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श्रीकृष्ण और सुदामा की सच्ची दोस्ती की गवाही देता दूनिया का एकमात्र मंदिर, यहीं प्रभू के हिस्से के चने खा गए थे सुदामा - Shri Krishna Janmashtami 2024 - SHRI KRISHNA JANMASHTAMI 2024

उज्जैन में स्थित नारायण धाम श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती का जीता जागता उदाहरण है. यहीं पर सुदामा ने कृष्ण के हिस्से का चना खाया था, जिससे उन्हें दरिद्रता आ गई थी. कृष्ण और सुदामा द्वारा यहां रखी गई लकड़ी की गठरियों से उगे पेड़ आज भी हैं. पूरी दूनिया में कृष्ण और सुदामा की एकमात्र मंदिर यहीं है.

SHRI KRISHNA JANMASHTAMI 2024
उज्जैन में स्थित नारायण धाम (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 25, 2024, 8:48 PM IST

Updated : Aug 26, 2024, 6:58 AM IST

उज्जैन:भारत की प्राचीन धरती उज्जैन अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्वविख्यात है. उज्जैन शहर से लगभग 22 किलोमीटर दूर नारायण धाम स्थित है. यह वही स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और उनके प्रिय मित्र सुदामा की मित्रता की गाथा लिखी गई थी. उज्जैन में स्थित संदीपनी आश्रम में रहकर शिक्षा दीक्षा ले रहे श्रीकृष्ण और सुदामा का नरायण धाम से जुड़ा महत्वपूर्ण किस्सा है. इस जगह पर एक ऐसी घटना घटी थी. जिसने कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को अमर कर दिया था और तभी से इसका नाम नारायण धाम पड़ गया.

धाम के पुजारी ने बताई कहानी (ETV Bharat)

एक घटना ने कृष्ण-सुदामा की दोस्ती को अमर कर दिया

आश्रम के पुजारी भवानीशंकर शर्मा ने उस पौराणिक घटना के बारे में बताया कि, सांदीपनि आश्रम में रहकर शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर रहे श्रीकृष्ण और सुदामा को एक दिन गुरुमाता शुश्रूषा ने वन से लकड़ी लाने का आदेश दिया. गुरुमाता के आदेशानुसार कृष्ण और सुदामा जंगल से लकड़ी लेने चले गए. रास्ते में भूख लगने पर खाने के लिए गुरुमाता ने दो मुट्ठी चना भी दिया था. दोनों को नारायण वन में लकड़ियां इकट्ठा करते करते शाम हो गई. जब वो वापस आश्रम के लिए लौट रहे थे तभी तेज बारिश होने लगी. दोनों ने लकड़ियों का गट्ठर एक पेड़ के नीचे रख दिया और श्रीकृष्ण उस पेड़ पर चढ़ गए.

श्रीकृष्ण और सुदामा की प्रतिमा (ETV Bharat)

कृष्ण के हिस्से का चना खाने से आई सुदामा को दरिद्रता

बारिश लगातार होती रही. देर रात सुदामा को भूख लग गई. उन्होंने गुरुमाता का दिया हुआ चना चुपके से खा लिया. श्रीकृष्ण ने आवाज सुनकर उनसे पूछा, तो सुदामा ने झूठ बोल दिया कि उनके दांत ठंड से किटकिटा रहे हैं. अगले दिन सुबह मुनि सांदीपनि दोनों को खोजने जगंल पहुंचे और उन्हें आश्रम लेकर आए. इस दौरान लकड़ियों का गट्ठर जंगल में ही रह गया.

बारिश से दोनों गट्ठर हरे भरे हो गए और उसमें से पेड़ उग आया. कालांतर में भक्तों ने इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा का भव्य मंदिर बनवाया. आज भी लकड़ी के दोनों गट्ठर हरे-भरे दिव्य वृक्ष के रूप में मंदिर के दोनों ओर नजर आते हैं. वहीं, भगवान के हिस्से का अन्न खाने के कारण सुदामा को दरिद्रता आ गई. बाद में जब सुदामा द्वारकाधीश कृष्ण से मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने दो मुट्ठी चावल से दो लोक देकर सुदामा की दरिद्रता को दूर किया था.

लकड़ियों के गट्ठर से उगा पेड़ (ETV Bharat)

पुरातत्व और खगोलीय दृष्टिकोण

उज्जैन विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के रमण सोलंकी बताते हैं कि,'इस स्थान का खगोलीय महत्व भी है. माना जाता है कि जब श्रीकृष्ण और सुदामा ने यहां यात्रा की थी, तब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश कर रहा था, जिससे भारी वर्षा हुई थी. इस घटना के पीछे खगोलीय गणना का उद्देश्य भी हो सकता है, जिसमें गुरु सांदीपनि ने श्री कृष्ण और सुदामा को कर्क रेखा के निकट भेजा होगा.'

नारयण धाम का पवित्र कुंड (ETV Bharat)

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नारायण धाम का धार्मिक महत्व

नारायण धाम का धार्मिक महत्व केवल ऐतिहासिक घटनाओं तक ही सीमित नहीं है. यहां पर भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की पूजा होती है. इस स्थान पर एक बावड़ी भी है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है. नारायण धाम, श्री कृष्ण और सुदामा की अद्वितीय मित्रता की गाथा का प्रतीक है. यह स्थान उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो सच्ची मित्रता, निष्ठा और प्रेम का अनुसरण करना चाहते हैं. यहां आकर श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की इस अमर कथा को अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं.

Last Updated : Aug 26, 2024, 6:58 AM IST

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