाले से बरामद किया गया था और उसके शरीर पर 51 चोटों के निशान थे.

114 गवाहों में से केवल 20 की ही जांच
हुसैन ने जमानत याचिका में कहा कि उसने 4.9 साल जेल में बिताए और हालांकि मामले में मुकदमा शुरू हो गया है, लेकिन अब तक अभियोजन पक्ष के 114 गवाहों में से केवल 20 की ही जांच की गई है. हुसैन ने दलील दी कि उसे लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा है. उसने याचिका में कहा कि तथ्य यह है कि कई गवाहों की जांच अभी भी बाकी है, जिसका मतलब है कि मुकदमा जल्द खत्म नहीं होगा.

यह भी पढ़ें- कौन है संजय रॉय ? जिसको कोर्ट ने आरजी कर केस में सुनाई सजा, अब जेल में उम्र भर पीसेगा चक्की

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अंतरिम जमानत के लिए दायर पूर्व पार्षद और दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन की याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसे सभी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई 21 जनवरी तक के लिए टाल दी.

जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने समय की कमी के कारण सुनवाई स्थगित कर दी थी, लेकिन जैसे ही पीठ दिन के लिए उठने लगी, हुसैन के वकील ने मामले का उल्लेख किया और 21 जनवरी को सुनवाई का अनुरोध किया. पीठ ने जवाब में टिप्पणी की, "जेल में बैठकर चुनाव जीतना आसान है. ऐसे सभी लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए." उनके वकील ने कहा कि हुसैन का नॉमिनेशन स्वीकार कर लिया गया है.

AIMIM के टिकट पर नामांकन
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने 14 जनवरी को हुसैन को AIMIM के टिकट पर मुस्तफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए कस्टडी पैरोल दी थी.हालांकि, इसने चुनाव लड़ने के लिए 14 जनवरी से 9 फरवरी तक अंतरिम जमानत के लिए उनकी याचिका को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि हिंसा में मुख्य अपराधी होने के नाते हुसैन के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की मौत हो गई.

ताहिर हुसैन के खिलाफ 11 एफआईआर
हाईकोर्ट ने कहा कि दंगों के सिलसिले में उनके खिलाफ लगभग 11 एफआईआर दर्ज की गई थीं और वह संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले और यूए मामले में हिरासत में थे. वहीं, हुसैन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि चुनाव लड़ना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसके लिए उन्हें न केवल 17 जनवरी तक अपना नामांकन दाखिल करना था, बल्कि बैंक अकाउंट भी खोलना था और प्रचार करना था.

पुलिस ने आरोप लगाया था कि हुसैन जो फरवरी 2020 के दंगों का मुख्य साजिशकर्ता और फंडरथा, औपचारिकताएं पूरी कर सकता है और कस्टडी पैरोल पर चुनाव लड़ सकता है. बता दें कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में 53 लोग मारे गए थे और कई घायल हुए थे.

अभियोजन पक्ष के अनुसार 26 फरवरी 2020 को शिकायतकर्ता रविंदर कुमार ने दयालपुर पुलिस स्टेशन को सूचित किया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो में तैनात उनका बेटा अंकित शर्मा 25 फरवरी 2020 से लापता है. शर्मा के शव को कथित तौर पर दंगा प्रभावित क्षेत्र के खजूरी खास नाले से बरामद किया गया था और उसके शरीर पर 51 चोटों के निशान थे.

114 गवाहों में से केवल 20 की ही जांच
हुसैन ने जमानत याचिका में कहा कि उसने 4.9 साल जेल में बिताए और हालांकि मामले में मुकदमा शुरू हो गया है, लेकिन अब तक अभियोजन पक्ष के 114 गवाहों में से केवल 20 की ही जांच की गई है. हुसैन ने दलील दी कि उसे लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा है. उसने याचिका में कहा कि तथ्य यह है कि कई गवाहों की जांच अभी भी बाकी है, जिसका मतलब है कि मुकदमा जल्द खत्म नहीं होगा.

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