मंडी: भौगोलिक परिस्थितियां कठिन होने के कारण पहाड़ों में मैदानी इलाकों जैसी स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से नहीं मिल पाती हैं. चाहे फिर बात स्वास्थ्य संस्थान की हो या फिर मरीज को अस्पताल तक ले जाने वाली एंबुलेंस की हो. हिमाचल प्रदेश में पहाड़ के लोगों के दर्द को समझते हुए आईआईटी मंडी के एक सहायक प्रोफेसर ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया है, जो समय से पहले पैदा हुए और बीमार नवजात बच्चों को घर पर ही सही इलाज देने के लिए सहायक है. ये एक पोर्टेबल नियोनेटल इनक्यूबेटर है जिसे आईआईटी मंडी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गजेंद्र सिंह ने तैयार किया है. डॉ. गजेंद्र सिंह के इस मशीन को बनाने की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है. वैसे कुछ लोग तो इनक्यूबेटर के बारे में जानते हैं लेकिन कई लोग इस मशीन के बारे में जानकारी नहीं रखते. डॉ. गजेंद्र सिंह की कहानी से पहले इस उपकरण की बात करना बहुत जरूरी है. ये इनक्यूबेटर क्या होते हैं और इनकी जरूरत क्यों पड़ती है.
क्या होता है इनक्यूबेटर ?
दरअसल कई बार बच्चों का जन्म 9 महीने से पहले हो जाता है या बच्चे का जन्म कुछ समस्याओं के साथ होता है. समय से पहले जन्मे या बीमार नवजात पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं ऐसे में उनकी देखभाल बहुत ही जरूरी होती है. अस्पतालों में ICU की ही तरह नवजात शिशुओं के लिए NICU यानी नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट होते हैं. Neonatal Intensive Care Unit जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि ये नवजात शिशुओं के गहन देखभाल वाली यूनिट होती है. जहां बीमार या समय से पहले जन्मे नवजात बच्चों को इनक्यूबेटर नाम की एक मशीन में रखा जाता है. इनक्यूबेटर में इस तरह की परिस्थितियां होती हैं जो बच्चों की देखभाल और विकास के लिए सही वातावरण उपलब्ध कराती हैं. बीमार नवजात शिशु बहुत ही संवेदनशील होते हैं और रोगों से लड़ने की क्षमता भी बहुत कम होती है. ऐसे में इनक्यूबेटर उन्हें संक्रमण, एलर्जी आदि से बचाता है.
क्यों बनाया पोर्टेबल इनक्यूबेटर ?
कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है और IIT Mandi के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गजेंद्र सिंह के लिए पोर्टेबल इनक्यूबेटर बनाने की प्रेरणा भी इन्हीं अल्फाजों में छिपी है. कुछ वक्त पहले उन्हें अपनी नजात बेटी के लिए नियोनेटल एंबुलेंस नहीं मिली तो उन्होंने इससे सबक लेकर पहाड़ों या दुर्गम इलाकों के रहने वाले लोगों का दर्द समझा.
नियोनेटल एंबुलेंस क्या होती है- एम्बुलेंस मरीजों को अस्पताल ले जाने वाहन होता है लेकिन नियोनेटल एंबुलेंस नवजात बच्चों के लिए होती है. खासकर ऐसे नवजात बच्चों के लिए जो या तो समय से पहले पैदा हुए हैं या गंभीर रूप से बीमार है. नियोनेटल एंबुलेंस इसलिये खास होती है क्योंकि इसमें नवजात बच्चों के लिए सबसे जरूरी इनक्यूबेटर की व्यवस्था होती है. साथ ही वेंटिलेटर से लेकर ऑक्सीजन व अन्य उपकरण होते हैं. जो जिंदगी बचाने के लिए जरूरी होते हैं. इस एंबुलेंस में नियोनेटोलॉजिस्ट यानि नवजात बच्चों का डॉक्टर और एक नर्स भी होती है. किसी नवजात की गंभीर हालत में नियोनेटल एंबुलेंस जीवन रक्षक साबित हो सकती है.
