नई दिल्ली: साइबर अटैक अधिक जटिल होते जा रहे हैं और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे, वित्तीय प्रणालियों और सार्वजनिक संस्थानों को निशाना बना रहे हैं, ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच साइबर क्राइम जांच को लेकर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए हैं. यह समझौता खुफिया जानकारी साझा करने, जांच एजेंसियों के बीच सहयोग को मजबूत करने और साइबर अपराध से निपटने के लिए उन्नत समाधान विकसित करने के उद्देश्य से एक रणनीतिक साझेदारी का संकेत देता है.
विदेश मंत्रालय की तरफ से शनिवार को जारी एक बयान के अनुसार, वॉशिंगटन में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा और अमेरिका के कार्यवाहक गृह सुरक्षा उप सचिव क्रिस्टी कैनेगैलो के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. बयान में कहा गया है, "साइबर अपराध का भारत और अमेरिका के सामने आने वाली आम सुरक्षा चुनौतियों जैसे आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद, आतंकी वित्तपोषण, मादक पदार्थों की तस्करी, संगठित अपराध, मानव तस्करी, अवैध प्रवास, धन शोधन और परिवहन सुरक्षा के साथ जटिल संबंध है."
बयान में कहा गया, "साइबर अपराध जांच पर समझौता ज्ञापन हमारी व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के हिस्से के रूप में भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करने में मदद करेगा."
भारत की ओर से भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी) और गृह मंत्रालय इस समझौता ज्ञापन के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं. अमेरिका की ओर से यह दायित्व होमलैंड सुरक्षा विभाग (डीएचएस) और इसकी घटक एजेंसियां, अमेरिकी आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) और होमलैंड सुरक्षा जांच साइबर अपराध केंद्र (सी3) का होगा.
यह एमओयू दोनों देशों की संबंधित एजेंसियों को आपराधिक जांच में साइबर खतरे की खुफिया जानकारी और डिजिटल फोरेंसिक के उपयोग के संबंध में सहयोग और प्रशिक्षण के स्तर को बढ़ाने की अनुमति देता है.
यह समझौता ज्ञापन 2011 में शुरू की गई भारत-अमेरिका साइबर वार्ता का प्रमुख परिणाम है. साइबरस्पेस में आपसी चिंताओं को दूर करने के लिए स्थापित, यह मंच साइबर सुरक्षा, साइबर अपराध जांच और साइबरस्पेस में जिम्मेदार व्यवहार के लिए मानदंडों के विकास पर सहयोग की सुविधा प्रदान करता है.
साइबर अटैक अक्सर लोकतांत्रिक संस्थानों, जैसे चुनाव प्रणाली, मीडिया और सार्वजनिक संवाद को निशाना बनाते हैं. भारत और अमेरिका आपसी सहयोग से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को गड़बड़ी और गलत सूचना अभियानों से बचाने के लिए रूपरेखा विकसित कर सकते हैं.
भारत और अमेरिका साइबर गवर्नेंस पर वैश्विक नीतियों को आकार देने में प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं. खुले, सुरक्षित और स्थिर साइबरस्पेस की वकालत करने में दोनों देशों की साझेदारी ऐसे मानदंड स्थापित करने में मदद करती है जो डिजिटल तकनीकों के दुरुपयोग को रोकते हैं और दुर्भावनापूर्ण अभियानों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में वकील और साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने ईटीवी भारत को बताया, "यह समझौता ज्ञापन इसलिए बेहद अहम है क्योंकि भारत अभी भी बुडापेस्ट कन्वेंशन का हिस्सा नहीं है. जिसके कारण भारत के पास वैश्विक साइबर सहयोग तंत्र तक पहुंच नहीं है. ऐसे में, हम पाते हैं कि भारतीय साइबर अपराध की जांच अक्सर गतिरोध पर पहुंच जाती है."
साइबर क्राइम पर कन्वेंशन, जिसे बुडापेस्ट कन्वेंशन ऑन साइबर क्राइम या बुडापेस्ट कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है, इंटरनेट और साइबर अपराध को संबोधित करने, राष्ट्रीय कानूनों में सामंजस्य स्थापित करने, जांच तकनीकों में सुधार करने और देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की मांग करने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय संधि है. इसे फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में यूरोप की परिषद द्वारा तैयार किया गया था, जिसमें यूरोप की परिषद के पर्यवेक्षक देशों कनाडा, जापान, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका की सक्रिय भागीदारी थी.
