लखनऊ:यूनेस्को 19 से 25 नवंबर तक विश्व धरोहर सप्ताह मना रहा है. नवाबों के शहर लखनऊ की बात करें तो भले ही यहां की किसी ऐतिहासिक इमारत को विश्व धरोहर की सूची में स्थान नहीं मिला हो, लेकिन लखनवी 'आदाब' पर यूनेस्को ने दिलचस्पी दिखाई है. नवाबों के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला के मुताबिक यूनेस्को ने 'आदाब' को विश्व धरोहर में स्थान देने के लिए प्रस्ताव रखा है. यह लखनऊ की तहजीब और अंदाज को मिला सम्मान है. लखनऊ में वैसे तो तमाम ऐतिहासिक धरोहरें लोगों को अपनी ओर खींचती हैं, लेकिन इनमें से कुछ बेहद खास हैं. इनका नाम सामने आते ही नवाबी शहर का खाका जेहन में खिंच जाता है. आइए जानते हैं, विश्व धरोहर सप्ताह के मौके पर इनके बारे में.
लखनऊ में एक से बढ़कर एक धरोहरें:लखनऊ को जिस शिद्दत के साथ नवाबों ने संवारा, उसकी गवाही आज भी ये धरोहर दे रही हैं. बड़ा इमामबाड़ा हो रोमी दरवाजा, घंटाघर, पिक्चर गैलरी, सत्खंडा, छोटा इमामबाड़ा, छतर मंजिल, बारादरी, हजरतगंज का सिब्तेनाबाद इमामबाड़ा, यह सभी धरोहरें लखनऊ की आन-बान-शान हैं. इस समय जबकि पूरी दुनिया में विश्व धरोहर सप्ताह मनाया जा रहा है, लखनऊ में भी पुरातत्व विभाग ने कई खास कार्यक्रमों का आयोजन किया है. इसके तहत फोटो प्रदर्शनी, धरोहरों के संरक्षण के प्रति जागरूकता और इनकी जानकारी को साझा किया जा रहा है.
ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण के पीछे की कहानी:लखनऊ की शानो-शौकत और ऐतिहासिक इमारतों की कहानी में नवाबों का बड़ा योगदान है. बड़े इमामबाड़े की तामीर से जुड़ी एक दिलचस्प और मानवीय कहानी इतिहासकार रवि भट्ट ने साझा की. बताते हैं, नवाब आसफ-उद-दौला के शासनकाल में, जब भुखमरी और बेरोजगारी अपने चरम पर थी, तब नवाब ने बड़े इमामबाड़े की तामीर का आदेश दिया. इस परियोजना ने समाज के हर वर्ग को राहत पहुंचाई. यह निर्माण प्रक्रिया इस प्रकार चलाई गई ताकि हर वर्ग को रोजगार मिल सके. लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, रोमी दरवाजा और अन्य ऐतिहासिक इमारतें लखनऊ की शान हैं. इनकी खासियत यह है कि इनके निर्माण में लाखोरी ईंट, चूने और दाल-चावल का उपयोग किया गया था, जिससे ये इमारतें आज भी मजबूती और खूबसूरती का प्रतीक बनी हुई हैं.
लखनऊ की अदृश्य धरोहर है सांप्रदायिक सौहार्द:इतिहासकार रवि भट्ट ने लखनऊ की एक अनूठी धरोहर की चर्चा की, जिसे 'सांप्रदायिक सौहार्द' कहा जा सकता है. उन्होंने बताया कि नवाबों ने एक ऐसी विरासत छोड़ी, जिसने हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया. नवाब हिंदू त्योहारों जैसे होली और दिवाली में हिस्सा लेते थे, जबकि हिंदू समुदाय भी मुस्लिम रीति-रिवाजों और त्योहारों का सम्मान करता था. 1857 में नवाबी शासन समाप्त हो गया था, लेकिन उनकी स्थापित सांस्कृतिक विरासत ने 1947 के विभाजन के समय भी लखनऊ को सांप्रदायिक तनाव से बचाए रखा. जब देशभर में हिंसा फैली हुई थी, तब लखनऊ की विरासत ने शांति बनाए रखी. यह एक ऐसी अदृश्य धरोहर है, जो आज भी शहर की पहचान है.
आसफी इमाम बाड़ा:इतिहासकार रवि भट्ट के मुताबिक आसफी इमाम बाड़े का इतिहास बड़ा ही रोचक है यह लखनऊ की एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे अवध के नवाब अशफ़-उद-दौला ने 1784 से 1794 के बीच बनवाया था. इसे भूलभुलैया भी कहते हैं, क्योंकि इसकी विशाल गुंबदनुमा इमारत में 84 सीढ़ियों से जाने वाले रास्ते इतने जटिल हैं कि अनजान व्यक्ति को भ्रम में डाल देते हैं. इस इमामबाड़े का निर्माण अकाल राहत परियोजना के तहत हुआ था, जिसका मकसद लोगों को रोजगार देना था. इसमें एक असफी मस्जिद भी है, इसकी वास्तुकला में गोथिक, राजपूत और मुगल शैलियों का मिश्रण दिखाई देता है.
रूमी दरवाजा:रूमी दरवाजा लखनऊ की एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, यह दरवाजा अवध के नवाब असफ़-उद-दौला ने 1784 में बनवाया था. यह दरवाजा लखनऊ के हुसैनाबाद क्षेत्र में स्थित है और इसकी विशेषता है इसकी अद्वितीय वास्तुकला और सुंदर निर्माण. इसका गुंबद 60 फीट ऊंचा है. दीवारों पर सुंदर नक्काशी और चित्रकारी है. यह दरवाजा अवध के नवाबों के शासन की याद दिलाता है.
छोटा इमामबाड़ा:छोटा इमामबाड़ा लखनऊ का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है, जो 1838 में नवाब मोहम्मद अली शाह द्वारा बनवाया गया था. यह इमामबाड़ा लखनऊ के हुसैनाबाद में स्थित है और इसकी विशेषता है इसकी अद्वितीय वास्तुकला और सुंदर निर्माण. इसका गुंबद 67 फीट ऊंचा है. इसकी दीवारों पर सुंदर नक्काशी और चित्रकारी है.