वाराणसी: सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि ऋतु के परिवर्तन के साथ ही शरद पूर्णिमा का पर्व हल्की गुलाबी ठंड के होने का भी एहसास करने लग जाता है. यह पर्व धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है एक तरफ जहां धार्मिक पक्ष भगवान की उपासना का रास्ता दिखाता है, तो वैज्ञानिक पक्ष चंद्रमा की खीर से निकलने वाली करने के जरिए शरीर को मिलने वाली ऊर्जा और स्वस्थ रहने के तरीकों को दर्शाता है.
शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा एक ही दिन: ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया, कि सनातन धर्म में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है. इस बार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा दो दिन 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा, 17 अक्टूबर को स्नान-दान की पूर्णिमा एक मास तक अर्थात आश्विन शुक्ल पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाला व्रत-यम-नियम का प्रारंभ होगा. इसी दिन 17 अक्टूबर को ही महर्षि वाल्मिकी जयंती होगी. आश्विन पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात्रि 07 बजकर 47 मिनट पर लगेगी. जो 17 अक्टूबर को सायं 05 बजकर 23 मिनट तक रहेगी. शास्त्र सम्मत है, कि शरद पूर्णिमा को प्रदोष और निशिथकाल होने वाली पूर्णिमा ली जाती है, तो कोजागरी व्रत की पूर्णिमा में निशिथव्यापिनी होनी चाहिए. अत: इस बार शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा दोनों 16 अक्टूबर ही होगी.
रात्रि में आकाश से होती है अमृत की वर्षा:ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा को सम्पूर्ण वर्ष भर में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडशकलाओं (16) का होता है. इसी कारण श्रृंगार रस के साक्षात स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने इसी अवसर पर रासोत्सव का समय उपयुक्त माना था. मान्यता है, कि इसी रात्रि में आकाश से अमृत की वर्षा होती है. शरद पूर्णिमा को प्रभात के समय आराध्य देव को श्वेत वस्त्र एवं आभूषण आदि से सुशोभित करके पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. रात्रि के समय गौदुग्ध से बनी खीर, घी और मिष्ठान मिलाकर अद्र्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण करें. साथ ही पूर्णचंद्रमा के मध्य आकाश में स्थित होने पर उनका विधिवत पूजन करें. इसके बाद उनको खीर का नैवेद्य अर्पण करें. दूसरे दिन उसका भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.