दमोह।दमोह जिले की हटा तहसील के आदिवासी अंचल ग्राम अमझिर में एक महिला ने समाज को अच्छा संदेश दिया है. अमझिर निवासी भगवान दास आदिवासी की पत्नी कमलेश रानी गर्भ से थी. उसका नौवां महीना चल रहा था. जब इस बात की जानकारी आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कार्यकर्ता को लगी तो वे महिला के घर पहुंची तथा उसकी शारीरिक अवस्था को देखते हुए जिला अस्पताल चलने का परामर्श दिया. लेकिन परिजनों ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की बात मानना तो दूर की बात, गर्भवती महिला से मिलने तथा उसे छूने से भी इंकार कर दिया.
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने परिजनों की काउंसलिंग
परेशान स्वास्थ्य कार्यकर्ता हटा अस्पताल पहुंची और जानकारी ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर उमाशंकर पटेल को दी. महिला के शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बहुत कम था. महिला का परिवार रीति-रिवाज का हवाला देकर घर पर ही डिलीवरी कराना चाहता है. इसके बाद बीएमओ ने अंतरा फाउंडेशन एवं मड़ियादो की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधिकारी को महिला के घर भेजकर उसके परिजनों को किसी भी तरह काउंसलिंग कर अस्पताल लाने के आदेश दिए. पहले परिवार उनकी बात सुनने को भी राजी नहीं था लेकिन उन्होंने किसी तरह उन्हें समझाया. महिला की शारीरिक अवस्था से अवगत कराते हुए कहा कि उसके शरीर में खून बहुत कम है. यदि डिलीवरी हो भी गई तो महिला और बच्चे का बचना मुश्किल होगा.
गर्भवती के शरीर में खून की बहुत कमी थी
इसके बाद महिला की हीमोग्लोबिन की जांच की गई. पता चला कि उसके शरीर में मात्र 3.6 ग्राम ब्लड है. इसके बाद किसी तरह से परिजन महिला को जिला अस्पताल ले जाने के लिए राजी हुए. महिला ने जिला अस्पताल में अपनी सातवीं संतान के रूप में एक बेटे को जन्म दिया. अब जच्चा और बच्चा दोनों पूरी तरह से स्वस्थ हैं. दरअसल, आदिवासी बहुल इलाकों में टोने टोटके तथा झाड़- फूंक का बहुत अधिक चलन है. महिला की पहले की 6 संतानें सभी बेटियां हैं. जिनमें से दो बेटियों की मौत हो चुकी है. बेटा न होने से परेशान परिजन महिला को जब गुनिया (ओझा)के पास लेकर गए तो उसने झाड़ फूंक करने के साथ ही हिदायत दी कि यदि घर पर डिलीवरी होगी तो सातवीं संतान के रूप में बेटा पैदा होगा.