हमीरपुर: कहते हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं होता है उनका भगवान होता है. भगवान किसी न किसी रूप में किसी मसीहा को लोगों की मदद के लिए भेज देता है, लेकिन दुनिया छोड़ने के बाद जिनका कोई नहीं है उनके शांतनु हैं. शांतनु लावारिस लाशों के वारिस हैं. वो पिछले तीन दशकों से दुनिया छोड़ चुके लोगों अंतिम संस्कार से लेकर पिंडदान, श्राद्ध करते आ रहे हैं.
ये शांतनु का जुनून ही है कि वो तीन दशकों से अधिक समय से ये काम बिना किसी आर्थिक मदद के कर रहे हैं. उनके हाथ बिना किसी भेदभाव के सभी लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं. अब तक हजारों लोगों को सम्मानजनक तरीके से इस दुनिया से अंतिम विदाई दे चुके हैं. पैसों के अभाव में भी लावारिस लाशों के लिए शांतनु के कंधे कभी नहीं झुके और न थके. शांतनु को हिमाचल प्रदेश में जहां कहीं भी लावारिस शव मिलता है वो अपने कंधों पर उठाकर उसे शमशान पहुंचाते हैं और उसका अंतिम संस्कार करने के बाद उनकी अस्थियों को इकट्ठा करके हरिद्वार हर की पौड़ी में पिंडदान के साथ विसर्जन करते आ रहे हैं. शांतनु अब तक 4,975 दिवंगत लोगों की अस्थियां विसर्जित कर उन्हें गति प्रदान करवा चुके हैं. शांतनु अपनी जिम्मेदारी सिर्फ अस्थि विसर्जन और पिंडदान तक ही नहीं समझते. वो पितृपक्ष में हर साल दिवंगत आत्माओं का श्राद्ध भी करते हैं.
इन दिनों पितृ पक्ष चल रहा है लोग अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर रहे हैं. ऐसे में शांतनु लावारिस हालत में दुनिया छोड़ चुके लोगों का श्राद्ध करवाएंगे. शांतनु कुमार ने बताया कि,'हर साल की तरह इस साल भी श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार गंगा जी ब्रह्म कुंड में प्रतिपक्ष अमावस के दिन 2 अक्टूबर को सभी दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध किया जाएगा.'शांतनु खुद आर्थिक तौर पर इतने मजबूत नहीं हैं इसके बाद भी वो कभी अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे और न ही उनका हौसला टूटा. हमीरपुर बाजार में छोटी सी दुकान चलाकर शांतनु कुमार लावारिस शवों के लिए कंधा बने हुए हैं. शांतनु ने कहा कि, 'अब तक वो करीब 4975 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.'
आपको बता दें कि शांतनु मूल रूप से बंगाल के रहने वाले हैं. शांतनु बताते हैं कि, 'सन 1990 से उन्होंने समाज सेवा शुरू की थी. वो 1980 में अपने पिता के साथ में हमीरपुर आए थे. उनके पिता यहां पर सरकारी नौकरी करते थे और तब उनका पूरा परिवार हमीरपुर में ही बस गया. यहां रहने के बाद उन्होंने समाज सेवा का मन बनाया और इसी में जुट गए. अब इस कार्य को वो निरंतर करते आ रहे हैं. पूरे हिमाचल में अपनी इस समाज सेवा से लावारिस शवों गति प्रदान करवाते हैं.'
ऐसे आया लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने का ख्याल
शांतनु ने बताया कि उनके अंदर समाज सेवा की भावना हमीरपुर में हुए एक हादसे के बाद शुरू हुई थी. दरअसल पुलिस जवान हमीरपुर में एक लावारिस शव को जला रहे थे और इसी दौरान वो भी वहां पहुंचे और उन्होंने पुलिस जवानों से बातचीत की. यही वो पल था जब उनके मन में लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की इच्छा हुई. दरअसल उसी दौरान उन्हें पता चला कि पुलिस लावारिस शवों को जला तो देती है, लेकिन इनका हिंदू परंपरा के अनुसार अस्थि विसर्जन करने की कोई व्यवस्था नहीं है.