उज्जैन:भारत की प्राचीन धरती उज्जैन अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विश्वविख्यात है. उज्जैन शहर से लगभग 22 किलोमीटर दूर नारायण धाम स्थित है. यह वही स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और उनके प्रिय मित्र सुदामा की मित्रता की गाथा लिखी गई थी. उज्जैन में स्थित संदीपनी आश्रम में रहकर शिक्षा दीक्षा ले रहे श्रीकृष्ण और सुदामा का नरायण धाम से जुड़ा महत्वपूर्ण किस्सा है. इस जगह पर एक ऐसी घटना घटी थी. जिसने कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को अमर कर दिया था और तभी से इसका नाम नारायण धाम पड़ गया.
एक घटना ने कृष्ण-सुदामा की दोस्ती को अमर कर दिया
आश्रम के पुजारी भवानीशंकर शर्मा ने उस पौराणिक घटना के बारे में बताया कि, सांदीपनि आश्रम में रहकर शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर रहे श्रीकृष्ण और सुदामा को एक दिन गुरुमाता शुश्रूषा ने वन से लकड़ी लाने का आदेश दिया. गुरुमाता के आदेशानुसार कृष्ण और सुदामा जंगल से लकड़ी लेने चले गए. रास्ते में भूख लगने पर खाने के लिए गुरुमाता ने दो मुट्ठी चना भी दिया था. दोनों को नारायण वन में लकड़ियां इकट्ठा करते करते शाम हो गई. जब वो वापस आश्रम के लिए लौट रहे थे तभी तेज बारिश होने लगी. दोनों ने लकड़ियों का गट्ठर एक पेड़ के नीचे रख दिया और श्रीकृष्ण उस पेड़ पर चढ़ गए.
कृष्ण के हिस्से का चना खाने से आई सुदामा को दरिद्रता
बारिश लगातार होती रही. देर रात सुदामा को भूख लग गई. उन्होंने गुरुमाता का दिया हुआ चना चुपके से खा लिया. श्रीकृष्ण ने आवाज सुनकर उनसे पूछा, तो सुदामा ने झूठ बोल दिया कि उनके दांत ठंड से किटकिटा रहे हैं. अगले दिन सुबह मुनि सांदीपनि दोनों को खोजने जगंल पहुंचे और उन्हें आश्रम लेकर आए. इस दौरान लकड़ियों का गट्ठर जंगल में ही रह गया.
बारिश से दोनों गट्ठर हरे भरे हो गए और उसमें से पेड़ उग आया. कालांतर में भक्तों ने इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा का भव्य मंदिर बनवाया. आज भी लकड़ी के दोनों गट्ठर हरे-भरे दिव्य वृक्ष के रूप में मंदिर के दोनों ओर नजर आते हैं. वहीं, भगवान के हिस्से का अन्न खाने के कारण सुदामा को दरिद्रता आ गई. बाद में जब सुदामा द्वारकाधीश कृष्ण से मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने दो मुट्ठी चावल से दो लोक देकर सुदामा की दरिद्रता को दूर किया था.