पटना : इसे खुद पर भरोसा करना कहें या जीतने की लगन, समाज को आइना दिखाना कहें या दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक बनना, आपके मन में जो आए मधु को उस रूप से पुकार लें. आपके हर सवाल का जवाब मानवी मधु की कहानी देता है.
संघर्ष से भरी मानवी मधु कश्यप की कहानी :जब देश के पहले ट्रांसजेंडर दारोगा की बात आयी, तो जो नाम सामने आया वह नाम था मानवी मधु कश्यप का. मधु की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. इसमें ड्रामा है, एक्शन है, ट्रेजडी है, पूरी कहानी संघर्ष से भरी हुई है.
सफलता से झूम उठी मानवी मधु :बांका की रहने वालीं मानवी मधु कश्यप का चयन बिहार के दारोगा के लिए हुआ है. जिन 3 ट्रांसजेंडरों का सिलेक्शन बिहार अवर निरिक्षक के रूप में हुआ है, उसमें दो ट्रांसमेन हैं और मानवी मधु अकेली ट्रांसवुमेन हैं. मधु अपनी सफलता से फूले नहीं समा रही है.
समाज से कटना शुरू हुईं मधु :अब जरा मानवी के संघर्ष भरी कहानी का रुख करते हैं. चार भाई बहनों में सबसे बड़ी मधु के सिर से पिता का साया बहुत जल्दी ही उठ गया था. कक्षा 9 में थीं तब पता चला कि वह सामान्य लड़का नहीं हैं. इसके बाद धीरे-धीरे वह समाज से कटना शुरू हुईं. हालांकि परिवार की जिम्मेदारी को भी अच्छी तरह समझती रही.
9 साल से अपने गांव नहीं गई मानवी :समाज के डर से खुद की पहचान छिपाने के लिए उन्होंने अपने बदन पर दुपट्टा ओढ़ा था, पर अब कह रही हैं कि उसे शान से लहराएंगी. समाज की बेरुखी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मानवी की मां उससे मिलने के लिए छिपकर पटना आती थीं. ताकि किसी को कुछ पता नहीं चले. मानवी भी 9 साल से अपने गांव नहीं गई है.