सरगुजा : छत्तीसगढ़ के सरगुजा की आदिवासी ग्रामीण महिलाओं ने तरक्की के सफर की नई राह चुनी है. ये वो महिलाएं हैं, जो कभी घर की चार दीवारी में रहती थीं. चूल्हे में खाना बनाना, बच्चों को संभालना, मिट्टी के घर को गोबर से लीपना, यही इनका जीवन हुआ करता था. अब इनका जीवन पूरी तरह बदल गया है.
चूल्हे से स्कूटी और मोबाइल तक का सफर : पहले जो महिलाएं किसी से बात करने में भी घबराती थीं, वो आज स्कूटी चलाती हैं. मोबाइल में सोशल मीडिया के विभिन्न हैंडल ऑपरेट करती हैं. शहर के बैंक जाकर सारा लेन देन अकेले कर लेती हैं. घर के चूल्हे और गोबर से स्कूटी और मोबाइल तक का सफर जागरूकता से जुड़ा है.
आत्मनिर्भर होती आदिवासी महिलाएं : सरगुजा की आदिवासी महिलाएं अब इतनी जागरूक हो चुकी हैं कि किसी भी मंच पर जाकर बेझिझक बात कर सकती हैं. यह महिलाएं आत्मनिर्भर हैं. घर में जरूरत के महंगे सामान भी खुद खरीदकर ले आती हैं.
सरगुजा की आत्मनिर्भर महिला का सफर : कुछ ऐसी ही कहानी है, सरगुजा जिले के घंघरी में रहने वाली सोनी पैकरा की. इस महिला की उम्र 28 साल है.सोनी पैकरा ने कभी कॉलेज की शक्ल नहीं देखी. 12 वीं तक की पढ़ाई करने के बाद तुरंत ही 2013 में परिवार ने सोनी का विवाह करा दिया था. सोनी आज आत्मनिर्भर हैं. सरकार की बिहान योजना से जुड़कर बैंक से लोन लिया और बकरी पालन शुरू किया. कुछ जमीन में सब्जियां लगाई.
अन्य महिलाओं को कर रही प्रेरित : जब कमाई होने लगी तो सोनी ने सबसे पहले अपने लिये स्कूटी खरीदी. फिर घर में टीवी, फ्रीज, कूलर वॉसिंग मशीन जैसी महंगी वस्तुएं भी खरीदी. जब सोनी आत्मनिर्भर बन गईं तो अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने का मन बनाया और बिहान में आरबीके (रिसोर्स बुक कीपर) बन गईं. सोनी आज 10 ग्राम पंचायतों की करीब 200 से 250 महिलाओं को बिहान से जोड़कर स्वरोजगार शुरू करा चुकी हैं.