गया: वैसे तो गयाजी में कई पिंडवेदियां है, जहां श्राद्ध और पिंडदान कर्मकांड होता है. दूर-दूर से आने वाले तीर्थयात्री पितरों की आत्मा की शांति के लिए इन पिंडवेदियों पर पिंडदान कर्मकांड करते हैं, जिससे उनके पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है लेकिन गया शहर के मानपुर प्रखंड स्थित फल्गु नदी के किनारे सीताकुंड पिंडवेदी का एक खास महत्व है.
हृदय योजना ने बदली सीताकुंड की काया: इस पिंडवेदी पर पहले सिर्फ पिंडदान और श्राद्ध कर्मकांड होता था लेकिन केंद्र सरकार की हृदय योजना के तहत सीताकुंड वेदी का बड़े पैमाने पर जीर्णोद्धार किया गया. जिसके बाद अब इस पिंडवेदी पर श्राद्ध कर्मकांड के अलावा मांगलिक कार्य भी किए जाते हैं. इस पिंडवेदी के सामने फल्गु नदी की धारा बहती है, जिससे दृश्य और भी मनोरम हो जाता है. यही वजह है कि यहां दूर-दूर से लोग मांगलिक कार्य के अलावा घूमने-फिरने के लिए भी आते हैं.
श्राद्ध के अलावा होते है मांगलिक कार्य: इस संबंध में सीताकुंड पिंडवेदी के पुजारी राजीव पांडे ने बताया कि यहां कभी माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. राजा दशरथ का हाथ यहां निकला था, जिसके बाद मां सीता ने पिंडदान कर उनके हाथ में पिंड अर्पित किया था, जिसके बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. पूर्व में यह वेदी जर्जर अवस्था में थी लेकिन सरकार की हृदय योजना के तहत इसका व्यापक जीर्णोद्वार किया गया. पिंडवेदी के आसपास शौचालय, तोरणद्वार, घाट और लाल पत्थर से सीढ़ियों का निर्माण कराया गया, जिसके बाद इसका स्वरूप ही बदल गया.
"यहां माता सीता ने राजा दशरथ का बालू से पिंडदान किया था. सीता कुंड की कथा अनोखी और सदियों साल पुरानी है. सीता कुंड पिंडवेदी की कथा रामायण काल से जुड़ी हुई है. सरकार की हृदय योजना के तहत इसका व्यापक जीर्णोद्वार हुआ है. अब दूर-दूर से लोग यहां आते हैं."-राजीव पांडे, स्थानीय पुजारी
यहां करा सकते हैं ये मांगलिक कार्य: मानपुर प्रखंड स्थित फल्गु नदी के किनारे सीताकुंड पिंडवेदी है. जहां अब पिंडवेदी पर सिर्फ श्राद्ध कर्मकांड ही नहीं बल्कि मुंडन, शादी समारोह सहित अन्य कई मांगलिक कार्य होते हैं. सिर्फ देश से नहीं विदेश से भी लोग इस स्थल पर आते हैं और अपने मांगलिक कार्य को संपन्न कराते हैं. स्वच्छ वातावरण में लोग यहां परिजनों के साथ सुबह शाम भ्रमण करने भी आते हैं.