गया: पांच साल पहले पहले पूर्व केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी देश के 10 गांव को क्राफ्ट हैंडलूम विलेज के तौर पर चुना था. इसमें गया का रामपुर गांव भी शामिल था. अब इस गांव और गांव के बुनकरों की किस्मत बदलने की जगह बद से बदतर हो गई है. आज यहां के बुनकर केंद्र सरकार के दिये हैंडलूम, ताना मशीन और चरखे ग्रामीणों ने खोल कर रख दिए.
पहले से भी बदतर हो गई रामपुर गांव की स्थिति: दरअसल, वर्ष 2020 में रामपुर गांव में आशा की बड़ी किरण जगी थी. गड़ेरियों की बस्ती रामपुर गांव देश के उन 10 चुनिंदा गांवों में शामिल है, जिन्हें 'हैंडीक्राफ्ट विलेज' के रूप में चयनित किया गया है. पांच साल बीतने के बाद केंद्र सरकार की क्राफ्ट विलेज का सपना भी बुनकरों के लिए टूट गया है. क्राफ्ट विलेज के रूप में यह गांव विकसित नहीं हुआ. जो लोग सरकार के इस योजना से जुड़े वे कहीं के नहीं रहे.
ताना मशीन और चरखे पड़ा है बंद: गांव के बुनकरों के पुराने रोजगार भी छूट गए और अच्छा खासा नया काम भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में यहां के लोगों की स्थिति बद से बदतर हो गई है. रामपुर गांव के बुनकरों ने केंद्र सरकार द्वारा 90% सब्सिडी पर दिए गए हैंडलूम, ताना मशीन और चरखे के पार्ट्स अलग-अलग कर दिए और उसे खोल कर रख दिया है. इनका कहना है कि जब इस काम से कोई फायदा ही नहीं तो समय बर्बाद क्यों करें.
"हमें सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं दी जा रही है. रामपुर गांव काफी पिछड़ा हुआ है. यहां भेड़ पालन पुश्तैनी काम रहा है. यहां के लोग पहले भेड़ के ऊन से मोटे वस्त्र और कंबल तैयार करते थे. हालांकि इससे ज्यादा मुनाफा नहीं है, लेकिन पुश्तैनी काम को लोगों ने संभाल कर रखा है." - विश्वनाथ पाल, ग्रामीण
20 घरों के लोगों को दी गई ट्रेनिंग: क्राफ्ट विलेज के रूप में विकसित करने के पहले फेज में 20 घरों के लोगों को ट्रेनिंग दी गई और उन्हें 90% की सब्सिडी पर हैंडलूम, ताना मशीन और चरखे दिए गए. 30 हजार की मशीन थी, जिसमें बुनकरों को 3 हजार भुगतान करने पड़े. लोगों में काफी उत्साह था कि यह योजना रामपुर गांव के बुनकरों की किस्मत पलट देगी. किंतु जब काम शुरू किया, तो वस्त्र भी धड़ाधड़ बने. शुरुआत में गमछे, चादर और साड़ी बनाने की योजना थी. वस्त्र बने भी, लेकिन बिक्री नहीं हो पाई.
घरे के कोने में पड़ा है हैंडलूम के पार्ट्स: बुनकरों का आरोप है कि सरकार ने कोई मार्केट नहीं दिया जिसके कारण वस्त्र घर में ही उपयोग करके रह गए. एक रुपए की आमद नहीं हो पाई. कुछ समय और देखा कि सरकार कुछ करेगी, लेकिन कुछ नहीं हुआ. फिर हमने अपने-अपने हैंडलूम के पार्ट्स खोल कर रख दिए हैं. अब 20 घरों में से एक घर भी ऐसा नहीं है, जो सरकार की हैंडीक्राफ्ट विलेज के रूप में रामपुर गांव को विकसित करने की योजना के साथ जुड़े हुए हैं.
'सरकार मदद करें तो फिर जुड़ेंगे': अब यहां के ग्रामीण इसी शर्त पर फिर से इस योजना को शुरू करने का काम कर सकते हैं. जिसमें सरकार उन्हें सूत दे और जो कपड़े तैयार हो. वह सरकार उसकी बिक्री के लिए एक निश्चित मार्केट दे. जिसमें हमारे बने खूबसूरत गमछे, साड़ी और चादर बिक्री हो जाएं. अभी फिलहाल में इस काम से कोई मुनाफा नहीं था. जिसके कारण लोगों ने मशीन खोल कर रख दी है.