कन्वेंशन और इसकी व्याख्यात्मक रिपोर्ट को 8 नवंबर, 2001 को यूरोपीय परिषद के मंत्रियों की समिति द्वारा अपने 109वें सत्र में अपनाया गया था. इसे 23 नवंबर, 2001 को बुडापेस्ट में हस्ताक्षर के लिए रखा गया था. यह 1 जुलाई, 2004 को लागू हुआ. जनवरी 2025 तक, 78 देश कन्वेंशन के हिस्सा बन चुके हैं, जबकि दो और देशों (आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका) ने कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की है.
हालांकि, भारत उन कुछ प्रमुख देशों में से है, जिन्होंने इस आधार पर कन्वेंशन को अपनाने से इनकार कर दिया है कि उन्होंने इसका ड्राफ्ट तैयार करने की प्रक्रिया में भाग नहीं लिया था. दुग्गल ने बताया कि नई दिल्ली को कन्वेंशन के अनुच्छेद 32D पर गहरी आपत्ति है, जो भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा को प्रभावित करता है.
बुडापेस्ट कन्वेंशन का अनुच्छेद 32डी संग्रह किए गए डेटा के त्वरित संरक्षण के संबंध में सहयोग से संबंधित है. यह कन्वेंशन के दूसरे अतिरिक्त प्रोटोकॉल का हिस्सा है, जिसे साइबर अपराध जांच में सीमा पार सहयोग बढ़ाने के लिए अपनाया गया था. यह विशिष्ट आलेख सीमाओं के पार इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य - विशेष रूप से संग्रहीत डेटा - को संरक्षित करने की प्रक्रिया को रेखांकित करता है.
दुग्गल के अनुसार, भारत-अमेरिका के बीच नया समझौता सहयोग के नए द्वार खोलेगा. उन्होंने कहा, "इससे भारत में साइबर अपराध से लड़ने में और मदद मिलेगी. अमेरिकी सर्वर में बहुत सारी साइबर अपराध जानकारी आती है. इससे भारतीयों को लक्षित करने वाले दक्षिण-पूर्व एशिया से निकलने वाले साइबर अपराधों से लड़ने में भी मदद मिलेगी."
भारत सरकार दक्षिण-पूर्व एशिया में साइबर स्कैम सेंटर्स में फंसे हजारों भारतीय नागरिकों को बचाने में लगी हुई है. पिछले साल नवंबर में लोकसभा में एक लिखित जवाब में विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि सॉफ्टवेयर इंजीनियरों सहित 2,358 भारतीय नागरिकों को तीन दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से बचाया गया है, जिसमें कंबोडिया से 1,091, लाओस से 770 और म्यांमार से 497 शामिल हैं.
सिंह ने कहा कि हालांकि सरकार इस खतरे को रोकने के लिए हर संभव कदम उठा रही है, लेकिन फर्जी भर्ती नौकरी की पेशकश में शामिल संदिग्ध कंपनियां भारतीय नागरिकों को ज्यादातर सोशल मीडिया चैनलों के जरिये कंबोडिया, म्यांमार, लाओ पीडीआर (लाओस) सहित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में ले जाती हैं और इन देशों में संचालित घोटाला केंद्रों से उन्हें साइबर अपराध और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए मजबूर करती हैं.
दुग्गल ने कहा, "भारत-अमेरिका के बीच यह समझौता ज्ञापन सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए नये दरवाजे खोलेगा और जांच को सुविधाजनक बनाएगा. इससे भारत और अमेरिका में साइबरस्पेस अधिक सुरक्षित हो जाएगा."
इंटरनेशनल थिंक टैंक CUTS में निदेशक (शोध) और डिजिटल अर्थव्यवस्था और साइबर सुरक्षा के विशेषज्ञ अमोल कुलकर्णी के अनुसार, यह समझौता ज्ञापन अच्छा कदम है, क्योंकि भारत में ऑनलाइन लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है और साइबर अपराध बढ़ रहे हैं.
कुलकर्णी ने कहा, "भारत को अतिरिक्त जानकारी, संसाधन और कौशल से लाभ होगा, जिससे देश के बाहर से होने वाले साइबर अपराधों का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. भारत द्वारा लागू किए जा रहे नए डिजिटल कानूनों के मद्देनजर भी यह प्रमुख है. इंटरनेट गवर्नेंस में सहयोग समय की मांग है."
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