सिंगरौली: भारत में ऐसी तमाम जगह हैं, जहां के रहस्य आज तक सुलझ नहीं पाए हैं. इन रहस्यों के कारण ही ये जगह खासा प्रसिद्ध हैं. मध्य प्रदेश की ऊर्जा राजधानी सिंगरौली मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर कसर गांव में स्थित 2500 फीट ऊंचे पर्वत पर खोडेनाथ शिव शंकर विराजमान हैं. उनका मंदिर इन्हीं जगहों में से एक है, जिसकी मिस्ट्री अभी तक अनसुलझी है. स्थानीय लोगों की मानें, तो इस मंदिर की कई ऐसी मान्यताएं व रहस्य हैं जो आज भी अनसुलझे हैं. जब ETV Bharat की टीम इस मंदिर के रहस्यों को जानने के लिए कसर गांव पहुंची, तो लोगों ने बताया कि इस मंदिर में कोई भी रात को नहीं रुकता, जो रुकता है वह सुबह का सूरज नहीं देख पाता है. उसके साथ अनहोनी हो जाती है. इसके साथ साथ इस मंदिर में भगवान की पहरेदारी मधुमक्खियां करती हैं.
रात में रुकने से हो जाती है मौत!
खोडेनाथ शिव शंकर का ये मंदिर मध्य भारत के विंध्य क्षेत्र की उर्जाधानी नगरी सिंगरौली में स्थित है. राज्य के कोने-कोने से लोग इस मंदिर में घूमने के लिए आते हैं. मान्यता है कि इस पर्वत पर कोई भी रात या पूरे दिन नहीं रुक सकता. क्योंकि यहां मधुमक्खियां पहरेदारी करती हैं. लोग यहां आते हैं, बाबा का जलाभिषेक करते हैं, नारियल चढ़ाते हैं और वापस चले जाते हैं. रात में कोई भी इस जगह पर नहीं रुक सकता. ऐसी मान्यता है कि, जो भी यहां रात्रि में रुकने की कोशिश करता है, वह सुबह सूर्य का दर्शन नहीं कर पाता है. उसकी मौत हो जाती है. क्योंकि यहां के पहरेदार भंवरे किसी को भी रात में रुकने की इजाजत नहीं देते हैं.
बाबा के दर्शन के लिए चढ़नी होंगी 1065 सीढ़ियां
बरगवां सिंगरौली मुख्य मार्ग के कसर गांव के पास 2500 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान खोडेनाथ बाबा का दर्शन करने के लिये भक्तों को 1065 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है. यहां आस्था और विश्वास की हर एक सीढ़ी किसी न किसी श्रद्धालु ने बनवाई है. हर सीढ़ी में किसी न किसी श्रद्धालु का नाम लिखा हुआ है. दो लेन सीढ़ी पर्वत पर चढ़ने के लिए बन चुकी हैं. यहां सावन के महीने में भक्तों का सैलाब उमड़ा रहता है. बाबा के जलाभिषेक और उनके दर्शन के लिए हर भक्त आतुर रहता है. मान्यता है कि बाबा से जो भी मुराद मांगी जाती है वह पूरी हो जाती है.
क्या है खोडेनाथ बाबा मंदिर का इतिहास?
कसर गांव की सबसे ऊंची पहाड़ी पर विराजमान खोडेनाथ बाबा का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है. यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि "बहुत पहले यहां घनघोर जंगल हुआ करता था. इसी जंगल के सबसे ऊंचे पहाड़ पर बड़े आकार में शिव जी की प्रतिमा दिखाई दी. जिसमें अद्भभुत आकृतियां बनी हुई थीं. धीरे-धीरे लोगों में पर्वत में चमत्कार की चर्चा शुरू हुई थी. जिससे आसपास के लोगों में यहां के प्रति आस्था बढ़ी, फिर दूर दराज से लोग यहां बाबा के दर्शन के लिए आने लगे. उनकी मनोकामनाएं भी पूरी होने लगीं. इससे लोगों का विश्वास और भी अडिग होते चला गया."