बक्सर: बिहार के बक्सर लोकसभा सीट से केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे को भाजपा का टिकट नहीं मिलना सत्ताधारी दल के साथ ही विपक्ष के नेताओं को भी चौंका दिया है. अश्विनी कुमार चौबे संघ के बड़े नेताओं के करीबी माने जाते हैं. उसके बाद भी उन्हें एक ही झटके में बेटिकट कर दिया गया, जो पूरे लोकसभा क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है. पार्टी के वरिष्ठ नेता राणा प्रताप सिंह की मानें तो अश्विनी कुमार चौबे को उनके कर्मों का फल मिला है.
कितना मुश्किल होगा सीट निकालनाः लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा ने अश्विनी चौबे की जगह मिथिलेश तिवारी को अपना उम्मीदवार बनाया है. राजनीति गलियारे में चर्चा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में ही बैकुंठपुर के पूर्व विधायक मिथलेश तिवारी को चुनाव लड़ना था. लेकिन तब अश्विनी चौबे ने अपने ओहदे का गलत इस्तेमाल कर, उनका नाम कटवा दिया. और खुद भागलपुर से चुनाव लड़ने बक्सर आ गए. एक दशक बाद मिथलेश तिवारी ने पटकनी देकर टिकट हासिल कर कर लिया है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो मिथलेश तिवारी के लिए बक्सर सीट से चुनाव जीत पाना आसान नहीं होगा.
भितराघात की आशंकाः एक दशक बाद भले ही बक्सर लोकसभा सीट से टिकट हासिल करने में मिथलेश तिवारी सफल हो गए हों, लेकिन उनकी जीत के रास्ते में कई मुश्किलें खड़ी हैं. 8 महीने पहले स्थानीय सांसद अश्विनी कुमार चौबे के दबाव में जिस तरह से पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने जिले के दो बड़े भूमिहार और राजपूत नेता को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था उनके अपमान का घाव अभी भी भरा नहीं है. जानकारों की मानें तो अश्विनी कुमार चौबे का गुट भी बदले की भावना से भितराघात करने की तैयार कर रहा है. इसके अलावे नए युवा कार्यकर्ता, बाहरी नेताओं की एंट्री से नाराज होकर अपना विकल्प कहीं और खोज रहे हैं.
क्या है जातीय समीकरण: बक्सर संसदीय क्षेत्र में 19 लाख 16 हजार 81 मतदाता हैं. सबसे अधिक ब्राह्मण वोटरों की संख्या है. इसके बाद यादव और राजपूत हैं. इस सीट पर भूमिहार जाति की संख्या भी अच्छी-खासी है. यहां अनुसूचित जाति अति पिछड़ा की भी संख्या कम नहीं है. बक्सर की सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 4 लाख से ज्यादा है. इसके बाद यादव वोटरों की संख्या 3.5 लाख के करीब है. राजपूत मतदाताओं की संख्या 3 लाख है. भूमिहार मतदाता करीब 2.5 लाख हैं. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी 1.5 लाख के करीब है. इसके अलावा यहां पर कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, दलित और अन्य जातियां भी बड़ी तादाद में हैं.
"दोनों गठबन्धन के उम्मीदवारों को भितरघात का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में कोई तीसरा चेहरा इसका फायदा उठाने में सफल हो सकता है. चाहे, वह ददन पहलवान उर्फ ददन यादव हो या बीएसपी उम्मीदवार अनिल सिंह उर्फ अनिल बिल्डर."- राहुल आनन्द, वरिष्ठ अधिवक्ता सह राजनीतिक विश्लेषक
बक्सर लोकसभा क्षेत्र का इतिहासः बक्सर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार 1952 में कमल सिंह ने निर्दलीय चुनाव जीता था. 1957 में भी कमल सिंह (निर्दलीय) चुनाव जीतने में सफल रहे. 1962 में कांग्रेस के अनंत प्रसाद शर्मा सांसद बने. 1967 में भी इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली लेकिन, इस बार उम्मीदवार राम सुभाग सिंह थे. 1971 में एक बार फिर कांग्रेस से अनंत प्रसाद शर्मा टिकट हासिल किया और चुनाव जीते. 1977 में जनता पार्टी की इंट्री होती है. रामानंद तिवारी चुनाव जीतते हैं. 1980 में एक बार फिर कांग्रेस सीट हासिल करने में कामयाब होती है. कांग्रेस से कमला कांत तिवारी चुनाव जीतते हैं. 1984 में भी कांग्रेस से केके तिवारी ही सांसद चुने जाते हैं.