जब डेढ़ साल पहले मेरी नवजात बेटी के इलाज के लिए नियोनेटल एंबुलेंस नहीं मिली तो मैंने पहाड़ के लोगों के दर्द को महसूस किया. जिसके बाद मैंने खुद ही पोर्टेबल नियोनेटल इनक्यूबेटर बनाने की ठानी. डेढ़ साल पहले ही इस मॉडल पर काम करना शुरू कर दिया. जिसके बाद पोर्टेबल नियोनेटल इनक्यूबेटर के इस मॉडल को स्टार्टअप तक पहुंचाया. एक निजी कंपनी द्वारा इसका निर्माण किया जाएगा. - डॉ. गजेंद्र सिंह, IIT मंडी के प्रोफेसर
बेटी के लिए चंडीगढ़ से मंगवानी पड़ी थी नियोनेटल एंबुलेंस
डेढ़ साल पहले जब डॉ. गजेंद्र की बेटी का जन्म हुआ तो उसे पैदा होते ही इन्फेक्शन हो गया. इलाज के लिए बेटी को चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया, लेकिन नवजात को सामान्य एम्बुलेंस में नहीं ले जाया जा सकता था. इसलिए नियोनेटल इनक्यूबेटर सुविधा वाली एंबुलेंस की जरूरत पड़ी. ये एंबुलेंस आस-पास के अस्पतालों में मौजूद नहीं थी इसलिये चंडीगढ़ से इस एंबुलेंस को आने में 12 से 14 घंटे का समय लग गया. इतने में उनकी नवजात बेटी की तबीयत और ज्यादा खराब हो रही थी, लेकिन जब नियोनेटल एंबुलेंस पहुंची और नवजात को उसमें ले जाया गया, तब डॉ. गजेंद्र ने ये सुविधा हिमाचल के गांव-गांव तक पहुंचाने की ठानी. डॉ. गजेंद्र ने बताया कि उन्होंने इस बारे में गहन शोध किया और फिर अपने सहयोगियों के साथ नियोनेटल इनक्यूबेटर का मॉडल बनाने का काम शुरू किया.
नियोनेटल इनक्यूबेटर में शामिल किए डिजिटल हेल्थ फीचर
डॉ. गजेंद्र सिंह ने बताया, "इसमें डिजिटल हेल्थ फीचर भी शामिल किए गए हैं. जिसकी मदद से डॉक्टर कोसों दूर से भी बच्चे पर निगरानी रख सकता है और उसे ऑनलाइन ट्रीटमेंट दे सकता है. नियोनेटल इनक्यूबेटर का ये डिजाइन प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट के तौर पर बनाया गया. ये मॉडल अब स्टार्टअप बन चुका है. आने वाले एक या दो सालों में एक निजी कंपनी द्वारा इसका निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा. उसके बाद ये बाजार में उपलब्ध होगा. इसकी औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं."
नियोनेटल इनक्यूबेटर की कीमत
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गजेंद्र सिंह ने बताया कि बाजार में नियोनेटल इनक्यूबेटर की कीमत 35 लाख से ज्यादा की है, लेकिन उनका बनाया नियोनेटल इनक्यूबेटर 3 से 8 लाख रुपए में उपलब्ध होगा. उन्होंने बताया कि ये एक ऐसा नियोनेटल इनक्यूबेटर है, जिसके लिए एंबुलेंस की जरूरत भी नहीं होगी. ये वजन में इतना हल्का है कि इसे ड्रोन की मदद से या कार के एक हिस्से में आसानी से ले जाया जा सकता है. डॉ. गजेंद्र ने बताया कि इसमें ऑक्सीजन सिलेंडर, दो घंटे का बैटरी बैकअप, पीलिया की रोकथाम के लिए फोटोथेरेपी और वॉर्मर की पूरी सुविधा भी उपलब्ध है.
डॉ. गजेंद्र सिंह मूलतः मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं और आईआईटी मंडी में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत हैं. इस नियोनेटल इनक्यूबेटर को बनाने में डॉ. गजेंद्र के साथ एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सत्वशील पोवार, स्टूडेंट केशव वर्मा, वत्सल, धीरज और बादल ने भी अपना अहम योगदान दिया है. गजेंद्र सिंह की ये पहल भविष्य के कई अभिभावकों और नवजात बच्चों के लिए जिंदगी का तोहफा साबित हो सकती है. इनक्यूबेटर या नियोनेटल एंबुलेंस की सुविधा जिन इलाकों से दूर हैं वहां ये पोर्टेबल इनक्यूबेटर बहुत मददगार साबित हो सकता है.