कुल 60 बुनकरों की ट्रेनिंग दी गई: रामपुर गांव की आरती कुमारी बताती है कि कुल 60 लोगों की ट्रेनिंग हुई. 20 लोगों को शुरुआत में जोड़ा गया. चार-पांच साल में वहीं अटककर रह गई. इन बीस घरों के लोग भी इस योजना से मजबूरी में हट गए हैं. 20 लोगों को जो शुरुआत में किसी प्रकार से लाभ मिल सका. इसके बाद अन्य किसी लोग को नहीं जोड़ा गया.
"सरकार की इस योजना से हमें किसी प्रकार का मुनाफा नहीं हुआ. हम लोगों ने यह काम बंद कर दिया और पार्ट्स खोलकर भी रख दिए हैं. वहीं, हैंडलूम मशीन एक बार खराब हो जाती है तो उसे बनाने वाला भी कोई कारीगर नहीं है. मशीन काफी बारीक होती है. एक बार खराब हो जाए, तो दोबारा बनाना काफी मुश्किल भरा होता है. काफी खर्च आता होता है. ऐसे में कई मशीन खराब होकर भी बेकार हो गए और लोग इस काम से हट गए." -आरती कुमारी, ग्रामीण
डेढ़ सौ घर है गड़ेरियों का: वहीं सोना देवी बताती है कि रामपुर गांव में करीब डेढ़ सौ गड़ेरियों का घर है. यहां भेड़ पालन पुर मुख्य धंधा था, लेकिन अब कुछ ही लोग इस धंधे से जुड़े हुए हैं. यहां बेकारी ज्यादा है. लोगों के पास रोजगार नहीं है. "सरकार की योजना से भी लोगों का साथ छूट गया है. क्योंकि सरकार ने कोई सुविधा नहीं दी. हमारे बनाने वाले कपड़े ऐसे ही बेकार हो गए. मशीन भी बेकार हो गई है. अब मजदूरी और राज मिस्त्री का काम करने को भी विवश है."
आय का माध्यम नहीं बन सकी यह योजना: गांव के रामबली प्रसाद पाल और शांति देवी बताती है कि आय का माध्यम सरकार की योजना नहीं बन सकी. कोई लाभ इस योजना से नहीं हम लोगों को था. मजबूरी में हम लोगों को यह काम छोड़ना पड़ा. केंद्र सरकार ने क्राफ्ट विलेज के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की थी, लेकिन किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी. नतीजतन हम लोग विवश होकर इस काम से हट गए हैं. मशीन भी खोलकर रख दी है.
"सरकार अभी भी यदि सुविधा देती है और हमारे निर्माण के किए गए वस्त्र की बिक्री करवाती है तो हम लोग फिर से इससे जुड़ सकते हैं. क्राफ्ट विलेज के रूप में रामपुर गांव को विकसित करने का सपना पूरा हो सकता है. क्योंकि एक बार यदि यह गांव विकसित हो गया तो फिर यहां के लोगों की जिंदगी संवर जाएगी."-रामबली प्रसाद पाल, ग्रामीण रामपुर
1.37 करोड़ का था प्रोजेक्ट: रामपुर को हैंडलूम क्राफ्ट विलेज के रूप में विकसित करने के लिए केंद्र सरकार ने 1.37 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार किया था. यहां के लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए दिल्ली के डीसीएच हैंडीक्राफ्ट्स की टीम आई थी. यहां के लोगों को प्रशिक्षित किया गया और 20 लोगों की टीम के साथ इसकी शुरुआत की गई थी. उन्हें हैंडलूम दिए गए थे, लेकिन उसके बाद किसी भी ग्रामीण या घर को इससे नहीं जोड़ा गया. जिससे यह योजना धराशायी हो गई.
क्या है हैंडलूम क्राफ्ट विलेज योजना: केंद्र सरकार की योजना थी कि हैंडलूम क्राफ्ट विलेज के रूप में रामपुर को विकसित करके यहां वर्क शेड सेंटर बनाया जाएगा. वर्क शेड सेंटर में हैंडलूम के साथ हैंडीक्राफ्ट के आइटम को भी रखा जाएगा. अंतरराष्ट्रीय स्थली को आने वाले पर्यटक वर्क शेड सेंटर में पहुंचकर विभिन्न तरह के आकर्षण साड़ी चादर की खरीदारी कर सकें. भगवान बुद्ध को रेशमी धागे और सूत के धागे से निर्मित खादा भगवान बुद्ध को चढ़ाया जाता है. ऐसे में योजना थी कि रामपुर के ही ग्रामीण इसे बनाकर बेच सकें और दुकानों में सप्लाई हो.
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