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150 साल पुराना है बिरादराने महावतान का ताजिया, जयपुर रियासत ने सौंपा था सोने चांदी का ताजिया - gold crown tajia in jaipur

मोहर्रम पर निकाले जाने वाले ताजिए जयपुर में इतिहास को भी संजोये हुए हैं. साल 1868 में पूर्व महाराजा जयसिंह प्रथम ने सोने चांदी से बने हुए इस ताजिए को समाज को तोहफे के रूप में सौंपा था. इसके बाद से आज तक जयपुर में निकाले जाने वाले ताजियों में इसे शामिल करने की रवायत जारी है.

gold and silver crown tajia in jaipur
डेढ़ सौ साल पुराना है बिरादराने महावतान का ताजिया (photo etv bharat jaipur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 16, 2024, 3:20 PM IST

डेढ़ सौ साल पुराना है बिरादराने महावतान का ताजिया (video etv bharat jaipur)

जयपुर.पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की याद में मोहर्रम का त्यौहार कल बुधवार को प्रदेश भर में अकीदत, एतराम और गमगीन माहौल में मनाया जाएगा. ऐसे में कल प्रदेश भर में ताजियों का जुलूस भी निकल जाएगा. राजधानी जयपुर में भी इस मौके पर 300 छोटे बड़े ताजियों का जुलूस अलग-अलग इलाकों से होता हुआ कर्बला मैदान पहुंचेगा, जहां इन्हें सुपुर्द ए खाक किया जाएगा. इस बीच गुलाबी शहर के बिरादराने महावतान के ताजिए अपनी ऐतिहासिक विशेषता को 150 साल बाद भी कायम रखे हुए हैं. सोने चांदी से बना हुआ ये ताजिया साल 1868 में पूर्व महाराजा जयसिंह प्रथम ने समाज को गिफ्ट किया था. पुरानी मान्यता के अनुसार 2 सरपंच और 11 पटेल की देखरेख में आज भी ताजिया निकाला जाता है.

आज भी कायम है रवायत:जयपुर के घाट गेट इलाके के मोहल्ला महावतान में जयपुर दरबार की ओर से भेंट किए गए सोने-चांदी के ताजिए को हर साल उर्दू की 10 तारीख को 21 हाथी सलामी देने के लिए आते हैं. जयपुर शहर में सबसे पहले यही ताजिऐ उठाए जाते हैं. फिर ताजियों का जुलूस एक साथ शहर के अलग-अलग हिस्सों से गुजरता हुआ निकाला जाता है. स्थानीय निवासी मोहम्मद वसीम ने बताया कि जहां बेश कीमती सोने चांदी की बनावट इस ताजिए को खास बनाती है. वहीं, रियासतकालीन ताजिए में सुर्खाब पक्षी लद्दाख और तिब्बत में पाया जाने वाला रेड शैल डक के पर लगे हुए हैं. इस ताजिए पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं, साथ ही कर्बला का नक्शा भी अंकित है. इस ताजिए को बनाने के लिए खास शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है. ताजिए को जुलूस में शामिल किए जाने से पहले यहां किसी तरह से कोई ढोल ताशों का मातम नहीं किया जाता है. पूर्वजों के समय से जो इस ताजियों को अपने स्थान से उठाने का काम करते थे, विरासत को निभाते हुए आज भी वहीं लोग इस ताजिए को उठाते हैं.

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जयपुर के ऐतिहासिक ताजिए के खिदमतगार सलीमुद्दीन बताते हैं कि बेशकीमती धातु से बने ताजियों का इतिहास 150 साल से भी पुराना है. एक बार जब राजा सवाई रामसिंह बेहद बीमार हुए, तो उन्हें किसी ने ताजिये की मन्नत के बारे में बताया. इसके बाद राजा राम सिंह ने अपनी सेहत को लेकर मन्नत मांगी, जिसके पूरा होने पर उन्होंने डेढ़ मण सोने-चांदी का ताजिया बनवाया. कई सालों से इस ताजिये को हर साल मुहर्रम पर 5 दिन बाहर निकाला जाता है. इसी ताजिये की तर्ज पर मोहल्ला महावतान और माहल्ला जुलाहान में भी रियासत ने सोने चांदी के ताजिये बनवाये थे. हालांकि, उनका वजन जयपुर दरबार के ताजिये से कम है. इन सभी ताजियों का प्रदर्शन भी ताजियों के जुलूस के साथ किया जाता है. इनकी खास सुरक्षा की जाती है, लेकिन इन्हें सुपुर्द-ए-खाक़ नहीं किया जाता है.इन्हें करबला के मैदान तक ले जा कर वापस इमामबाड़ों में रख दिया जाता है.

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