जयपुर.पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की याद में मोहर्रम का त्यौहार कल बुधवार को प्रदेश भर में अकीदत, एतराम और गमगीन माहौल में मनाया जाएगा. ऐसे में कल प्रदेश भर में ताजियों का जुलूस भी निकल जाएगा. राजधानी जयपुर में भी इस मौके पर 300 छोटे बड़े ताजियों का जुलूस अलग-अलग इलाकों से होता हुआ कर्बला मैदान पहुंचेगा, जहां इन्हें सुपुर्द ए खाक किया जाएगा. इस बीच गुलाबी शहर के बिरादराने महावतान के ताजिए अपनी ऐतिहासिक विशेषता को 150 साल बाद भी कायम रखे हुए हैं. सोने चांदी से बना हुआ ये ताजिया साल 1868 में पूर्व महाराजा जयसिंह प्रथम ने समाज को गिफ्ट किया था. पुरानी मान्यता के अनुसार 2 सरपंच और 11 पटेल की देखरेख में आज भी ताजिया निकाला जाता है.
आज भी कायम है रवायत:जयपुर के घाट गेट इलाके के मोहल्ला महावतान में जयपुर दरबार की ओर से भेंट किए गए सोने-चांदी के ताजिए को हर साल उर्दू की 10 तारीख को 21 हाथी सलामी देने के लिए आते हैं. जयपुर शहर में सबसे पहले यही ताजिऐ उठाए जाते हैं. फिर ताजियों का जुलूस एक साथ शहर के अलग-अलग हिस्सों से गुजरता हुआ निकाला जाता है. स्थानीय निवासी मोहम्मद वसीम ने बताया कि जहां बेश कीमती सोने चांदी की बनावट इस ताजिए को खास बनाती है. वहीं, रियासतकालीन ताजिए में सुर्खाब पक्षी लद्दाख और तिब्बत में पाया जाने वाला रेड शैल डक के पर लगे हुए हैं. इस ताजिए पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं, साथ ही कर्बला का नक्शा भी अंकित है. इस ताजिए को बनाने के लिए खास शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है. ताजिए को जुलूस में शामिल किए जाने से पहले यहां किसी तरह से कोई ढोल ताशों का मातम नहीं किया जाता है. पूर्वजों के समय से जो इस ताजियों को अपने स्थान से उठाने का काम करते थे, विरासत को निभाते हुए आज भी वहीं लोग इस ताजिए को उठाते हैं.