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Rajasthan: संयुक्त रूप से खोले लॉकर को बिना जानकारी दिए बंद करने पर केनरा बैंक पर 45 लाख रुपए का लगा हर्जाना

जिला उपभोक्ता आयोग ने संयुक्त रूप से खोले गए बैंक लॉकर को बिना पति को सूचना दिए बंद करने पर बैंक पर हर्जाना लगाया.

बैंक पर 45 लाख रुपए का हर्जाना
बैंक पर 45 लाख रुपए का हर्जाना (ETV Bharat File Photo)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 29, 2024, 9:28 PM IST

जयपुर : जिला उपभोक्ता आयोग क्रम-2 ने पति-पत्नी की ओर से संयुक्त रूप से खोले गए बैंक लॉकर को बिना पति को सूचना दिए बंद करने को बैंक का सेवा दोष माना है. इसके साथ ही आयोग ने परिवादी को हुए आर्थिक नुकसान को देखते हुए केनरा बैंक, वैशाली नगर पर 45 लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. इसके साथ ही आयोग ने कहा है कि बैंक परिवाद खर्च के तौर पर परिवादी को 25 हजार रुपए अलग से अदा करने के आदेश दिए हैं. आयोग ने यह आदेश देवेन्द्र पुरषोत्तम चावड़ा के परिवाद पर दिए.

आयोग अध्यक्ष ग्यारसी लाल मीना ने अपने आदेश में कहा कि बैंक चाहता तो जिस दिन उसकी पत्नी हेतल चावडा खाता बंद कराने बैंक आई, उस समय परिवादी को भी बुलाकर इसकी जानकारी दी जा सकती थी. इसके बावजूद बैंक ने संयुक्त खाताधारक परिवादी को सूचना दिए बिना ही लॉकर को बंद कर दिया. इसके कारण परिवादी का सारा कीमती सामान लॉकर से चला गया और उसे मानसिक परेशानी भी झेलनी पड़ी.

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परिवाद में कहा गया कि परिवादी ने 10 अक्टूबर, 2013 को बैंक में पत्नी हेतल चावड़ा के साथ संयुक्त रूप से लॉकर लेने के लिए खाता खुलवाया और 11 हजार रुपए की एफडी भी कराई. इसके बाद उन्हें लॉकर आवंटित कर दिया गया. वर्ष 2022 में बैंक ने परिवादी को सूचित किया कि नया लॉकर एग्रीमेंट नहीं करने पर उसे बंद कर दिया जाएगा. इस पर उसकी पत्नी बैंक में जाकर साइन कर आई. वहीं, जब उसने पत्नी से लॉकर की चाबी मांगी तो उसे चाबी नहीं दी और दोनों के बीच विवाद हो गया. ऐसे में परिवादी ने बैंक जाकर लॉकर की डुप्लीकेट चाबी बनाने को कहा तो बैंक ने दोनों के साइन के बिना डुप्लीकेट चाबी बनाने से मना कर दिया. वहीं, 28 मार्च, 2023 को उसे ईमेल से जानकारी मिली की लॉकर को बंद कर दिया गया है.

इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि संयुक्त रूप से आवंटित लॉकर को एक खातेदार के साइन से बंद नहीं किया जा सकता. लॉकर में उसके करीब 40 लाख रुपए के जेवरात आदि थे. ऐसे में उसे हर्जाना दिलाया जाए. इसके जवाब में बैंक की ओर से कहा गया कि लॉकर हेतल चावड़ा के नाम पर था और परिवादी केवल अधिकृत व्यक्ति था. लॉकर को हेतल ने हमेशा एकल रूप में ही संचालित किया था. इसके अलावा बैंक के निर्देश पर हेतल ने अपने नाम पर संशोधित लॉकर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे स्पष्ट है कि वह एकल लॉकर धारक थी. हेतल ने ही बैंक को पत्र लिखकर अधिकृत व्यक्ति के रूप में दर्ज परिवादी का नाम हटाने को कहा था. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद आयोग ने बैंक पर हर्जाना लगाया है.

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