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आदिवासी महिला ने तोड़ी कुप्रथाओं की जंजीर, जिला अस्पताल में कराई डिलीवरी, जानिए- कितनी घातक है बंदेज प्रथा - tribal bandage pratha

दमोह जिले के आदिवासी अंचल एक महिला ने बंदेज प्रथा के खिलाफ अस्पताल में डिलीवरी कराई. उसने एक बेटे को भी जन्म दिया है. इस महिला ने रूढ़िवादी मान्यताओं को झुठला दिया. दरअसल, आदिवासी बस्तियों में आज भी कुप्रथाएं जाारी हैं. ऐसी ही कुप्रथा बंदेज प्रथा है.

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दमोह जिला अस्पताल में आदिवासी महिला की डिलीवरी (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 2, 2024, 10:54 AM IST

दमोह।दमोह जिले की हटा तहसील के आदिवासी अंचल ग्राम अमझिर में एक महिला ने समाज को अच्छा संदेश दिया है. अमझिर निवासी भगवान दास आदिवासी की पत्नी कमलेश रानी गर्भ से थी. उसका नौवां महीना चल रहा था. जब इस बात की जानकारी आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कार्यकर्ता को लगी तो वे महिला के घर पहुंची तथा उसकी शारीरिक अवस्था को देखते हुए जिला अस्पताल चलने का परामर्श दिया. लेकिन परिजनों ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की बात मानना तो दूर की बात, गर्भवती महिला से मिलने तथा उसे छूने से भी इंकार कर दिया.

आदिवासी महिला ने तोड़ी कुप्रथाओं की जंजीर (ETV BHARAT)

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने परिजनों की काउंसलिंग

परेशान स्वास्थ्य कार्यकर्ता हटा अस्पताल पहुंची और जानकारी ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर उमाशंकर पटेल को दी. महिला के शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बहुत कम था. महिला का परिवार रीति-रिवाज का हवाला देकर घर पर ही डिलीवरी कराना चाहता है. इसके बाद बीएमओ ने अंतरा फाउंडेशन एवं मड़ियादो की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधिकारी को महिला के घर भेजकर उसके परिजनों को किसी भी तरह काउंसलिंग कर अस्पताल लाने के आदेश दिए. पहले परिवार उनकी बात सुनने को भी राजी नहीं था लेकिन उन्होंने किसी तरह उन्हें समझाया. महिला की शारीरिक अवस्था से अवगत कराते हुए कहा कि उसके शरीर में खून बहुत कम है. यदि डिलीवरी हो भी गई तो महिला और बच्चे का बचना मुश्किल होगा.

गर्भवती के शरीर में खून की बहुत कमी थी

इसके बाद महिला की हीमोग्लोबिन की जांच की गई. पता चला कि उसके शरीर में मात्र 3.6 ग्राम ब्लड है. इसके बाद किसी तरह से परिजन महिला को जिला अस्पताल ले जाने के लिए राजी हुए. महिला ने जिला अस्पताल में अपनी सातवीं संतान के रूप में एक बेटे को जन्म दिया. अब जच्चा और बच्चा दोनों पूरी तरह से स्वस्थ हैं. दरअसल, आदिवासी बहुल इलाकों में टोने टोटके तथा झाड़- फूंक का बहुत अधिक चलन है. महिला की पहले की 6 संतानें सभी बेटियां हैं. जिनमें से दो बेटियों की मौत हो चुकी है. बेटा न होने से परेशान परिजन महिला को जब गुनिया (ओझा)के पास लेकर गए तो उसने झाड़ फूंक करने के साथ ही हिदायत दी कि यदि घर पर डिलीवरी होगी तो सातवीं संतान के रूप में बेटा पैदा होगा.

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गर्भवती महिला को किसी से भी मिलने से मना किया था

इसके अलावा महिला को बाहरी लोगों से मिलने तथा बाहर की दवाइयां और अस्पताल ले जाने की सख्त मनाही कर दी. यह परंपरा पूरे अंचल में है. लेकिन जब जिला अस्पताल में महिला ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया तो आदिवासियों को इस बात का एहसास हुआ की झाड़ फूंक और व्यर्थ की मान्यताएं नहीं मानना चाहिए. महिला कमलेश रानी ने बताया की उसका बंदेज किया गया था. जिसके कारण वह अस्पताल नहीं जा सकती थी. कमजोरी अधिक थी. समाज के साथ परिजनों का भी दबाव था. लेकिन अब बेटा होने से वह खुश है. वहीं, बीएमओ डॉक्टर उमाशंकर पटेल ने बताया"पहले तो परिजन बात ही सुनना नहीं चाहते थे. लेकिन जब समझा बुझाकर ब्लड टेस्ट किया गया तो पता चला कि वह सीवियर एनेमिक है. महिला को जिला अस्पताल में डिलीवरी कराई गई है."

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